रविवार, मई 31, 2009

तम्बाखू-एक नज़रिया यह भी

विश्व तम्बाखू निषेध दिवस पर कवि नसिर अहमद सिकन्द की कविता
"चुटकी भर" उनके कविता संग्रह "इस वक़्त मेरा कहा "से


तमाम वैधानिक चेतावनी के बावजूद
वह मुंह में
ओंठों के बीच दबी है
वह चुटकी भर है
पर मिर्च नहीं
हल्दी नहीं
नमक नहीं

पर नमक सा स्वाद है उसमें
इसके निर्माण की कला में
निपुण होता है इसका बनाने वाला

हर किसी को नहीं आता यह हुनर
हर कोई नहीं जानता
हथेली और अंगूठे का श्रम
वो देखो!
ठेका श्रमिकों की पूरी टोली
और एक साथी बना रहा इसे
अंगूठे से रगड़ता
हथेलियों की ताल से चूना झराता
अब बारी-बारी सब उठायेंगे
कोई नहीं लेगा ज्यादा
कोई नहीं मारेगा किसी का हक़
बस चुटकी भर
मुंह में
ओंठों के बीच दबायेंगे।

11 टिप्‍पणियां:

  1. नसिर अहमद सिकन्दर जी की इस बेहतरीन रचना के लिये आभार

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  2. बहुत ही सामयिक पोस्ट. सिगरेट और तम्बाखू का बहिष्कार करे. धन्यवाद.

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  3. ्शरद भाई
    पता नही लोग क्यूं इन छोटी छोटी खुशियों के पीछे पडे हैं।
    सामूहिक irratinality बढती जा रही है और सारा ज़ोर व्यक्तिगत irratinality के नियंत्रण पर है।

    नासिर भाई की अच्छी कविता प्रस्तुत करने के लिये आभार्।

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  4. आभार है नसिर अहमद जी की इस रचना के लिये बहुत ही सामयिक सिगरेट और तम्बाखू खतरनाक हैं सेहत के लिए

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  5. यह चुटकी उनके नारकीय जीवन पर चुटकी है !

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  6. प्रिय शरद जी
    मेरा उत्साह तो कई लोगों ने बढ़ाया है, आप पहले व्यक्ति हैं जिसने हाथ बढ़ाया है। “मुक्तिबोध“ पर कुछ ऐसा प्रकाशित हो सका जो अप्रकाशित है तो इसकी गरिमा में थोड़ी वृद्धि जरूर हो जाएगी। ऐसा कुछ इस ब्लाॅग पर प्रकाशित न हो सका तो भी आप ने जिस तरह मदद की पहल की है उससे मिला संतोष स्वयं में एक पुरस्कार जैसा है।
    rangnathsingh@gmail.com

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  7. बंधुवर,
    सार्थक और समीचीन रचना.
    इस चयन व प्रस्तुति का आभार.
    ==========================
    चन्द्रकुमार

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  8. अब बारी-बारी सब उठायेंगे
    कोई नहीं लेगा ज्यादा
    कोई नहीं मारेगा किसी का हक़
    बस चुटकी भर
    मुंह में
    ओंठों के बीच दबायेंगे।

    ab to baat tambaku sewan se aage nikal gai... wah! uttam

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  9. चुटकी भर की बात को बहुत खूबसूरती से बयां किया गया है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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