नवरात्रि के प्रथम दिन प्रकाशित फातिमा नावूत की कविता पर खुशदीप सहगल ने कहा दुनिया में खुशियों को सही तरीके से तकसीम कोई ख़ातून (महिला) ही कर सकती है. श्याम कोरी 'उदय' ,विनोद कुमार पाण्डेय , रंजना , राज भाटिय़ा और साधना वैद और वन्दना को यह कविता बहुत पसन्द आई . कुलवंत हैप्पी ने कहा उत्तम विचारों से लबालब रचना, दिल को छूती है डॉ .अनुराग व समीर लाल ने सिद्धेश्वर जी के अनुवाद की प्रशंसा की । रचना दीक्षित ने कहा फातिमा जी की सोच कितनी स्पष्ट और सकारात्मक है एक उर्जा से भरपूर है ये कविता। रानी विशाल ,ज्योति सिंह ,प्रिया,ललित शर्मा,शोभना चौरे ने कहा सर्व प्रथम आपको बहुत बहुत धन्यवाद इस नवरात्रि में भी शक्ति कि शक्तियों से रूबरू करवाने के लिए |चंदन कुमार झा ने कहा कविता में जो इच्छाऐं व्यक्त की गयी है, क्या ऐसा घटित हो पाता है किसी के जीवन में क्षण मात्र के लिये भी ? समय ने कहा ‘मेरे अनुयायी सराहना करेंगे’ यह पंक्ति और अंत का भाव अच्छा नहीं लगा। शीर्षक भी। पर उपरोक्त दोनों बातें इसी शीर्षक के अंतर्गत सहज पैदा हुई कमजोरियां हैं । अपनी विशेष टिप्पणी मे अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा इस कविता को देखिये तो इसकी साफ़ अन्तर्ध्वनि यह है कि चूंकि अब तक इस दुनिया को वे मर्द चलाते रहे जिन्होंने ख़ुद ही आधी आबादी को उसके हक़ूक से बेदख़ल किया है तो यह लाजिम था कि बाकी चीज़ों के आपसी बंटवारे में भी ताक़त और रसूख का इस्तेमाल होता और यह बंटवारा, रहने का और राज करने का यह तौर गैरबराबरी वाला होना ही था। हरकीरत हीर ने सवाल किया कवयित्री एक ओर नयी दुनिया का फीता भी काट रही है दूसरी और उसे यथावत बने रहने देना भी इसके जवाब मे अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा ..हरकीरत जी अभी तो इसे एक साथ देखा जाये तो उस उत्कट आशावाद के बरक्स कवि को तुरंत सामने दिख रहा भविष्य वर्तमान से भी अधिक भयावह लगता है इसीलिये वह ऐसा कह रही है ।
और आज नवरात्रि के दूसरे दिन प्रस्तुत है कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविता । पोलैंड की कवयित्री ,निबन्धकार व अनुवादक विस्वावा शिम्बोर्स्का का जन्म 2 जुलाई 1923 को हुआ था । उन्हे वर्ष 1996 का साहित्य का नोबल पुरस्कार मिल चुका है ।
बायोडाटा लिखना
क्या किया जाना है ?
आवेदनपत्र भरो
और नत्थी करो बायोडाटा
जीवन कितना भी बड़ा हो
बायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते हैं.
स्पष्ट, बढ़िया, चुनिन्दा तथ्यों को लिखने का रिवाज़ है
लैंडस्केपों की जगह ले लेते हैं पते
लड़खड़ाती स्मृति ने रास्ता बनाना होता है ठोस तारीख़ों के लिए.
अपने सारे प्रेमों में से सिर्फ़ विवाह का ज़िक्र करो
और अपने बच्चों में से सिर्फ़ उनका जो पैदा हुए
तुम्हें कौन जानता है
यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि तुम किसे जानते हो.
यात्राएं बस वे जो विदेशों में की गई हों
सदस्यताएं कौन सी, मगर किसलिए - यह नहीं
प्राप्त सम्मानों की सूची, पर ये नहीं कि वे कैसे अर्जित किए गए.
लिखो, इस तरह जैसे तुमने अपने आप से कभी बातें नहीं कीं
और अपने आप को ख़ुद से रखा हाथ भर दूर.
अपने कुत्तों, बिल्लियों, चिड़ियों,
धूलभरी निशानियों, दोस्तों, और सपनों को अनदेखा करो.
क़ीमत, वह फ़ालतू है
और शीर्षक भी
अब देखा जाए भीतर है क्या
उसके जूते का साइज़
यह नहीं कि वह किस तरफ़ जा रहा है-
वह जिसे तुम मैं कह देते हो
और साथ में एक तस्वीर जिसमें दिख रहा हो कान
- उसका आकार महत्वपूर्ण है, वह नहीं जो उसे सुनाई देता है.
और सुनने को है भी क्या ?
-फ़क़त
काग़ज़ चिन्दी करने वाली मशीनों की खटरपटर.
क्या किया जाना है ?
आवेदनपत्र भरो
और नत्थी करो बायोडाटा
जीवन कितना भी बड़ा हो
बायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते हैं.
स्पष्ट, बढ़िया, चुनिन्दा तथ्यों को लिखने का रिवाज़ है
लैंडस्केपों की जगह ले लेते हैं पते
लड़खड़ाती स्मृति ने रास्ता बनाना होता है ठोस तारीख़ों के लिए.
अपने सारे प्रेमों में से सिर्फ़ विवाह का ज़िक्र करो
और अपने बच्चों में से सिर्फ़ उनका जो पैदा हुए
तुम्हें कौन जानता है
यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि तुम किसे जानते हो.
यात्राएं बस वे जो विदेशों में की गई हों
सदस्यताएं कौन सी, मगर किसलिए - यह नहीं
प्राप्त सम्मानों की सूची, पर ये नहीं कि वे कैसे अर्जित किए गए.
लिखो, इस तरह जैसे तुमने अपने आप से कभी बातें नहीं कीं
और अपने आप को ख़ुद से रखा हाथ भर दूर.
अपने कुत्तों, बिल्लियों, चिड़ियों,
धूलभरी निशानियों, दोस्तों, और सपनों को अनदेखा करो.
क़ीमत, वह फ़ालतू है
और शीर्षक भी
अब देखा जाए भीतर है क्या
उसके जूते का साइज़
यह नहीं कि वह किस तरफ़ जा रहा है-
वह जिसे तुम मैं कह देते हो
और साथ में एक तस्वीर जिसमें दिख रहा हो कान
- उसका आकार महत्वपूर्ण है, वह नहीं जो उसे सुनाई देता है.
और सुनने को है भी क्या ?
-फ़क़त
काग़ज़ चिन्दी करने वाली मशीनों की खटरपटर.
- विस्वावा शिम्बोर्स्का
यह कविता कबाड़खाना ब्लॉग के श्री अशोक पाण्डेय के सौजन्य से प्राप्त हुई है और इसका यह बेहतरीन अनुवाद भी उन्होने ही किया है । यह कविता आपको कैसी लगी ..आपके विचार सादर आमंत्रित हैं - शरद कोकास
क़ीमत, वह फ़ालतू है
जवाब देंहटाएंऔर शीर्षक भी
अब देखा जाए भीतर है क्या
उसके जूते का साइज़
यह नहीं कि वह किस तरफ़ जा रहा है-
वह जिसे तुम मैं कह देते हो
और साथ में एक तस्वीर जिसमें दिख रहा हो कान
- उसका आकार महत्वपूर्ण है, वह नहीं जो उसे सुनाई देता है.
और सुनने को है भी क्या ?
behtreen bahut hi sunder
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण कविता है। इस युग के छद्म को उद्घाटित करती हुई।
जवाब देंहटाएंलिखो, इस तरह जैसे तुमने अपने आप से कभी बातें नहीं कीं
जवाब देंहटाएंऔर अपने आप को ख़ुद से रखा हाथ भर दूर.
सच है...खुद को भी बस उतना ही देखते हैं जितना..दूसरों को दिखाना चाहते हैं.
अच्छी कविता का सुन्दर अनुवाद
कमाल के एहसास हैं इस रचना में ..सच को उजागर करती यह रचना बहुत पसंद आई शुक्रिया इसके अनुवाद को पढवाने के लिए
जवाब देंहटाएंएक छोटा सा बायोडाटा जीवन की कितनी कमजोरियो का पर्दाफाश कर देता है, एक छोटा सा बायोडाटा बताता है कि आदमी ने कितने समझौते किये ज़िन्दगी से। पर हम कहाँ खोज पाते / खोजना चाहते है इन कमजोरियो / समझौतो को, । ढ़ोते रहते है इन्हें ज़िन्दगी भर अपने साथ ।
जवाब देंहटाएंशरद भाई,
जवाब देंहटाएंनवरात्र पर शक्ति की देवी की उपासना का इससे अच्छा और रचनात्मक तरीका और कोई हो ही नहीं सकता था...ब्लॉगिंग में मैं जब से आया हूं, मेरी नज़र में आपका ये प्रयास अल्टीमेट है...विस्वावा शिम्बोर्स्का तो मेरी प्रिय कवयित्री है...आज उनसे रू-ब-रू कराने के लिए साधुवाद...कल के इंतज़ार में...
जय हिंद...
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंलिखो, इस तरह जैसे तुमने अपने आप से कभी बातें नहीं कीं
जवाब देंहटाएंऔर अपने आप को ख़ुद से रखा हाथ भर दूर.
बहुत ही सहजता के साथ व्यक्त गहरे भाव लिये हुये बेहतरीन रचना, प्रस्तुत करने के लिये बधाई सहित आभार ।
विस्वावा शिम्बोर्स्का हिन्दी के पाठकों के लिये भी कोई नया नाम नहीं हैं। अनुवादों के माध्यम से उनकी अनेकों कवितायें यहां तक पहुंच चुकी हैं। नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखकों के साथ ऐसा होता ही है कि वे भाषा की परिधि लांघ जाते हैं। दुनिया भर में उनके काम को देखा और परखा जाने लगता है।
जवाब देंहटाएंशिम्बोर्स्का की सबसे बड़ी खूबी है किसी भी साधारण से विषय को उठाकर उसे एक अत्यंत समृद्ध और अर्थवान कविता में तब्दील कर देने की अद्भुत क्षमता। उनकी एक कविता गणितीय पाई पर है…ख़ैर अगर बात इस कविता की करें तो यह मनुष्य के जीवन के ज़रूरी और आलंकारिक सत्य को अलग-अलग कर उद्घाटित कर देती है। हम सब जिस ज़िंदगी को जीना चाहते हैं, जिन गुणों को अर्जित करने में सबसे ज़्यादा ख़ुशी महसूस करते हैं बाज़ार में अक्सर उसकी क़ीमत नहीं होती। एक कवि मित्र अक्सर यह क़िस्सा सुनाते थे कि एक बार जब यह पूछने पर कि आप करते क्या हैं उन्होंने कहा कवि हूं तो अगले ने पूछा कवि तो ठीक पर करते क्या हैं?
यह कविता उसी द्वंद्व की महाकाव्यात्मक अभिव्यक्ति है। जो लोग यह मानकर चलते हैं कि अनुवाद कविता का पूरा मज़ा नहीं लेने देता वे भी अगर पूर्वाग्रह से मुक्त हो इसे हिन्दी में लिखी कविता समझकर पढ़ेंगे तो निश्चित तौर पर अशोक भाई के स्तुत्य श्रम को पहचान पायेंगे।
तुम्हें कौन जानता है
जवाब देंहटाएंयह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि तुम किसे जानते हो.
कितनी सुन्दर और सार्थक बात!!
किसी कविता का इतना सटीक और सरल अनुवाद...बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं अशोक जी. हमें विभिन्न देशों की कवियत्रियों और उनकी कविताओं से रूबरू कराने के लिये आपका जितना धन्यवाद करें, कम है.
शरद जी, विदेशी कवियो को आप अपने ब्लाग द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं सराहनीय प्रयास है.इतनी सुंदर, भावपूर्ण कविता के लिये आपको एवं अशोक जी को धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंजीवन कितना भी बड़ा हो
जवाब देंहटाएंबायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते हैं.
-कितनी गहरी बात!
बहुत अच्छी लगी रचना.
पुनः अशोक जी द्वारा किया गया अनुवाद बहुत पसंद आया.
बेहतरीन ....
जवाब देंहटाएंबहुत ज़रूरी काम कर रहे हैं आप ..... बधाई ......
और कविताओं का इंतज़ार है ....
कविता की व्यंग्यात्मक शैली अद्भुत है. सबसे बड़ी बात यह कि आज भी यह प्रासंगिक है और कल भी रहेगी.शायद इसे ही कालजयी कविता कहते हैं. आदमी के दोहरे जीवन को अभिव्यक्त करती इस कविता के लिए आपका और कबाड़खाना ब्लॉग के श्री अशोक पाण्डेय जी का आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इतनी सुंदर रचना पढ़वाने के लिए.
जवाब देंहटाएंतुम्हें कौन जानता है
जवाब देंहटाएंयह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि तुम किसे जानते हो.
यात्राएं बस वे जो विदेशों में की गई हों
सदस्यताएं कौन सी, मगर किसलिए - यह नहीं
प्राप्त सम्मानों की सूची, पर ये नहीं कि वे कैसे अर्जित किए गए.
शरद जी आज फिर से, क्या नवरात्रों में आज के युग की नवदुर्गाओं से परिचय करवाने की मुहीम छेड़ी है यकीन माने बहुत बेहतरीन है ये प्रस्तुति भी. कितनी शालीनता से इतना कटु सत्य उजागर कर दिया इस कविता में. शायद कल एक और कड़ी ????????????
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जवाब देंहटाएंजीवन कितना भी बड़ा हो
जवाब देंहटाएंबायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते हैं
kitni shjta se jeevan ki upyogita ko spsht kar diya hai .
is amuly kvita ko pdhvane ke liye dhnywad.
तुम्हें कौन जानता है
जवाब देंहटाएंयह अधिक महत्वपूर्ण है बजाए इस के कि तुम किसे जानते हो.
वाह ...कितना सुन्दर लिखा है ये विस्वावा शिम्बोर्स्का जी ने
खुशी है........... हम उनको जानते हैं !
स स्नेह,
- लावण्या
जीवन कितना भी बड़ा हो
जवाब देंहटाएंबायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते हैं.
बहुत सुन्दर कविता. आनन्द आ गया पढ़ कर.
नवरात्रि-दिवस विशेष की कवितायें आज देख-पढ़ रहा हूँ ! उल्लेखनीय काम है यह आपका । दुर्लभ कृतित्व है इन विभूतियों का ! हिन्दी के बाहर की कविता से इतना सहज-सुन्दर परिचय कराने का आभार ।
जवाब देंहटाएंबायोडाटा के माध्यम से एक उत्कृष्ट रचना!
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कविता कितनी भी बड़ी क्यों न हो,
टिप्पणी छोटी ही अच्छी मानी जाती है!