रविवार, नवंबर 08, 2009

आसान नहीं है किसी जवान मौत को बर्दाश्त कर लेना


 बस बीस –इक्कीस साल उम्र थी अनिकेत की । मेरे  मित्र अशोक कृष्णानी का बेटा जो अभी चार दिन पहले एक छोटे से स्टेशन पर न जाने किस उहापोह में रेल की पटरी पार करते हुए तेज़ गति से आती हुई रेल से टकरा गया । अच्छा खासा निकला था घर से और एक दिन बाद उसकी यह खबर आई । खबर के सदमे  से उबर नहीं पाये थे कि बैंडेज में लिपटी उसकी मृत देह आ गई । बगैर उसका चेहरा देखे उसका अंतिम संस्कार ..उफ.. इतनी बड़ी सज़ा ? कल्पना भी जिस दृश्य की असम्भव उसे सच होते हुए देखना ? कठिन है ।
एक भयावह सी शांति पसरी हुई है उस घर में ,मौत जहाँ दस्तक दे चुकी है । सब जानते हैं कि उसके जीवन की यात्रा बीच में ही समाप्त  हो चुकी  है लेकिन माँ –बाप और दो छोटी बहनों को क्या कहें ..उनकी निगाहें अभी भी सड़क की ओर लगी है ,उन्हे अभी भी आस है कि शायद वह घर लौटकर आ जाये ।
            अपने मित्र के आँसू पोंछकर चार दिनों बाद लौटा हूँ तो कुछ सूझ नहीं रहा है । याद आ रहे हैं अनिकेत जैसे बहुत सारे युवा जो घर से पिकनिक मनाने निकले और किसी नदी ,बावड़ी में डूब गये । कुछ जो तेज़ गति से चलने वाली बाइक पर सवार होकर हवा से बातें करते हुए निकले और किसी ट्रक से टकरा कर हवा में विलीन हो गये । कुछ जिन्होंने जीवन को खेल समझ लिया और नादानी में मौत के साथ यह खेल खेल गये  । कुछ युवा जो देश की रक्षा के लिये निकले और मोर्चे पर शहीद हो गये ।
फिर याद आये वे ढेर सारे बच्चे ,भूख और बीमारियाँ  जिन्हे निगल गई , और दंगे, बाढ़ ,भूकम्प ,अकाल और बम धमाकों में असमय काल के गाल में समा जाने वाले अनेक बच्चे,युवा और बुज़ुर्ग ।
आसान नहीं है ,मौत को इस तरह से स्वीकार कर लेना । सारे उपदेश .नीतिवाक्य ,और समझाने बुझाने की बातें धरी रह जाती हैं जब किसी बाप के कन्धे पर जवान बेटे की अर्थी दिखाई देती है ।
मै क्या कहूँ ... इतना ही कह पाया यह क्या कम है । एक कविता जो शायद मेरी भावनाओं को और आप की सम्वेदनाओं को शब्द दे सके ....



                                                           कठिन है

आसान नहीं है
किसी बच्चे की मौत का
दुख बर्दाश्त कर लेना
अनदेखे सपनों की पिटारी को
डेढ़ हाथ की कब्र में दफना आना

आसान तो नहीं है
किसी बरगद बुज़ुर्ग की मौत पर
आँसू पी जाना
यकायक छाँव गायब पाना
अपने सर से

आसान नहीं है
बिलकुल भी
किसी जवान मौत को
सदमे की तरह
बर्दाश्त कर लेना
ज़िम्मेदारियों के पहाड़ों से
मुँह चुराकर निकल जाना

बहुत कठिन है
बहुत बहुत कठिन
उनकी छोड़ी हुई
दुनियाओं के बारे में सोचना
और..


चट्टानों की तरह
अपनी जगह पर टिके रहना ।

                        - शरद कोकास

42 टिप्‍पणियां:

  1. सही है इस सदमे को वही जानता है जिस ने करीब से इसे देखा है।

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  2. शरद जी मेरे पास आज कोई शव्द नही..... काश किसी भी मां बाप को यह दिन ना देखना पडॆ.... जवान बेटे की... भगवान उस मां बाप को साहरा दे, हिम्मत दे इस दुख सहने कि , यह ऎसा जख्म है जो अंतिम समय तक रिश्ता रहता है... बस ओर नही लिखा जाता अनिकेत कृष्णानी तुम्हारी आत्मा को शांति मिले... लेकिन जाने से पहले अपने मां बाप के बारे तो सोचते.....

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  3. अनुभूति की सघनता एवं संवेदना के संश्लिष्ट प्रभाव से युक्त रचना मर्मस्पर्शी है

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  4. मात्र बीस इक्कीस वर्ष की उम्र में किसी की मौत .. बहुत दुखद घटना है .. ईश्‍वर आपके मित्र और उनके परिवार को इस दुख को सह पाने की क्षमता दें ..वैसे सचमुच आसान नहीं है .. मौत को इस तरह से स्वीकार कर लेना!!

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  5. बहुत कठिन है
    बहुत बहुत कठिन
    उनकी छोड़ी हुई
    दुनियाओं के बारे में सोचना
    और..


    चट्टानों की तरह
    अपनी जगह पर टिके रहना ।

    दुःख हुआ यह जान कर........ कविता के माध्यम से संवेदना को बहुत मार्मिकता से पेश किया है आपने.

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  6. अपने घर में यह अकाल-छाया देख चुका हूं। आसान नहीं कुछ भी।
    आपके मित्र को यह दुख सहने की शक्ति मिले, यही कामना करता हूं।

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  7. मृत्यु जीवन का एक अमित तथ्य है और जब यह
    बहुत नजदीक से घटित होती है तो सत्य का मार्मिक
    स्वरुप ले कर और दुखद हो जाती है | ऐसी स्थिति
    में एक मृत्यु अपना बृहत्तर दायरा ले लेती है और
    मार्मिक भावाभिव्यक्ति कविता बन जाती है |आ.रामचंद्र
    शुक्ल के शब्दों में शेष विश्व के साथ रागात्मक सम्बन्ध
    की रक्षा और निर्वाह यही है यानि कविता का कार्य |
    मार्मिक कविता ..........

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  8. बहुत बहुत कठिन
    उनकी छोड़ी हुई
    दुनियाओं के बारे में सोचना
    और..

    चट्टानों की तरह
    अपनी जगह पर टिके रहना ।
    वस्तुत: जो टिके हुए दिखते है वे भी ऐसी परिस्थिति मे अन्दर से खिसके हुए होते है
    हार्दिक सम्वेदना

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  9. विचलित करने वाली खबर. इंसान चट्टान तो नही बन सकता, पर दर्द बाँट ज़रूर सकता है. समस्त शोकाकुलों के प्रति हार्दिक सम्वेदनाएं!

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  10. इस तरह के सदमे को बर्दाश्त करना बहुत ही कठिन होता है ! बहुत दुखद घटना है! भगवान आपके मित्र एवं उनके परिवार को इस दुःख को सहने की शक्ति प्रदान करें यही कामना करती हूँ !

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  11. जवान कि मौत जिसने देखी है उसी को मालुम होता है उसका दर्द कि दिन रात सा दिखाई देता है .. आपकी कविता ने फिर उस वेदना का एहसास कराया संवेदना कि गहरी अनुभूति तक जाने की आपकी कोशिश सफल है . बधाई

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  12. बाद में देखा कि आप तो इस पीडा को आँखों से देख कर लौटे हैं .. बहुत दुखद है .

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  13. सचमुच, जिस पर बीतती है, वही उस दर्द को जानता है, इस मौत का भी कोई भरोषा नहीं होता, जाने कब आ जाए ? भगवान् उन माता पिता को हिम्मत दे !
    बहुत कठिन है

    बहुत बहुत कठिन

    उनकी छोड़ी हुई

    दुनियाओं के बारे में सोचना

    और..

    चट्टानों की तरह

    अपनी जगह पर टिके रहना

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  14. उफ़
    सुनकर अंदर तक हिल गया
    बेहद मुश्किल है शरद भाई…बेहद

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  15. जवान बेटॆ की मौत सहना, बेहद पीड़ादायक है।
    मैंने बोरिवली स्टेशन पर कितनी ही लाशें स्ट्रेचर पर देखी हैं जो कि ट्रेन से कट गये थे, इन स्ट्रेचरों के नीचे उनके जूते जो कि बड़ी बड़ी कंपनियों के दिखते थे, उससे पता चलता था कि किसी पढ़े लिखे और पैसे वाले परिवार के किसी जवान की मौत हो गई है। हमें बहुत सदमा लगा यह सब देखकर और बस हमने कसम खा ली कि कभी भी ट्रेन की पटरी पार नहीं करेंगे, केवल २ मिनिट की जल्दी हमारी जिंदगी की कीमत से ज्यादा तो नहीं। मेरे घर पर मेरे बीबी और मेरा बच्चा इंतजार कर रहा है। वहाँ दूर शहर में मेरे अभिभावक सोच रहे हैं कि मेरा बेटा ठीक होगा। ये सब मेरे बिना कैसा महसूस करेंगे, यह सोचकर ही सिहर उठता हूँ, इसलिए मैं किसी भी ऐसी जगह जहाँ जान जाने की ज्यादा संभावनाएँ होती हैं, सावधानी बरतता हूँ, घर से द्स मिनिट पहले निकलो पर जल्दी मत करो। यही सोचता हूँ, कि जवान मौत से कितना सदमा लगता है।

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  16. सचमुच बहुत कठिन है ....
    ईश्वर अनिकेत की आत्मा को शांति प्रदान करे और उसके माता पिता को यह दुःख बर्दाश्त करनी का बल ..

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  17. क्या कहूँ शरद जी ....ऐसी मौतें वर्षों की खामोशी दे जातीं हैं ....कुछ ही माह पहले यहाँ भी ऐसी ही मौत हुई थी तब मैंने भी सोचा था कुछ लिखूं ...बिलकुल अभी अभी जवान हुआ लड़का उम्र १६ , १७ वर्ष साथ में उसके ही ताऊ का लड़का उम्र २० , २२ कार में शराब के नशे में धूत ....रस्ते में पुलिस द्बारा गाड़ी रोकी जाती है ....वो मोड़ लेकर और जोर से भागने की कोशिश में दूसरी ओर से आते ट्रक से टकरा जाते हैं ....नतीजा दोनों की मौत ....पर पीछे इकलौते बेटे की माँ की जो हालत देखी भुलाये नहीं भूलती ....उसकी तो जैसे तमाम खुशियाँ ही छीन गई हैं ....आप भी उसी सदमें से गुज़र कर आये हैं .....

    बहुत कठिन है
    बहुत बहुत कठिन
    उनकी छोड़ी हुई
    दुनियाओं के बारे में सोचना
    और..
    चट्टानों की तरह
    अपनी जगह पर टिके रहना ।

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  18. सच कहा शरद जी ......... जिस पर बीती है वो ही जानता है .... भगवान् किसी को ऐसा दिन न दुखाये ...... आपने बहुत ही मार्मिक लिखा है .....

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  19. दु:खद क्षण रहा होगा, कैसे यह आघात सहा होगा, ईश्‍वर किसी के साथ इस तरह की अनहोनी न करे, जिन माता-पिता पर बीती उनका रूदन तो अभी थमा ना होगा परन्‍तु आपने जिस मार्मिकता से इसे प्रस्‍तुत किया, वह भावुक कर गया, ईश्‍वर से यही प्रार्थना है अनिकेत की आत्‍मा को शांति मिले व उनके माता-पिता को इस दुख को सहने का संबल ।

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  20. सचमुच बहुत कठिन है कुछ भी कहना। शरद जी पढ़ कर आँखे नम हो गई हैं।

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  21. बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और दुखदायी घटना.
    मात- पिता के लिए जिंदगी भर का दुःख दे जाती हैं, ऐसी दुर्घटनाएं.
    काश, बच्चे समझ सकें इन बातों को.

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  22. aniket ki aatma ko shanti mile aur ishvar unke ma pita ko dukh shne ki shkti de .akal mrtyu bhi shayd isi ko kahte hai aur is par kisi ka bas bhi to nahi .aaj ki is bhagti dodti jindgi ki rec ka ye bhi ak ang ho gya hai .

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  23. vyathit ho jata hoon sharrad bhaiya . lekin ek baat kahna bhi chahata hoon ... kishor vaya bachhe to fun loving hote hi hai jarurat hoti hai parents ko thoda sa dhyan rakhne ki choti umr me bike ya gadi dene se behtar hai pahle unhe is baat ka bhan hone den ki surakcha kya cheej hoti hai.
    satya vyas

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  24. mai us din is baare me jada charcha nahi kar paaya tha aur mai bhool chuka tha is ghatna ko
    samjha jaa sakta hai us maa baap ki vedna ko
    are bina maa baap ki santan (jinke maa baap bachpan se swarg sidhar gaye hon) ke liye to sahara mil bhi jata hai. Ishwar se prarthna hai us pariwar ko is aseem dukh ko sahne ki shakti pradan kare. Aur yah ghatna apki kavita me is tarah panktibaddh hai jise padhkar aankhe bhar aati hain.

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  25. बहुत कठिन है । बहुत ही कठिन है दुनिया का ये सबसे भारी बोझ उठाना ।

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  26. बहुत kathin है इस दुःख से उबरना.
    बहुत दुःख हुआ इस दुर्भाग्यपूर्ण और दुखदायी खबर को सुन कर.
    अंकित kee आत्मा को शांति miley ईश्वर से यही प्रार्थना है.
    ईश्वर उनके परिवार को इस दुःख को सहने kee हिम्मत दे.

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  27. नज़्म की जो रवायत है वो इसमे नही दिखाई दे रही है .....

    अगर बुरा न माने तो आपसे गुंजारिश है सुधार कर देने की ......!!

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  28. bahut himmat karke pura aalekh padh paayee...aur aapki kavita ne to aankhen nam kar din....rojana pata nahi kitni durghatnaayen hoti hain yahan...kuchh hi dino pahle do iklauti santaanen aise hi patri paar kar rahi thi aur unka mobile baj utha aur buss..ek pal me aghatit ghat gaya....baad me daswin ka result aaya dono bachhiyon ne 90% laaye the...kaise gujarte honge unke mata pita ke din...soch kar sihar jaati hun...

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  29. अनिकेत के लिये श्रद्धांजलि...!

    मैं खुद कितनी जवान मौतों का साक्षी रहा हूँ उम्र के इस पौदान पर...समझ सकता हूँ थोड़ा-बहुत उस घर में पसरी खामोशी को...

    कविता हमेशा की तरह मंतव्य तक पहुँचाती हुई। शरद कोकास की लेखनी को किसी वाह-वाही की दरकार नहीं...

    नमन गुरूवर!

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  30. कविता का शिल्प नहीं कथ्य भारी है...अनबोला हूँ...
    मेरे मन में तो बस एक बात आती है कि ईश्वर मिले तो बस एक बात पूछूं...जिसकी आयु नियत कर दी तुने उसे भी सपने, कल्पनाएँ और उमंग, प्रतिभा देकर तू किसका मखौल उड़ाता है..?

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  31. महादेव उन्हे शक्ति प्रदान करे।

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  32. इस बच्चे की मौत और आपकी कविता ने एक्दम संवादहीन कर दिया--लिखूं तो क्या लिखूं----------------------------------------------------------------?
    पूनम

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  33. शरद भाई,
    आपकी इस मार्मिक पोस्ट को पढ़कर हमें १६, मोहननगर, दुर्ग के वो ज़माने याद आ गए। जब हमारे बाज़ू से रहने वाले एक सज्जन दीक्षित जी, जे. डी. रेलगाड़ी से यूँ ही कट गए थे। आह! ऐसा मंज़र ख़ुदा किसी को न दिखलाए। और उसके कुछ दिनों बाद ही एक अच्छी भली छोटी बच्ची सीमा, जो अपने मित्रों सहित एक मित्र हरदास साहब के बेटे को सेक्टर ९ अस्पताल से देखकर लौटी और न जाने किस इन्फ़ेक्शन से गस्त होकर एक घण्टे के भीतर ही दम तोड़ दिया। बाप रे ये सब अचानक दिमाग में घूम गया। और दिल को छूती हुई आपकी कविता, जिसे नई कविता कहा जाएगा, ने रुला ही दिया आज। आभार।

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  34. ham kahaan hote akele,
    hadasa bhi sath hai.
    kya pataa kab koyee chal de,
    vaqt ki sab haat hai.
    ab kahaan rota kisee ki
    maut par ai dosto,
    gar kaheen ansoon gire toh/
    ab badee yah baat hai.

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  35. Birth and death are the twins of Life
    On the occassion of birth we feel very happy
    but when we think of Death our Soul starts termbling

    aapki kaivitha mein wah baat hai jisne aatmaa ko chooliyaa hai

    badhayee

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  36. ... बेहद संवेदनशील रचना, एक गहन सन्नाटे का एहसास !!!

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  37. आसान नहीं है ,मौत को इस तरह से स्वीकार कर लेना । सारे उपदेश .नीतिवाक्य ,और समझाने बुझाने की बातें धरी रह जाती .....

    Aapki baat se sahmat hoon.

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  38. अगर हम कि‍सी के जि‍न्‍दा रहते ही.... और कोई जि‍न्‍दा रहते ही स्‍वयं जान ले तो ये कठि‍नाई पैदा ही न हो। बीमा करने वाले ये बात समझाने के लि‍ए ग्राहक ढूंढते ही रहते हैं, नही?

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  39. आसान नहीं है

    किसी बच्चे की मौत का

    दुख बर्दाश्त कर लेना

    अनदेखे सपनों की पिटारी को

    डेढ़ हाथ की कब्र में दफना आना

    DIL KO CHOO LENE WALI PANKTIYA

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  40. Sharad ji Yah satya hai ki jis par gujrati hai wahi janta hai. Ishwar kisi ko aisa din na dikhlaye. Ishwar aniket ke pariwar ko yah sadma sahne ki shakti pradan kare. Samvedana se bhare shabd man ka aandolit kar gaye.

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  41. शरद जी मैनें इसी 3 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन अपने 7 साल के बच्चे को खोया है, बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं हम लोग, सबकुछ खत्म हो गया लगता है, सिर्फ जान पाता नहीं क्यों नहीं निकलती कमबख्त।

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