आज विश्व वृद्ध दिवस है । हर कोई के लिए एक दिवस होता है तो बुज़ुर्गों के नाम से एक दिन क्यों न हो । बुज़ुर्गों से बातें करके देखिये , कितना बड़ा खजाना होता है उनके पास बातों का । हम उनका सम्मान भी करते हैं ,लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि वे सिर्फ बुज़ुर्ग हैं और उम्र का अनुभव उनके पास है इसलिये वे समझदार हैं । सहज मानवीय कमज़ोरियाँ उनके भीतर भी हो सकती हैं । प्रस्तुत है दो मध्यवर्गीय बूढ़े दोस्तों पर यह कविता जो बूढ़ों पर होने के साथ साथ दोस्तों पर भी है । उम्मीद है इनसे आप ज़रूर कहीं न कहीं मिले होंगे ।
दो बूढ़े दोस्त
बचपन में बिछड़े दो दोस्त
बरसों बाद मिले
यादों पर जमी धूल साफ हुई
कहकहे गूंजे
दीवारें चौंकी
पलटकर देखा राह चलते लोगों ने
कुछ ने ताज्जुब व्यक्त किया
कुछ ने इत्मीनान
हल्की सी नम हुई आँखों की कोर
ज़रा सी ढ़ीली हुई तनी हुई डोर
आत्मीय उलाहनों के साथ
ज़ुबान पर जायज़ शिकायतें आई
बहुत दिनों बाद मन खुला
शुरु हुआ बातों का सिलसिला
वे बखानते रहे
जिंदगी के बेकाबू घोड़े को
साध लेने की शौर्य गाथाएँ
ज़िक्र करते रहे
आसमान से उतरे सुखों का
इतराते रहे अपनी उपलब्धियों पर
गर्व करते रहे हासिल सुविधाओं पर
बातें हुई बेटों की तरक्की के बारें में
बेटियों की बड़े घर में शादी और
दामादों की संपन्नता के बारे में
जिम्मेदारियाँ पूरी कर लेने का दंभ
सर चढ़कर बोलता रहा
तमाम सुख पा लेने का अहम
एक दूजे को तोलता रहा
कहीं भी अकेलेपन का जिक्र नहीं
पराजय का उल्लेख कहीं नहीं
कोई बात नहीं हताशा की
टूटन का कोई बयान नहीं
कोई प्रदर्शन नहीं
अपनों से मिले ज़ख्मों का
समय के साथ छूट गये पलों का
एक दूसरे की अनुपस्थिति से हुए
अनदेखे नुकसानों का कोई जिक्र नहीं
अपने शानदार अभिनय पर वे
मन ही मन मुस्कुराते रहे
बीते दिनों की करते रहे जुगाली
कड़वाहटों को चबाते रहे ।
शरद कोकास
(चित्र गूगल से साभार । )
अपने शानदार अभिनय पर वे
जवाब देंहटाएंमन ही मन मुस्कुराते रहे
बीते दिनों की करते रहे जुगाली
कड़वाहटों को चबाते रहे ।
बहुत सुदर रचना .. क्या खूब लिखा है !!
अपने शानदार अभिनय पर वे
जवाब देंहटाएंमन ही मन मुस्कुराते रहे
बीते दिनों की करते रहे जुगाली
कड़वाहटों को चबाते रहे ।
--
शरद कोकास जी!
आपने वरिष्ठ नागरिकों की मानसिकता को
बहुत ही चतुराई से शब्द दिये हैं!
क्या खूब लिखा है !!
जवाब देंहटाएंआदरणीय शरद कोकास जी!
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
मनुष्य जिंदगी भर ऊँचाइयाँ पाने के लिए संघर्ष करता रहता है । लेकिन पाने के बाद भी यही लगता है कि क्या पाया , क्या खोया । बूढ़े दोस्तों का अहं उन्हें स्वीकार करने भी नहीं देता कि अब सब कुछ खो गया है ।
जवाब देंहटाएंवाह , शानदार रचना ।
भैया... सीनियर सिटिज़न साइकोलोजी को बहुत अच्छे से डिस्क्राइब किया है आपने...
जवाब देंहटाएंशरद भाई
जवाब देंहटाएंबांछें खुल गई । कविता के सुखद वातावरण में प्रवेश करते ही । तुमने गजब की कविता रच दी है । तुम्हें मैं गोद में उठाकर घूमना चाहता हूँ । नरेश चन्द्रकर
कोई प्रदर्शन नहीं
जवाब देंहटाएंअपनों से मिले ज़ख्मों का
समय के साथ छूट गये पलों का
एक दूसरे की अनुपस्थिति से हुए
अनदेखे नुकसानों का कोई जिक्र नहीं
Bahut behtareen !
अपने शानदार अभिनय पर वे
जवाब देंहटाएंमन ही मन मुस्कुराते रहे
बीते दिनों की करते रहे जुगाली
कड़वाहटों को चबाते रहे ।
ऐसा ही होता है. बेहद सशक्त रचना लगाई है आज के वृद्ध दिवस के उपलक्ष में, शुभकामनाएं.
अपने शानदार अभिनय पर वे
जवाब देंहटाएंमन ही मन मुस्कुराते रहे
बीते दिनों की करते रहे जुगाली
कड़वाहटों को चबाते रहे ।
बस क्या कहूँ बहुत सुदर!!!! कितने करीब से देखा सच है ये. कहने वाले सुनने वाले सब कुछ जान कर भी अंजान बने रहना चाहते हैं
बड़ी सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअपने शानदार अभिनय पर वे
जवाब देंहटाएंमन ही मन मुस्कुराते रहे
बहुत सुन्दर रचना
वाकई यह अभिनय ही तो है जिसको वे जीते हैं
वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! बेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंशरद भाई !
जवाब देंहटाएंयह कविता गज़ब की सच्चाई बयान कर रही है , दो वृद्ध दोस्त इस उम्र में कितने ही ईमानदार क्यों न हों मगर किसी हाल में अपना अकेलापन कभी बताना नहीं चाहते ...अपनी आँखों की नमीं वहीँ सुखाने में अक्सर कामयाब भी रहते हैं !
जिनके २ या दो से अधिक बेटे हैं अक्सर उनकी हालत और भी ख़राब दिखती है दोनों बेटे एक दूसरे को तौलकर मुकाबला करते हैं कि माँ बाप के साथ दूसरे भाइयों ने क्या किया अथवा माँ बाप हमारी क्या मदद कर रहे हैं ! यह वाकई दयनीय हालत है ...
सादर
ओह अदभुत !
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता, भाव प्रधानता तो मन को मोह लेती है आप की कविताओं में!
जवाब देंहटाएंवाह!! बहुत सही लिखा है सुन्दर रचना है।
जवाब देंहटाएंकहीं भी अकेलेपन का जिक्र नहीं
जवाब देंहटाएंपराजय का उल्लेख कहीं नहीं
कोई बात नहीं हताशा की
टूटन का कोई बयान नहीं
कोई प्रदर्शन नहीं
अपनों से मिले ज़ख्मों का
समय के साथ छूट गये पलों का
एक दूसरे की अनुपस्थिति से हुए
अनदेखे नुकसानों का कोई जिक्र नहीं
अपने शानदार अभिनय पर वे
मन ही मन मुस्कुराते रहे
बीते दिनों की करते रहे जुगाली
कड़वाहटों को चबाते रहे ।
ati uttam ,vridh avastha me insaan apni tooti avastha se itna pareshan rahta hai .us par apne hi palan poshan aur sanskaar par kya ungali uthaye ?niyati samjh chup rah jaata hai aur apne beete dino ko yaad kar santush hota rahta hai ,ye humme kami hoti hai ki unke anubhav ko grahn nahi karte .
अफ़सोस जिस अभिनय से वो पूरी जिंदगी जीते रहे ....दोस्ती में भी अभिनय ही अपना अभिनय दिखा गया.
जवाब देंहटाएंसशक्त वर्णन.
कहीं भी अकेलेपन का जिक्र नहीं
जवाब देंहटाएंपराजय का उल्लेख कहीं नहीं
कोई बात नहीं हताशा की
टूटन का कोई बयान नहीं
कोई प्रदर्शन नहीं
अपनों से मिले ज़ख्मों का
समय के साथ छूट गये पलों का
एक दूसरे की अनुपस्थिति से हुए
अनदेखे नुकसानों का कोई जिक्र नहीं
क्या कहूं अब इस, इतनी सार्थक कविता पर!!
क्षमा करें, मैंने तो इसे आपकी गलतफहमी मानी.
जवाब देंहटाएंपहली नज़र में कविता तो मुझे बहुत अच्छी लगी... पर थोड़ा सोचने के बाद लगा कि ऐसा तब हो सकता है जब दोस्त कुछ समय के लिए मिले हों या औपचारिक मित्रता हो या पता नहीं, हो सकता है मैं इतनी अनुभवी नहीं हूँ, पर सच्चे दोस्त अपना दुःख ना कहें ऐसा कैसे हो सकता है?
जवाब देंहटाएंशरद जी मै कोई भी दिवस किसी के लिये नही मनाता, लेकिन मै हमेशा बुजुगो की इज्जत करता हुं रोजाना, वो चाहे अपना हो गोरा हो या काला, कविता बहुत सुंदर लगी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशब्द ही नहीं हैं। कुछ कहने के लिए।
जवाब देंहटाएं... behatreen ... laajawaab !!!
जवाब देंहटाएंवृद्धों से बातचीत के दोनों ही तरह के अनुभव है ...एक वे जो बस अपने दुःख दर्द की कहानी कहते हैं , एक वे जो हँस कर छिपाते हैं ...मगर सच ही उनके पास जानकारियों और अनुभवों का खजाना होता है ...
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों की वृद्धों से अच्छी बनती है क्यूंकि उनकी क़द्र वृद्ध ही जानते हैं ...:)
अच्छी कविता ...!
बेहद सुन्दर पोस्ट बधाई .
जवाब देंहटाएंभाई यह तो बताओ कि यह बुजुर्ग कितनी उम्र से बन जाते हैं? उनके अनुभव हमारे लिए सदैव काम के रहते हैं। बेहद अच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबूढों पर एक जवां प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंशरद भाई अभी ताज़ा ताज़ा तो आपकी जवानी शुरू हुई है,
जवाब देंहटाएंऔर आपने सीनियर सिटीजन की तरह बोलना शुरू कर दिया...
जन्मदिन की देरी से बधाई स्वीकार कीजिए...
जय हिंद...
काम कि चीज है जरुर पढ़े .... और हाँ एक टिपण्णी अवश्य कर दे ...
जवाब देंहटाएंhttp://chorikablog.blogspot.com/2010/10/94.html
बेहद कामयाब प्रस्तुति ,यथार्थ है
जवाब देंहटाएंहम बूढ़े नहीं होंगे...
जवाब देंहटाएंअपने शानदार अभिनय पर वे
जवाब देंहटाएंमन ही मन मुस्कुराते रहे
बीते दिनों की करते रहे जुगाली
कड़वाहटों को चबाते रहे ।
शानदार रचना।
कहीं भी अकेलेपन का जिक्र नहीं
जवाब देंहटाएंपराजय का उल्लेख कहीं नहीं
कोई बात नहीं हताशा की
टूटन का कोई बयान नहीं
एकदम हकीकत बयाँ कर रही हैं ये पंक्तियाँ...उनकी आवाज़ इतनी जोशीली हो जाती है...और ठहाके इतने जानदार कि लगता ही नहीं...कोई मलाल भी है अब मुख्य जीवनधारा से अलग हो..हाशिये पर आ जाने का.
.
जवाब देंहटाएंबीते दिनों की करते रहे जुगाली
कड़वाहटों को चबाते रहे ।....
Soul stirring creation !
Regards,
.
ऐसा लगता है
जवाब देंहटाएंआप बुजुर्गों के
मन मस्तिष्क में प्रवेश कर
कुछ क्षण गुजारते रहे
और फिर बाहर आकर
यह कविता लिखते रहे
...आप जैसे कवि ही इस तरह मानव मन को टटोल सकते हैं,
...सुंदर और मार्मिक कविता के लिए बधाई स्वीकार करें।
क्या खूब लिखा है
जवाब देंहटाएंअपने शानदार अभिनय पर
जवाब देंहटाएंवो मन ही मन मुस्कुराये
बातों की करते रहे जुगाली
और कडवाहटों को चबाते रहे।
शरद जी वैसे आखिरी पँक्तिओं ने तो निश्बद कर दिया। लाजवाब और हकीकत को ब्याँ करती कविता है। शुभकामनायें
@ खुशदीप भाई यह ज़िन्दगी मे दूसरी बार हुआ कि किसीने बुढ़ापे की रचना के लिए टोका । पहली बार जब मै 14 साल का था , आकाशवाणी भोपाल से मेरा एक गीत प्रसारित हुआ था "वार्धक्य " पर । उस वक्त डैडी ने डाँट लगाई थी यह कोई उम्र है बुढ़ापे पर कविता लिखने की । सच कहूँ तो आपके इस उलाहने से मुझे उनकी याद आ गई ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक कविता है। उम्र के इस पड़ाव पर जब दो दोस्त मिलें,तो सुख के क्षणों का स्मरण ही ठीक। जो दुख है,सो तो है ही,इस उम्र में सुख बांटने वाले भी कम ही रह जाते हैं।
जवाब देंहटाएंबाऊ जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
'जहाँ ना पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि' को सही साबित करती है ये रचना!
और उसमे भी कवि कोकास हो तो क्या कहने!!!
मंत्रमुग्ध हुआ!
आशीष
--
प्रायश्चित
वाकई सोचने पर मजबूर कर दिया....बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..आभार.
जवाब देंहटाएंआज की हक़ीकत लिखी है शरद जी आपने .... पूरा मुकम्मल जीवन जीने के बाद शायद वो एक दूसरे को और दुखी नही करना चाहते होंगे .... अपने अकेलेपन के एहसास में खुद तो जीते ही हैं दूसरों को इस गर्त में नही धकेना चाहते होंगे ... बहुत लाजवाब ... वाकई सोचने पर मजबूर कर दिया..
जवाब देंहटाएंहॉट सेक्शन अब केवल अधिक 'पढ़े गए' के आधार पर कार्य करेगा
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Behatareen rachana----bahut kuchh sochane par vivash karane vali rachna.
जवाब देंहटाएंbahut acchee rachana.......
जवाब देंहटाएंmere hum umr kya ise dour se gujar rahe hai......?
jhakjhor jane walee rachana ........
---और सघन होना चाहिए... इस विषय पर पूरी एक श्रंखला...।
जवाब देंहटाएंAti uttam.. abhinaya karte umra beet jati h aur ye abhinaya kai dost kho deta h..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति. मन को छू लिया.......
जवाब देंहटाएंगजब की रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली कविता!
जवाब देंहटाएं--
सच ही है -
अपनी पीड़ाओं का बखान करते,
तो इतने दिनों के बाद मिलने पर भी ख़ुश नहीं हो पाते!
--
मुझे लगता है -
यह सब उनके अभिनय के कारण नहीं,
उनकी सहनशीलता के चरमोत्कर्ष के कारण हुआ!
--
बहुत दिनों से प्रयासरत् था
कि आपकी कविताएँ पढ़ूँ आकर!
आज इस प्रयास के पूरे होने पर ख़ुशी हुई!
सही कहा अंकल जी, हम लोगों को अपने बड़ों के बारे में जरुर सोचना चाहिए, उन्हें सम्मान और प्यार देना चाहिए.
जवाब देंहटाएं________________
'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .
बहुत ही सुन्दर सच्चाई को ब्यान करते सुन्दर लफ्ज़ ..बहुत पसंद आई यह
जवाब देंहटाएंबड़ों को मान देना... हमारा कर्म, धर्म, संस्कार, जिम्मेदारी सब कुछ है......
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावी और संवेदनशील पोस्ट....
दो बुजुर्गो के मिलने और मिलने पर जनरली वे क्या बातें करते है इसका सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंकहीं भी अकेलेपन का जिक्र नहीं
जवाब देंहटाएंपराजय का उल्लेख कहीं नहीं
कोई बात नहीं हताशा की
टूटन का कोई बयान नहीं
कोई प्रदर्शन नहीं
अपनों से मिले ज़ख्मों का
समय के साथ छूट गये पलों का
एक दूसरे की अनुपस्थिति से हुए
अनदेखे नुकसानों का कोई जिक्र नहीं
.........दो बुजुर्गो की व्यथा कथा का सामयिक चित्रण ...संवेदनशील चित्रण हेतु आभार
थैंक यू .... शरद अंकल बच्चों को हमेशा बड़ों की रिस्पेक्ट करनी चाहिए
जवाब देंहटाएंअच्छी सी पोस्ट .....
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मेरे ब्लॉग पर है.... किताबों की दुनिया
http ://chaitanyakakona .blogspot .com
बहुत ही सुन्दर शब्द .....भावमय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशरद भाई
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन लेखन.....
बुजुर्गों से मुहब्बत बनाये रखना ज़रूरी है......अंतत: हम सबको भी एक दिन यहाँ तक आना ही है.......
पुराने दरख्तों का साया घना होता है..........
इस लेख के साथ यह कविता बहुत प्रभावशाली है .......!
कहीं भी अकेलेपन का जिक्र नहीं
पराजय का उल्लेख कहीं नहीं
कोई बात नहीं हताशा की
टूटन का कोई बयान नहीं
कोई प्रदर्शन नहीं
अपनों से मिले ज़ख्मों का
समय के साथ छूट गये पलों का
एक दूसरे की अनुपस्थिति से हुए
अनदेखे नुकसानों का कोई जिक्र नहीं