यह कविता बूढ़े पर है या बच्चे पर , झोपड़ी पर या खाट पर , बादल पर भी हो सकती है और सूरज पर ..या फिर आग पर ...सीधे सीधे कह दूँ कि यह कविता भूख पर है ...
50 . बूढ़ा हँसता है
झोपड़ी के बाहर
झोलंगी खाट पर पडा बू
अपने और सूरज के बीच
एक बड़े से बादल को देख
बच्चे की तरह हँसता है
उसकी समझ से बाहर है
सूरज का भयभीत होना
सूरज की आग से बड़ी
एक आग और है
जो लगातार धधकती है
उसके भीतर
सूरज ऊगने से पहले भी
सूरज ऊगने के बाद भी ।
शरद
कोकास
अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिनेश ।
हटाएंआग दो बार ही धधकती है, प्रारम्भ में और अन्त में।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब >. धन्यवाद
हटाएंबेहतरीन.................
जवाब देंहटाएंअनु
Gambheer rachna.
जवाब देंहटाएं............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
धन्यवाद
हटाएंउसकी समझ से बाहर है
जवाब देंहटाएंसूरज का भयभीत होना
सूरज की आग से बड़ी
एक आग और है
जो लगातार धधकती है
उसके भीतर
..सच तब किसी से कोई मतलब कहाँ रह जाता है जब पेट की आग धधक रही होती हैं ..
बहुत बढ़िया प्रेरक रचना ..
धन्यवाद कविता
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