शुक्रवार, जून 19, 2009

किसी गरीब की केटली से भाफ बनकर निकलो




मै प्रेम पर कविता लिखना चाहता था ..पानी पर भी... और स्त्री पर भी ॥ग्रीष्म की रातों में नींद अक्सर उचट जाती है.. हलक सूख जाता है प्यास के मारे ..लेकिन स्वप्न तो हर स्थिति में आते हैं पानी के स्वप्न औ स्त्री के स्वप्न .. स्वप्न में पानी और पानी मे स्त्री और स्त्री में प्रेम सब गडमड हो जाता है ॥ शायद इसीका विस्तार है शरद कोकास की यह कविता

पानी हो तुम

यह प्यास का आतंक है या निजता का विस्तार

दिवास्वप्नों में तुम्हारा स्त्री से पानी बन जाना

नदी बनकर बहना अपनी तरलता में

दुनिया भर की प्यास बुझाते हुए

अंतत: समा जाना सागर में

जरुरी नहीं जो रुपक स्वप्न में संभव दिखाई दें

सच अपनी सफेदी में उन्हे धब्बे की तरह न देखे

इसलिए प्रकृति में सब कुछ जहाँ अपने विकल्प में मौजूद है

एक बेहूदा खयाल होगा तुम्हारा स्त्री से नदी हो जाना

पानी होने की इच्छा को शक्ल देना इतना ज़रुरी हो

तो बेहतर है तुम झरना बन जाओ

अपने खिलंदड़पन में पहाड़ों से कूदो

बरसात में पूर्णता के अहसास से भ जाओ लबालब

निरुपाय होकर सूख जाओ ग्रीष्म में

इसके बाद भी तुम्हारा उत्साह कम न हो

और यथार्थ के इन नैसगिक चित्रों से तुम भयभीत न हो

तो निश्चिंत होकर कल्पना के समंदर में गोते लगाओ

मन के गीलेपन में फिर पानी का स्वप्न बुनो

और आवारा बादल बन जाओ

प्रेमियों के इस विशेषण को चुनौती दो

अपनी आवारगी में मुक्ति के गीत रचो

फिर न बरस पाने का दुख लिए

थक हार कर बैठ जाओ

बेहतर है मिट्टी की गंध लिए वाष्प बन जाओ

बहो बहो हवाओं में फैलों आँखों में नमी बनकर

घुटन में जीती दुनिया की साँसों में बस जाओ

ठंड में ठिठुरते लोगों के मुँह से निकलो

निकलो किसी गरीब की चाय की केटली से

या फिर शबनम बन जाओ

मुकुट सी सजो किसी पत्ती के माथे पर

किसी शहीद की लाश पर चढाए जाने तक

फूल की पंखुडियों में बस कर उसे ताज़ा रखो

चाहो तो काँटों पर सज जाओ

पगडंडी पर चलते पाँव सहलाओ

इससे तो अच्छा है बर्फ ही बन जाओ तुम

पड़ी रहो हिमालय की गोद में

गोलियों से टकराकर चूर हो जाओ

अपने स्नेह की उष्णता में पिघलो

धोती रहो अपनी देह पर लगा रक्त

या फिर बर्फ की रंगबिरंगी मीठी चुस्की बन जाओ

बच्चों के मुँह चूमो और खिलखिलाओ

अपनी लाल लाल जीभ दिखाकर उन्हे हँसाओ

यह सब न बन सको यदि तुम

तो अच्छा है आँसू बन जाओ

बहो पारो की आँखों से जीवन भर

देवदास की शराब में घुलकर उसे बचाओ

सुख से अघाई आँखों से अपनी व्यर्थता में फिसलो

या फिर उस माँ की पथराई आँखों से निकलो

पिछले दिनो जिसका जवान बेटा मारा गया था दंगो में

बेहतर है पानी बनने की जिद छोड़ो

वैसे भी तुम पानी ही तो हो

पानी से घिरी पृथ्वी की आँख का पानी

जो अभी मरा नहीं है

मानवता की देह में उपस्थित पानी

जो मनुष्य के दया भाव में छलकता है

पानी हो तुम समाज के चेहरे का

जिसके बल पर जीवित है सामाजिकता

तुम पानी हो और ज़रुरी है तुम्हे बचाना

इससे पहले कि यह पानीदार दुनिया

तुम्हारे बगैर रुखी- सूखी और बेरौनक हो जाए ।

शरद कोका

12 टिप्‍पणियां:

  1. sukhi pyas jo samandar duboti hai. is pyas ka meyar achchha laga...

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  2. पानी हो तुम समाज के चेहरे का

    जिसके बल पर जीवित है सामाजिकता

    तुम पानी हो और ज़रुरी है तुम्हे बचाना

    इससे पहले कि यह पानीदार दुनिया

    तुम्हारे बगैर रुखी- सूखी और बेरौनक हो जाए
    बहुत ही सुन्दर ख्याल है इसे पूरी तरह से समाजिक चेतना मे लाने की आवश्यकता है ..................अतिसुन्दर

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  3. पानी हो तुम समाज के चेहरे का

    जिसके बल पर जीवित है सामाजिकता

    तुम पानी हो और ज़रुरी है तुम्हे बचाना

    इससे पहले कि यह पानीदार दुनिया

    तुम्हारे बगैर रुखी- सूखी और बेरौनक हो जाए


    बिल्कुल सही कहा आपने ...............बहुत ही उत्तम ख्याल

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  4. शरद जी............ पानी, स्वप्न और स्त्री से उपजी यह कविता आपके कवी मन में उमड़ते भावों को सुन्दर तरह से रख रही है..... शायद इंसान के शरीन में मौजूद ७५% पानी हर स्वप्न में स्त्री और शरीर को पानी बन कर देखता है......... लाजवाब लिखा हैं

    जवाब देंहटाएं
  5. शरद जी............ पानी, स्वप्न और स्त्री से उपजी यह कविता आपके कवी मन में उमड़ते भावों को सुन्दर तरह से रख रही है..... शायद इंसान के शरीन में मौजूद ७५% पानी हर स्वप्न में स्त्री और शरीर को पानी बन कर देखता है......... लाजवाब लिखा हैं

    जवाब देंहटाएं
  6. शरद भाई
    बहुत अच्छी तरह आपने अभिव्यक्त किया है पानी हो जाने के मायने…अद्भुत

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  7. यह प्यास का आतंक है या निजता का विस्तार
    दिवास्वप्नों में तुम्हारा स्त्री से पानी बन जाना
    नदी बनकर बहना अपनी तरलता में
    दुनिया भर की प्यास बुझाते हुए
    अंतत: समा जाना सागर में

    स्त्री के मन को खूब टटोला है आपने .....!!

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  8. Aaj pahlee baar aayi hun aapke blogpe kaafee rachnayen padhee..ab 'anusaran'karungee,ki, padhne me nirantarta rahe..
    "Psastic gaaree'...bas itnee hee baat khatkee...kaash..gagaren mittee kee hee banen...!
    Harek rachna ke bhav khoobsoorat hain...is bareme to do ray nahee ho sakti..!
    Aur ye rachna,jiske tahat tippanee de rahee hun, uski mai kya tareef karun? Itnee qabiliyat nahee..!

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