आज देश में नयी भोर है नयी भोर का समारोह है
कवि शील का जन्म 15 अगस्त 1914 ई. में कानपुर ज़िले के पाली गाँव में हुआ । शील जी सनेही स्कूल के कवि हैं वे आज़ादी के आन्दोलन में कई बार जेल गये । गान्धीजी के प्रभाव मे “चर्खाशाला” लम्बी कविता लिखी । व्यक्तिगत सत्याग्रह से मतभेद होने के कारण गान्धी का मार्ग छोड़ा तथा भारतीय कम्यूनिस्टपार्टी में शामिल हुए । “मज़दूर की झोपड़ी” कविता रेडियो पर पढ़ने के कारण लखनऊ रेडियो की नौकरी छोड़नी पड़ी ।चर्खाशाला,अंगड़ाई,एक पग, उदय पथ,लावा और फूल , कर्मवाची शब्द आपकी काव्य रचनायें है तथा तीन दिन तीन घर,किसान,हवा कारुख,नदी और आदमी,रिहर्सल,रोशनी के फूल,पोस्टर चिपकाओ आदि आपके नाटक हैं ।उनके कई नाटकों को पृथ्वी थियेटर द्वारा खेला गया यहाँ तक कि रशिया में भी उनके शो हुए तथा राजकपूर ने उनमें अभिनय किया । यह कविता उन्होने 14 अगस्त 1947 की रात को लिखी थी जिसे ठीक 62 वर्ष बाद उसी समय मै यहाँ ब्लॉग पर उतार रहा हूँ ।-- शरद कोकास
15 अगस्त 1947
आज देश मे नयी भोर है-
नयी भोर का समारोह है
आज सिन्धु-गर्वित प्राणों में
उमड़ रहा उत्साह
मचल रहा है
नये सृजन के लक्ष्य बिन्दु पर
कवि के मुक्त छन्द-चरणों का
एक नया इतिहास ।
आज देश ने ली स्वंत्रतता
आज गगन मुस्काया ।
आज हिमालय हिला
पवन पुलके
सुनहली प्यारी-प्यारी धूप ।
आज देश की मिट्टी में बल
उर्वर साहस-
आज देश के कण कण
ने ली
स्वतंत्रता की साँस ।
युग-युग के अवढर योगी की
टूटी आज समाधि
आज देश की आत्मा बदली
न्याय नीति संस्कृति शासन पर
चल न सकेंगे-
अब धूमायित-कलुषित पर संकेत
एकत्रित अब कर न सकेंगे ,श्रम का सोना
अर्थ व्यूह रचना के स्वामी
पूंजी के रथ जोत ।
आज यूनियन जैक नहीं
अब है राष्ट्रीय निशान
लहराओ फहराओ इसको
पूजो-पूजो- पूजो इसको
यह बलिदानों की श्रद्धा है
यह अपमानों का प्रतिशोध
कोटि-कोटि सृष्टा बन्धुओं को
यह सुहाग सिन्दूर ।
यह स्वतंत्रता के संगर का पहला अस्त्र अमोध
आज देश जय-घोष कर रहा
महलों से बाँसों की छत पर नयी चेतना आई
स्वतंत्रता के प्रथम सूर्य का है अभिनंदन-वन्दन
अब न देश फूटी आँखों भी देखेगा जन-क्रन्दन
अब न भूख का ज्वार-ज्वार में लाशें
लाशों में स्वर्ण के निर्मित होंगे गेह
अब ना देश में चल पायेगा लोहू का व्यापार
आज शहीदों की मज़ार पर
स्वतंत्रता के फूल चढ़ाकर कौल करो
दास-देश के कौतुक –करकट को बुहार कर
कौल करो ।
आज देश में नयी भोर है
नयी भोर का समारोह है ।
(रात्रि 14 अगस्त 1947 )
शरद जी,
जवाब देंहटाएंवह नई भोर न जाने कहाँ गायब हो गई। शील के सपने जो इस देश का निर्माण करने वाले मेहनतकश किसानों, मजदूरों और आम जनता के भी सपने थे। टूट कर चकनाचूर हो चुके हैं। उन के कण तो अब मिट्टी में भी तलाश करने पर भी नहीं मिलेंगे।
झूठी थी वह आजादी! कल देश उसी झूठी आजादी का जश्न मनाएगा। वह जश्न सरकारी होगा या फिर उस झूठ के असर में आए हुए लोग कुछ उत्साह दिखाएंगे। करोड़ों भारतियों के दिल में आजादी की इस 62वीं सालगिरह पर उत्साह क्यों नहीं है। इस की पड़ताल उन्हीं करोड़ों श्रमजीवियों को करनी होगी। उन के सपने टूटे हैं। लेकिन उन्हों ने सपने देखना नहीं छोड़ा है। वे फिर भी सपने देखते हैं। उन सपनों के लिए, उन्हें साकार करने के लिए, एक नई आजादी हासिल करने के लिए एक लड़ाई और लड़नी होगी। लगता है यह लड़ाई आरंभ नहीं हुई। पर यह भ्रम है। लड़ाई तो सतत जारी है। बस फौजें बिखरी बिखरी हैं। उन्हें इकट्ठा होना है। इस जंग को जीतना है।
आओं इस मिथ्या आजादी की सालगिरह पर हम मेहनतकश, अपने सपनों को साकार करने वाली उस नयी आजादी को हासिल करने के लिए इकट्ठे हों। जिस दिन हम उसे हासिल कर लेंगे। आजादी के इस जश्न में सारा भारत दिल से झूमेगा। भारत ही क्यों पूरी दुनिया झूम उठेगी।
मै यह तो नही मानता कि वह आजादी झूठी थी जो १५ अगस्त १९४७ को मिली लेकिन यह तो सच है ही शहीदों और क्रांतिकारियों का सपना नही पूरा हुआ.
जवाब देंहटाएंशील क्रांतिधर्मी और स्वप्नदर्शी कवी-कार्यकर्ता थे. उन्हें इस अवसर पर याद कर आपने बड़ा काम किया है. आभार.
kya kahe ............ek utkrisht rachana
जवाब देंहटाएंशील को आजादी की सालगिरह पर याद कर आपने बड़ा काम किया है...बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंपूरा आलेख सुन्दर है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें और बधाई।
बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना बहुत अच्छा लगा! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंमेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com