रविवार, जुलाई 15, 2012

1989 की कवितायें - बूढ़ा हँसता है

यह कविता बूढ़े पर है या बच्चे पर , झोपड़ी पर या खाट पर , बादल पर भी हो सकती है और सूरज पर ..या फिर आग पर ...सीधे सीधे कह दूँ कि यह कविता भूख पर है ...


50 . बूढ़ा हँसता है

झोपड़ी के बाहर
झोलंगी खाट पर पडा बू
अपने और सूरज के बीच
एक बड़े  से बादल को देख
बच्चे की तरह हँसता है

उसकी समझ से बाहर है
सूरज का भयभीत होना
सूरज की आग से बड़ी
एक आग और है
जो लगातार धधकती है
उसके भीतर
सूरज ऊगने से पहले भी
सूरज ऊगने के बाद भी ।
                        शरद कोकास  

9 टिप्‍पणियां:

  1. आग दो बार ही धधकती है, प्रारम्भ में और अन्त में।

    जवाब देंहटाएं
  2. उसकी समझ से बाहर है
    सूरज का भयभीत होना
    सूरज की आग से बड़ी
    एक आग और है
    जो लगातार धधकती है
    उसके भीतर

    ..सच तब किसी से कोई मतलब कहाँ रह जाता है जब पेट की आग धधक रही होती हैं ..
    बहुत बढ़िया प्रेरक रचना ..

    जवाब देंहटाएं