विश्व तम्बाखू निषेध दिवस पर कवि नसिर अहमद सिकन्दर की कविता
"चुटकी भर" उनके कविता संग्रह "इस वक़्त मेरा कहा "से
तमाम वैधानिक चेतावनी के बावजूद
वह मुंह में
ओंठों के बीच दबी है
वह चुटकी भर है
पर मिर्च नहीं
हल्दी नहीं
नमक नहीं
पर नमक सा स्वाद है उसमें
इसके निर्माण की कला में
निपुण होता है इसका बनाने वाला
हर किसी को नहीं आता यह हुनर
हर कोई नहीं जानता
हथेली और अंगूठे का श्रम
वो देखो!
ठेका श्रमिकों की पूरी टोली
और एक साथी बना रहा इसे
अंगूठे से रगड़ता
हथेलियों की ताल से चूना झराता
अब बारी-बारी सब उठायेंगे
कोई नहीं लेगा ज्यादा
कोई नहीं मारेगा किसी का हक़
बस चुटकी भर
मुंह में
ओंठों के बीच दबायेंगे।
नसिर अहमद सिकन्दर जी की इस बेहतरीन रचना के लिये आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सामयिक पोस्ट. सिगरेट और तम्बाखू का बहिष्कार करे. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं्शरद भाई
जवाब देंहटाएंपता नही लोग क्यूं इन छोटी छोटी खुशियों के पीछे पडे हैं।
सामूहिक irratinality बढती जा रही है और सारा ज़ोर व्यक्तिगत irratinality के नियंत्रण पर है।
नासिर भाई की अच्छी कविता प्रस्तुत करने के लिये आभार्।
आभार है नसिर अहमद जी की इस रचना के लिये बहुत ही सामयिक सिगरेट और तम्बाखू खतरनाक हैं सेहत के लिए
जवाब देंहटाएंयह चुटकी उनके नारकीय जीवन पर चुटकी है !
जवाब देंहटाएंप्रिय शरद जी
जवाब देंहटाएंमेरा उत्साह तो कई लोगों ने बढ़ाया है, आप पहले व्यक्ति हैं जिसने हाथ बढ़ाया है। “मुक्तिबोध“ पर कुछ ऐसा प्रकाशित हो सका जो अप्रकाशित है तो इसकी गरिमा में थोड़ी वृद्धि जरूर हो जाएगी। ऐसा कुछ इस ब्लाॅग पर प्रकाशित न हो सका तो भी आप ने जिस तरह मदद की पहल की है उससे मिला संतोष स्वयं में एक पुरस्कार जैसा है।
rangnathsingh@gmail.com
waah ustaad...jarde ke bahane badi baat kah di aapne. Badhayi
जवाब देंहटाएंबंधुवर,
जवाब देंहटाएंसार्थक और समीचीन रचना.
इस चयन व प्रस्तुति का आभार.
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चन्द्रकुमार
अब बारी-बारी सब उठायेंगे
जवाब देंहटाएंकोई नहीं लेगा ज्यादा
कोई नहीं मारेगा किसी का हक़
बस चुटकी भर
मुंह में
ओंठों के बीच दबायेंगे।
ab to baat tambaku sewan se aage nikal gai... wah! uttam
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंचुटकी भर की बात को बहुत खूबसूरती से बयां किया गया है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }