शुक्रवार, जून 08, 2012

1988 की कवितायें नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता –तीन

और यह एक छोटी सी कविता , जो दर असल छोटी नहीं है -

नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता –तीन



नींद न आने की स्थिति में
तारे गिनने का उपदेश देने वाले
खुद कभी तारे नहीं गिनते

उनके और तारों के बीच
हमेशा एक छत होती है
हमारी मिहनत से बनाई हुई ।

                        शरद कोकास 

8 टिप्‍पणियां:

  1. सच मे बडी बात कही। कैसे हैं कोकास जी? बहुत दिनो बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ।

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    1. धन्यवाद निर्मला जी । अच्छा हूँ । आप की कुशलता की कामना करता हूँ ।

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  2. सच है, हमारा पूर्वश्रम ही तारे गिनने में होने वाला श्रम बचा लेता है।

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  3. सुन्दर कविता, और सच मे एक दम नई व्याख्या / बल्कि नया थॉट !! प्रवीण पाण्डेय संक्षिप्त लेकिन प्रेरक टिप्पणियाँ देते हैं .

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  4. लेकिन हमारी छत के कारण ही वे तारों के सौन्दर्य से भी वंचित रहते हैं । सुन्दर प्रयोग ।

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  5. "उनके और तारों के बीच
    हमेशा एक छत होती है
    हमारी मेहनत से बनाई हुई।"
    बहुत खूब...!

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  6. तब तो हम सब इस अपराध के भागी हुए । ऐसी छत के नीचे तो हम भी सोते हैं खास कर अब जब छत पे सोना दूर की बात हो गई ङै ।

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