युवा कवि रामकुमार तिवारी नवें दशक के महत्वपूर्ण कवि है .
उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं.
नवीन सागर पर केन्द्रित "कथादेश" के विशेषांक के वे अतिथि सम्पादक रहे हैं.
जीवन के सौन्दर्य और मनुष्य की जिजीविषा में उनकी आस्था है .
उनकी कविताओं के चाक्षुस दृष्य शब्दों के अर्थ को नया विस्तार देते हैं.
प्रस्तुत है उनकी कविता..
ठीक ठीक कितने वर्ष का था
धरती की आयु के बारे में सोचता
सडक पर जा रहा था
सडक से हटकर कुछ ही दूरी पर
सत्तर की आयु का एक बूढा
बही-कटी धरती को देखता
चल रहा था
पेड काटते आदमी से आयु पूछी
पेड की आयु पता नहीं चली
चहकती फुदकती चिडिया की आयु का प्रश्न उठे
इससे पहले वह उड गई
भुतहे कुओं में
डरते-डरते झाँका और
उसकी आयु के बारे में सोचता-सोचता
दूर निकल गया
नदी से उसकी आयु पूछना भूल
रेत से भरे ट्रक में बैठकर
शहर आ गया
शहर की आयु पूछी तो
कारखाने की आयु पता चली
सुस्ताने के लिये बाग में गया
बाग़ में प्रेम करते स्त्री-पुरुष ने
गुलाब के दो फूल तोडे
प्रेम और फूल की आयु के बारे में सोचता हुआ
बाग से निकल गया ...
- रामकुमार तिवारी
(कविता वसुधा अक्तू.1996 से तथा दृष्य गूगल से साभार - शरद कोकास )
उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं.
नवीन सागर पर केन्द्रित "कथादेश" के विशेषांक के वे अतिथि सम्पादक रहे हैं.
जीवन के सौन्दर्य और मनुष्य की जिजीविषा में उनकी आस्था है .
उनकी कविताओं के चाक्षुस दृष्य शब्दों के अर्थ को नया विस्तार देते हैं.
प्रस्तुत है उनकी कविता..
ठीक ठीक कितने वर्ष का था
धरती की आयु के बारे में सोचता
सडक पर जा रहा था
सडक से हटकर कुछ ही दूरी पर
सत्तर की आयु का एक बूढा
बही-कटी धरती को देखता
चल रहा था
पेड काटते आदमी से आयु पूछी
पेड की आयु पता नहीं चली
चहकती फुदकती चिडिया की आयु का प्रश्न उठे
इससे पहले वह उड गई
भुतहे कुओं में
डरते-डरते झाँका और
उसकी आयु के बारे में सोचता-सोचता
दूर निकल गया
नदी से उसकी आयु पूछना भूल
रेत से भरे ट्रक में बैठकर
शहर आ गया
शहर की आयु पूछी तो
कारखाने की आयु पता चली
सुस्ताने के लिये बाग में गया
बाग़ में प्रेम करते स्त्री-पुरुष ने
गुलाब के दो फूल तोडे
प्रेम और फूल की आयु के बारे में सोचता हुआ
बाग से निकल गया ...
- रामकुमार तिवारी
(कविता वसुधा अक्तू.1996 से तथा दृष्य गूगल से साभार - शरद कोकास )
इतनी सुन्दर और यथार्थ कविता पढ़वाने के लिए आभारी हूँ। शिल्प के बतौर बहुत ही नवीन प्रतीत हो रही है।
जवाब देंहटाएंशरद जी, आज कुछ उलझा उलझा हूँ। इसी में दृश्य संयोजन की ओर ध्यान नहीं गया, केवल कविता पढ़ी और टिप्पणी कर चल दिया। अन्यथा मेरी दृष्टि इस ओर सदैव ही रहती है। मैं स्वयं भी इस की ओर बहुत सजग रहता हूँ। दुबारा ब्लाग पर आया तो महसूस हुआ कि दृश्यों के संयोजन से कविता को जीवन्त कर दिया है आप ने।
जवाब देंहटाएंadbhut anupam kavita..............
जवाब देंहटाएंdhnya kar diyaji...............
badhaai !
सुन्दर! शानदार! आभार!
जवाब देंहटाएंशरद कोकास जी।
जवाब देंहटाएंरामकुमार तिवारी की कविता बहुत सुन्दर है।
परिचित कराने के लिए आभार।
शिल्पगत अनूठापन मन को छूता है. शरद कोकास जी आपका आभार इतनी अच्छी कविता पढवाने के लिये
जवाब देंहटाएंरामकुमार जी की रचनाएँ प्रकृति के बेहद करीब होती हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे. कबाड़खाना पर आई कविता के बाद तिवारी जी से बात हुई और संग्रह का इंतजार बना हुआ है.
जवाब देंहटाएंजीवन aur prakrit से srobar, saarthak jeevant कविता है.......... chitr भी lajawaab हैं
जवाब देंहटाएंbahut achche, sach kahun toh vastavik, shaher se kaarkhane ka pata... kya baat hai...
जवाब देंहटाएंSharad Kokash ji,
जवाब देंहटाएंaapke blog 'Paas-Pados' ke baare mein beete hafte Hindustan Dainik mein bhi padha tha, Ravish ke article mein... Buddha aadi ke baare mein batane ke liye visesh kar kabar ke baare mein batane ke liye dhanyavaad....
आने में देर हो गयी
जवाब देंहटाएंशानदार कविता और अद्भुत दृष्य संयोजन्…
वाह
आपकी कविता इतनी खुब्सूरत है कि कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही है ......वो इसलिये की सुरज के सामने दीपक दिखाने जैसा लग रहा है ........
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna
जवाब देंहटाएंअद्भुत ...इस महीने कथादेश अभी आया नहीं है मेरे शहर में .ज्ञानोदय का प्रेम विशेषांक बांच रहा हूँ......ओर हंस की बहसे ..कविता वाकई दिलचस्प है ...
जवाब देंहटाएंरामकुमार बहुत संवेदनशील और ईमानदार कवि हैं. उनकी कविताएं दिल को छूती हैं.
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