शनिवार, अगस्त 08, 2009

माँ नहीं कर पायेगी अमेरिका के अफगान हमले का ज़िक्र


8 अगस्त 2001 मेरी ज़िन्दगी का एक ऐसा दिन है जिसे मेरे स्मृति पटल से कोई नहीं मिटा सकता इस दिन माँ हमे छो कर चली गई थी यह जीवन का एक ऐसा सत्य है जो एक हर एक के जीवन में घटित होता है और हम अपनी आखरी साँस तक उस घटना की तारीख को याद रखते हैं जन्म-मृत्यु , शादी-ब्याह ,सुख-दुख ,बीमारी, आदि की तिथियों को याद रखने का हमारा अपना तरीका होता है आज हमारे पा केलेण्डर,कम्प्यूटर जैसी आधुनिक सुविधायें हैं लेकिन पहले के लोगों के पास उनके अपने तरीके थे. जैसे फलाने की शादी तब हुई थी जब फलाने के घर बेटा हुआ था ,या अकाल उस साल पड़ा था ,या पार्टीशन तब हुआ था जब मुन्ना गोद में था । पारिवारिक घटनाओं की तिथियों के सामाजिक सरोकार भी होते थे । हमारे इतिहास के निर्माण में इस परम्परा का भी योगदान हैमाँ की स्मृति को इसी परम्परा के साथ जोते हुए यह कविता मैने 2001 में लिखी थी आज उनकी पुण्य तिथि पर उनके पुण्य स्मरण के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ शरद कोकास


याद


माँ जिस तरह याद रखती थी तारीखें

वैसे कहाँ याद रखता है कोई


माँ कहती थी

जिस साल देश आज़ाद हुआ

उस साल तुम्हारे नाना गुजरे थे

हम समझ जाते

वह सन उन्नीस सौ सैंतालीस रहा होगा


माँ बताती थी

जिस साल पाकिस्तान से लड़ाई हुई थी

उसी बरस तुम्हारे बाबा स्वर्ग सिधारे थे

हम समझ जाते

वह सन उन्नीस सौ पैंसठ रहा होगा


माँ कभी नहीं कर पायेगी

अमेरिका के अफ़गान हमले काज़िक्र


हम याद करेंगे

जिस साल ऐसा हुआ था

उस साल माँ नहीं रही थी


मुश्किल नहीं होगा समझना

वह सन दो हज़ार एक रहा होगा



-- शरद कोकास



( शरद कोकास की कविता “आकंठ” से व चित्र गूगल से साभार )

16 टिप्‍पणियां:

  1. Dil ko choo gaee aapki ye racha aur apnee ma kee yad dila gayee.

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  2. शरद भाई

    बहुत मार्मिक!!

    माँ की पुण्य तिथि पर उनकी याद को मेरे नमन एवं श्रृद्धांजलि.

    गुजरा हूँ कुछ बरस पहले इस अनुभव से. आपका दर्द समझ सकता हूँ.

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  3. माँ की यादों को याद करने यह तरीका पसन्द आया शरद जी। सचमुच पारिवारिक घटनाओं को सामाजिक घटनाओं के साथ जोड़कर याद रखने का अनूठा तरीका था।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. भाई, बहुत मार्मिक कविता है।

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  5. मां को मेरी भी श्रद्धांजलि

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  6. क्या कहूँ आपके कहने के अंदाज पे फ़िदा हूँ ...सभी मां एक सी होती है...

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  7. SHARAD JI........BAHOOT HI MAARMIK HAI AAPKI RACHNAA...... MAA NE TO JATE JAATE BHI SIKHAA DIYA APNE AAP KO YAAD RAKHNA....BHALE HI VO IS TAAREEKH KO YAAD RAKHNE KE LIYE NAHI HAI....PRANAAM HAI MERAA

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  8. maa ko pranaam
    maa ko salaam
    ___maa ko saadar shraddhaanjli !

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  9. माँ के प्रति श्रद्धा से ओतप्रोत आपके भावों ने आंखे नम कर दीं. मुझे गर्व है उस माँ पर जिसके इतने सारे बेटे-बेटियाँ है . मुझे यह वर्ष 2009 आप लोगों से मिले स्नेह के लिये याद रहेगा .यह प्यार अंतिम साँस तक बना रहे इस कामना और आप सबके प्रति आभार के साथ .. शरद कोकास

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  10. आपकी कविता पढ़कर मेरे कानों में गूंजने लगे मां के शब्‍द और कुछ ऐसी ही कहानियां। भावुक कर गए आपके शब्‍द। मां तुझे प्रणाम।

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  11. मां .......
    तुम चली ही गई आखिर.

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  12. शायद ऐसी ही होती हैं मां... सारे दुखों को सारे दर्द को तारीखों से नहीं दिल से जोड़े रखने वाली.... सिर्फ अपने दर्द ही नहीं दुनिया के भी....
    श्रद्धांजली....।
    www.nayikalam.blogspot.com

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  13. भावुक कर गई आपकी कविता.


    माँ
    तुम मुझे छोड कर कभी मत जाना,
    कहीं नहीं,
    डैडी के पास भी नही...
    प्रॉमिस न माँ?

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  14. शरद भाई आपकी यह कविता तो लोक कविता है। दुनिया की अशांति के बीच मां को इस तरह याद करना गहरे तक छू जाता है। आपको और मां को सलाम।

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