नवरात्रि पर विशेष कविता श्रंखला-समकालीन कवयित्रियों द्वारा रचित कवितायें नौवाँ दिन
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आपका -शरद कोकास
एक बार फिर
( अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस समारोह का आमंत्रण पत्र पाकर ) एक बार फिर
हम इकट्ठे होंगे एक विशाल सभागार में
हम इकट्ठे होंगे एक विशाल सभागार में
किराये की भीड़ के बीच
एक बार फिर
ऊंची नाकवाली अधकटे ब्लाउज पहनी महिलायें
करेंगी हमारे जुलूस का नेतृत्व
और प्रधिनिधित्व के नाम पर
मंचासीन होंगी सामने
एक बार फिर
किसी विशाल बैनर के तले
मंच से माइक पर चीखेंगी
व्यवस्था के विरुद्ध
और हमारी तालियाँ बटोरते
हाथ उठाकर देंगी साथ होने का भरम
एक बार फिर
शब्दों के उड़नखटोले पर बिठा
वे ले जायेंगी हमें संसद के गलियारों में
जहाँ पुरुषों के अहँ से टकरायेंगे हमारे मुद्दे
और चकनाचूर हो जायेंगे उसमें
निहित हमारे सपने
एक बार फिर
हमारी सभा को सम्बोधित करेंगी
माननीया मुख्यमंत्री
और गौरवान्वित होंगे हम
अपनी सभा में उनकी उपस्थिति से
एक बार फिर
बहस की तेज आँच पर पकेंगे नपुंसक विचार
और लिये जायेंगे दहेज-हत्या ,बलात्कार
यौन-उत्पीड़न
वेश्यावृत्ति के विरुद्ध मोर्चाबन्दी कर लड़ने के
कई –कई संकल्प
एक बार फिर
अपनी ताकत का सामूहिक प्रदर्शन करते
हम गुजरेंगे शहर की गलियों से
पुरुष सत्ता के खिलाफ़
हवा में मुट्ठी-बन्धे हाथ लहराते
और हमारे उत्तेजक नारों की उष्मा से
गर्म हो जायेगी शहर की हवा
एक बार फिर
सड़क किनारे खड़े मनचले सेंक सकेंगे अपनी आँखें
और रोमांचित होकर बतियाएँगे आपस में कि
यार,शहर में वसंत उतर आया
एक बार फिर
जहाँ शहर के व्यस्ततम चौराहे पर
इकठ्ठे हो हम लगायेंगे उत्तेजक नारे
वहीं दीवारों पर चिपके पोस्टरों में
ब्रा-पेण्टी वाली सिने तारिकायें
बेशर्मी से नायक की बाँहों में झूलती
दिखाएँगी हमें ठेंगा
धीरे –धीरे ठण्डी पड़ जायेगी भीतर की आग
और एक बार फिर -
छितरा जायेंगे हम चौराहे से
अपने-अपने पति और बच्चों के
दफ्तर व स्कूल से लौट आने की चिंता में ।
- निर्मला पुतुल