कविता ही ज़िन्दगी हो जहाँ ऐसी एक दुनिया है यहाँ... शरद कोकास और मित्रों की कविताएँ और लेख
सच मे बडी बात कही। कैसे हैं कोकास जी? बहुत दिनो बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ।
धन्यवाद निर्मला जी । अच्छा हूँ । आप की कुशलता की कामना करता हूँ ।
सच है, हमारा पूर्वश्रम ही तारे गिनने में होने वाला श्रम बचा लेता है।
यह तो एकदम नई व्याख्या है भाई !
सुन्दर कविता, और सच मे एक दम नई व्याख्या / बल्कि नया थॉट !! प्रवीण पाण्डेय संक्षिप्त लेकिन प्रेरक टिप्पणियाँ देते हैं .
लेकिन हमारी छत के कारण ही वे तारों के सौन्दर्य से भी वंचित रहते हैं । सुन्दर प्रयोग ।
"उनके और तारों के बीचहमेशा एक छत होती हैहमारी मेहनत से बनाई हुई।"बहुत खूब...!
तब तो हम सब इस अपराध के भागी हुए । ऐसी छत के नीचे तो हम भी सोते हैं खास कर अब जब छत पे सोना दूर की बात हो गई ङै ।
सच मे बडी बात कही। कैसे हैं कोकास जी? बहुत दिनो बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद निर्मला जी । अच्छा हूँ । आप की कुशलता की कामना करता हूँ ।
हटाएंसच है, हमारा पूर्वश्रम ही तारे गिनने में होने वाला श्रम बचा लेता है।
जवाब देंहटाएंयह तो एकदम नई व्याख्या है भाई !
हटाएंसुन्दर कविता, और सच मे एक दम नई व्याख्या / बल्कि नया थॉट !! प्रवीण पाण्डेय संक्षिप्त लेकिन प्रेरक टिप्पणियाँ देते हैं .
जवाब देंहटाएंलेकिन हमारी छत के कारण ही वे तारों के सौन्दर्य से भी वंचित रहते हैं । सुन्दर प्रयोग ।
जवाब देंहटाएं"उनके और तारों के बीच
जवाब देंहटाएंहमेशा एक छत होती है
हमारी मेहनत से बनाई हुई।"
बहुत खूब...!
तब तो हम सब इस अपराध के भागी हुए । ऐसी छत के नीचे तो हम भी सोते हैं खास कर अब जब छत पे सोना दूर की बात हो गई ङै ।
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