मंगलवार, मार्च 16, 2010

नवरात्रि प्रथम दिवस - फातिमा नावूत की कविता


 आज चैत्र की नवरात्रि का प्रथम दिन है । आज प्रथम दिवस पर प्रस्तुत है  मूल अरबी में लिखने वाली नील नदी के देश मिस्त्र की कवयित्री फातिमा नावूत की यह कविता ।
जब मैं कोई देवी बनूँगी


मैं निर्वसन कर दूँगी ग्लोब को
मानचित्र को धूल-धूसरित
इतिहास की पांडुलिपियों को पटक आऊँगी किसी और ठौर
तथा अक्षांश देशांतरों की लकीरों को पोंछकर
पृथ्वी को कर दूँगी सीमाओं से विमुक्त

मैं बराबर-बराबर बाँट दूँगी -
पहाड़
झरने
सोना , पेट्रोल , जलवायु और बादल
तत्पश्चात
थके - माँदे चेहरों पर फिराऊँगी अपने पंख
क्योंकि सफ़ेद , काले और पीले रंगों को पिघलाकर
मुझे गढ़नी है खूबानी के रंग वाली एक अलहदा नस्ल।
मैं परे कर  दूँगी  बोलियों , भाषाओं और ज़ुबानों को
और उन्हें अपनी दवात में घोल कर
बदल दूँगी एक उजले शब्दकोश में
जिसमें बुरे और बेहूदे शब्दों के लिए
नहीं होगी जरा - सी भी कोई जगह

मैं नियन्त्रित करूँगी सूरज का कोण
मूमध्य रेखा की सार - सँभाल करूँगी
थोड़ा सुधारूँगी बारिश के तंत्र को
और उसे बनाऊँगी न्यायसंगत
मेरे अनुयायी सराहना करेंगे
जब मैं फीता काटूँगी नई दुनिया का :
( साक्षी होंगे ! )
स्पार्टाकस , गोर्की , ग्वेवारा।

हकलाहट से भर जाएगी मेरी वाणी
जब प्रसन्न्ता से अभिभूत हो
इस संसार की वास्तुकला पर मैं करूँगी अपना काम

अभी तो
तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत में
एक क्षण के लिए रुक कर देखती हूँ सब कुछ
और उदास होकर
बनी रहने देती हूँ
इस दुनिया को उसकी पहले वाली शक्ल में -
यथावत
पूर्ववत
             -----फातिमा नावूत

* मिस्र में रहने वाली अरबी भाषा की  कवि और अनुवादक फातिमा नावूत  ( जन्म : १९६४ ) ने १९८७ में आइन शम्स विश्वविद्यालय , काहिरा  (मिस्र) से आर्कीटेक्चर में ग्रेजुएशन करने बद दस बरस तक एक कंसलटेन्सी कंपनी के साथ काम किया।बाद में उन्हें लगा लगा कि अब पूरा समय सृजन और अनुवाद को देना चाहिए। उनकी कब तक कुल दस किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से पाँच कविता संग्रह हैं और बाकी अनुवाद आलोचना  का महत्वपूर्ण काम है। वे कई नामी  पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी हैं तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के पोइट्री फेस्टीवल्स , जैसे रोटरडम  - २००७  , में हिस्सेदारी कर  चुकी हैं। फातिमा कई महत्वपूर्ण साहित्यिक संस्थाओं जैसे ईजिप्ट राइटर्स यूनियन, पोएट्स ऒफ वर्ल्ड ,ईजिप्शियन वीमेन राइटर्स  यूनियन आदि से जुड़ी़ हुई हैं। उनकी चर्चित किताबों में ' बॊटल ऒफ ग्लू ( कविता संग्रह ) और  'राइटिंग विद चॊक' ( आलोचना) के साथ जॊन रावेन्सक्राफ्ट वर्जीनिया वुल्फ के कथा साहित्य के अनुवाद  का उल्लेख किया जा सकता है।
मूल  कविता का अंग्रेज़ी से अनुवाद किया है कर्मनाशा ब्लॉग के श्री सिद्धेश्वर सिंह ने । मैं आभारी हूँ सिद्धेश्वर जी का जिन्होने यह कविता और कवि परिचय उपलब्ध करवाया है । फातिमा नावूत की अन्य महत्वपूर्ण कविताओं के लिये ब्लॉग कबाड़खाना और ब्लॉग अनुनाद भी देखें ।      
आज की यह प्रस्तुति आपको कैसी लगी ? कविता पर और मित्रों के इस प्रयास पर आपकी राय अवश्य जानना चाहूंगा मैं । नव वर्ष पर आप सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनायें - आपका शरद कोकास 
         

27 टिप्‍पणियां:

  1. ...बेहद प्रसंशनीय रचना है "फ़ातिमा जी" से परिचय हुआ, प्रभावशाली प्रस्तुति के लिये आभार!!!

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  2. बहुत ही प्रेरणाप्रद और सकारात्मक संदेश से भरपूर कविता ! फातिमाजी की इस कविता को सुलभ कराने के लिये आपका अभार और धन्यवाद !

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  3. फ़ातिमा जी को बहुत बधाई हिन्दी के प्रति इतना प्रेम और इस प्रकार की साहित्यिक रचना...बढ़िया कविता...सुंदर भाव..

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  4. शरद भाई, फातिमा नावूत जी से रू-ब-रू कराने के लिए आभार...

    दुनिया में खुशियों को सही तरीके से तकसीम कोई ख़ातून (महिला) ही कर सकती है...

    जय हिंद..

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  5. @विनोद जी मूल कविता तो अरबी मे ही है जिसका अंग्रेजी से अनुवाद सिद्धेश्वर जी ने किया है लेकिन फातिमा जी के भाषा पए विचार तो देखिये
    मैं परे कर दूँगी बोलियों , भाषाओं और ज़ुबानों को
    और उन्हें अपनी दवात में घोल कर
    बदल दूँगी एक उजले शब्दकोश में
    जिसमें बुरे और बेहूदे शब्दों के लिए
    नहीं होगी जरा - सी भी कोई जगह

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  6. बहुत उम्दा...सिद्धेश्वर जी ने बेहतरीन अनुवाद किया है.

    आपको नव संवत्सर की मांगलिक शुभकामनाएँ.

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  7. शरद जी-
    फ़ातिमा जी से परिचय करवाने के लिए आपका धन्यवाद्।
    आपको नवसंवत्सर की शुभकामनाएं।

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  8. उत्तम विचारों से लबालब रचना, दिल को छूती है।

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  9. सिद्धेश्वर जी बधाई के पात्र है

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  10. शुक्रिया इसको पढवाने के लिए वाकई बहुत ही बेहतरीन है यह

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  11. शरद जी इस बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार. फातिमा जी का परिचय अच्छा लगा उनके विचार उनकी सोच कितनी स्पष्ट और सकारात्मक है एक उर्जा से भरपूर है ये कविता. सिद्धेश्वर जी को अनुवाद के लिए धन्यवाद उन्ही की वजह से हम इसे पढ़ पाए.

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  12. आपको नव संवत्सर की मांगलिक शुभकामनाएँ.
    फ़ातिमा जी ओर उन की रचना से परिचय करवाने के लिये धन्यवाद

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  13. सर्व प्रथम आपको बहुत बहुत धन्यवाद इस नवरात्रि में भी शक्ति कि शक्तियों से रूबरू करवाने के लिए |
    फतिमाजी कि इस प्रेरनादायी रचना को हम तक पहुँचने का आभार|
    कल्पना कि सतह ढीट होती है ,कितु काश ये कल्पना यथार्थ हो जाये |
    बहुत सारी उर्जा देती सुन्दर कविता |
    फतिमाजी से परिचय करवाने के लिए पुनह आभार |

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  14. शरद भाई डरते-डरते ज़िम्मेदारी उठाने की कोशिश कर रहा हूं। फातिमा उन महिला कवियों में से हैं जिनके रचना संसार में औरत अपने आदमकद रूप में तो है लेकिन यह संसार सिर्फ़ उन तक ही महदूद नहीं। इस कविता को देखिये तो इसकी साफ़ अन्तर्ध्वनि यह है कि चूंकि अब तक इस दुनिया को वे मर्द चलाते रहे जिन्होंने ख़ुद ही आधी आबादी को उसके हक़ूक से बेदख़ल किया है तो यह लाजिम था कि बाकी चीज़ों के आपसी बंटवारे में भी ताक़त और रसूख का इस्तेमाल होता और यह बंटवारा, रहने का और राज करने का यह तौर गैरबराबरी वाला होना ही था।एक न्याय चेतना वाली औरत की नज़र से जब वह देखती है तो उसके लिये यह मर्दवादी विमर्श की प्रतिक्रिया में कोई औरतवादी विमर्श नहीं रचता बल्कि प्यार, सहयोग और बराबरी पर आधारित एक नई दुनिया का स्वप्न सामने आता है जिसमें चांद, तारे सब बराबर बंटने हैं और ऐसी दुनिया के साक्षी होने हैं वैसे ही उदात्त पुरुष - स्पार्टकस, गोर्की और चे…

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  15. ऊपर से 8 वीं लाईन में रचता की जगह रचतीं पढ़ें…

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  16. sharad ji, fatima ji ki is kavita ko padhte - pahte hamne is aaj ke mahila arakshan se jod liya....fir sawal uthey...kaun mahila? wo jo mayawati hai ya fir wo jo mamta hai....kya ye akshansh aur deshantar ki seemaon ko mitayengi ?

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  17. padhwane aur milwane ke liyaa aapki aabhari hun.........behad khoobsoorat bhavo se saji rachna hai.

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  18. ‘मेरे अनुयायी सराहना करेंगे’
    यह पंक्ति और अंत का भाव अच्छा नहीं लगा। शीर्षक भी। पर उपरोक्त दोनों बातें इसी शीर्षक के अंतर्गत सहज पैदा हुई कमजोरियां हैं।
    मिथकीय वर्तमान से, मिथकीय कल्पना में दोलन।

    इससे विलग एक श्रेष्ठ कविता, जो कई आयामों को एक साथ छूती है और पाठक की चेतना को आंदोलित करती है। फ़ातिमा नावूत की यह कविता वाकई एक अंतर्राष्ट्रीय सरोकारों की कविता है।

    शुक्रिया।

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  19. कवयित्री एक ओर नयी दुनिया का फीता भी काट रही है दूसरी और उसे यथावत बने रहने देना भी चाहती है ......ऐसा क्यों .....???

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  20. @हरकीरत जी अभी तो
    तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत में
    एक क्षण के लिए रुक कर देखती हूँ सब कुछ
    और उदास होकर
    बनी रहने देती हूँ
    इस दुनिया को उसकी पहले वाली शक्ल में -
    यथावत
    पूर्ववत इसे एक साथ देखा जाये तो उस उत्कट आशावाद के बरक्स कवि को तुरंत सामने दिख रहा भविष्य वर्तमान से भी अधिक भयावह लगता है इसीलिये वह ऐसा कह रही है…वह युद्ध तो नहीं ही चाहती।

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  21. shobhna ji ke vichar is rachna ke jo rahe achchhe lage ,mujhe ye kalpana bahut hi saarthak nazar aai ,kyonki sudhaar ke liye josh aur lagan behad jaroori hai ,shakti ka sadupyog kuchh is tarah hi hona chahiye ,jisse vishya kalyaan ho sake .raaste hamaare vichar hi sujhate hai aur manjil ise hum sabhi ke sahyog se milti hai .wo kahte hai ek akela thak jaayega milkar bojh uthaana ,fatima ji ki khwahish har nek insaan ke dil me palti hai ,jo duniya ko isi rang me dekhna chahta hai ,hridya sparshi rachna mere man par gahri chhap chhod gayi ,sharad ji shukriya is behtrin kavita ke liye .

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  22. कविता में जो इच्छाऐं व्यक्त की गयी है, क्या ऐसा घटित हो पाता है किसी के जीवन में क्षण मात्र के लिये भी ? डर है कि नयी दुनियाँ फिर उसी राह पर न चल परे, किसी दूसरे रूप में, शायद ऐसा ही होता आया है हमेशा से ।

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  23. फ़ातिमा जी से परिचय करवाने के लिए आपका धन्यवाद्!!
    उच्यकोटि की रचना है और उतना ही सुन्दर अनुवाद भी ....

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  24. मासूम मन की सफल अभिव्यक्ति है.
    आपने जिस काम की शुरुवात की है उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं.
    जरूरी कविता पढ़ने से छूट रही थी...अब नहीं छूटे इसका इंतजाम तो करना ही पड़ेगा.

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  25. Fatima ji se aapne hamara prichay karwaaya
    aapki hriday se aabhari hun,,
    kavita bahut hi ucchkoti ki lagi,
    ek prernadaayak kavita lagi..
    aabhaar..

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  26. सिद्धेश्वर जी ने बेहतरीन अनुवाद किया है.
    बड़ी मन से निकली कविता लगी --
    काश ! कवियत्री का स्वप्न सच हो जाए तो...
    स स्नेह,
    - लावण्या

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  27. बहुत उम्दा शुरूआत!
    फातिमा नावूत जी ने जितनी अच्छी कविता रची,
    उतना ही अच्छा अनुवाद किया सिद्धेश्वर जी ने!

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