बचे घर तक पहुँचने का रास्ता,जल और युवती
नरेश चंद्रकर घुमक्कड़ किस्म के कवि हैं. गोआ,आसाम,,हैदराबाद,हिमाचल प्रदेश,जाने कहाँ कहाँ रह चुके हैं. वर्तमान में बड़ॊदा में हैं. वे भटकते हुए भी कविता खोज लाते हैंउनके दो कविता संग्रह हैं“ बातचीत की उड़ती धूल में ” और“बहुत नर्म चादर थी जल से बुनी “ यह कविता उनके इस दूसरे संग्रह से. जल,स्त्री और पृक्रति के प्रति चिंता को एक जाने पहचाने बिम्ब के माध्यम से अभिव्यक्त कर रहे है नरेश चंद्रकर
जल
जल से भरी प्लास्टिक की गगरी छलकती थी बार बार
पर वह जो माथे पर सम्भाले थी उसे
न सुन्दर गुंथी वेणी थी उसकी
न घने काले केश
पर जल से भरी पूरी गगरी सम्भाले वह पृथ्वी का एक मिथक बिम्ब थी
जल से भरी पूरी गगरी सहित वह सड़क पर चलती थी
नग्न नर्म पैर
गरदन की मुलायम नसों में भार उठा सकने का हुनर साफ झलकता था
बार बार छलकते जल को नष्ट होने से बचाती
सरकारी नल से घर का दसवाँ फेरा पूरा करती वह युवती दिखी
दिखी वाहनों की भीड़ भी सड़क पर
ब्रेक की गूंजती आवाजें
बचे रहें युवती के पैर मोच लगने से
बचे रहें टकराने से वे वाहनों की गति से
बचा रहे स्वच्छ जल गगरी में
बचा रहे सूर्य के उगते रक्तिम नर्म घेरे में
उड़ते पंछी का दृश्य
एक नाजुक युवती की कहानी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगी यह कविता
नरेश चंद्रकर घुमक्कड़ जी ओर आप का धन्यवाद
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
जल............ स्त्री और सड़क पर नंगे पाँव गगरी हाथ में उठाये.................. विभिन्न बिम्बों से सजी इस रचना का द्रश्य आँखों के सामने आ गया............ शायद यही खूबसूरती है इस लाजवाब रचना main ........
जवाब देंहटाएंबडे भाई बहुत बहुत धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंसूत्र एवं सर्वनाम के कुछ अंकों से भाई नरेश चंद्राकर जी के संबंध में आंशिक जानकारी मिली थी । आज उनसे एवं उनकी लेखनी से साक्षातकार करा दिया।
नरेश भाई नमस्कार सहित .....
श्रम के सौन्दर्य से भऱपूर कविता। यही तो कविता है।
जवाब देंहटाएंशरद जी
जवाब देंहटाएंआपने नरेश की कविता पढ़वाई, धन्यवाद. और नरेश की फोटो भी दिखा दी. बहुत बरसों बाद देखा. बहुत पास दिखा.
kavita kafi achhi hai
जवाब देंहटाएंनरेश भाई की कविता पढवाने के लिये आभार्…
जवाब देंहटाएंएसे बिम्ब अनुभव और संवेदना से ही उभरते हैं
नरेश चंद्रकर को अरसे बाद पढ कर ताज़ादम हुआ. अपनी कवितायें भी पढ्वाईये .
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर पधारे धन्यवाद...मैंने अभी नया-नया लिखना आरम्भ किया है, जो दिल में आता है वो लिखती हूँ ... आपकी हिदायत आगे से ध्यान में रखूँगी
जवाब देंहटाएंboht hi khoobsurat kavita hai...mano us yuvti ko pani ki gagri le jate hue dekh rahe hai.....
जवाब देंहटाएंग्रामीण इलाकों की दुखद सचाई को रेखांकित करती सुंदर कविता। निराला की "वह तोड़ती पत्थर" के वर्ग की रचना।
जवाब देंहटाएंनरेश की कविता इस्त्री खूब सुनते थे जब हम भुवनेश्वर में थे....फिर संयोग से मिलना ही नहीं हुआ...शर्मा कब चन्द्रकर होगए पता ही नहीं चला.......पर चन्द्रकर की चर्चा जब भी सुनता था.....उस के काव्य संकलनों का ज़िक्र होता था तो उस की याद आती थी ...पँखुरी की याद आती थी.....शरद ने अच्छा किया तुम्हारी कविता और फोटो ब्लाग पर डाल कर...
जवाब देंहटाएंबचे घर तक पहुँचने का रास्ता,जल और युवती !! मित्र नरेश ....चन्द्रकर तक पहुँचने का रास्ता शरद !!