शनिवार, अगस्त 06, 2011

बुखार में प्रेम कवितायें

वैसे तो सबसे कम झमेला इस बात में है कि बीमार हुआ ही न जाये.. लेकिन इस कम्बख़्त वायरस का क्या करें , लाख बचना चाहा लेकिन बुखार आ ही गया ... और बुखार के साथ याद आई अपनी यह तीन पुरानी बुखार कवितायें ,हमारे एक मित्र ने इन्हे नाम दिया है , बुखार में प्रेम कवितायें , लीजिये आप भी पढ़िये ....


बुखार-एक

बवंडर भीतर ही भीतर
घुमड़ता हुआ
लेता हुआ रोटी की जगह
पानी को स्थानापन्न करता
रगों में खून नहीं ज्यों पानी
शरीर से उड़ता हुआ ।

 बुखार-दो

बुखार
आग का दरिया
पैर की छिंगुली से लेकर
माथे तक उफनकर बहता हुआ

छूटती कँपकपी सी
बदल जाता चीज़ों कास्वाद
साँसों का तापमान
जीभ खुश्क हो जाती
उतर जाता बुखार
माथे पर तुम्हारा हाथ पड़ते ही ।

बुखार –तीन

अछा लगता है
गिरती हुई बर्फ में खड़े
पेड़ की तरह काँपना
 जड़ों से आग लेना
शीत का मुकाबला करना
अच्छा लगता है
ठिठुरते हुए मुसाफिर का
गर्म पानी के चश्मे की खोज  में
यात्रा जारी रखना  । 

                        शरद कोकास

                      

28 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम के बुखार को आपने बहुत अच्छे शब्दों में बाँधा है!

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  2. वायरस के संक्रमण के साथ प्रेम का संक्रमण स्वत: ही दिल दिमाग पर काबिज हो जाता है शायद ! बुखार का एक अनिवार्य लक्षण है ! बहुत सुन्दर क्षणिकायें हैं तीनों ! जल्दी स्वास्थ्य लाभ करें यही कामना है !

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  3. सर्दी, खांसी न मलेरिया हुआ,
    लव, लव, लव...
    यारों मुझको लवेरिया हुआ...

    (लवेरिया कविता से, कृपया शरद भाई के बारे में ऐसा-वैसा कुछ न सोचें...)

    जय हिंद...

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  4. अब ब्लोगिंग का बुखार उतरा तो यह मुआ वाइरल बुखार चढ़ गया ।

    उतर जाता बुखार
    माथे पर तुम्हारा हाथ पड़ते ही ।

    इसमें थोडा विरोधाभास लगता है । :)
    शुभकामनायें भाई जी ।

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  5. बुखार में प्रेम का अनूठा रसायन जरूर काम करेगा. वैसे ये क्षणिकाएं बहुत उम्दा हैं.

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  6. सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.

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  7. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति मगर जल्द स्वस्थ हों यही कामना है।
    आपको भी मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

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  9. बहुत ही अलग रचनायें, बुखार की गर्मी से भी गर्म।

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  10. बुखार में इतनी शानदार कवितायें...अब ये तो नहीं कहा जा सकता कि बार-बार बुखार........

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  11. स्च्ची कविताएं ! प्रेम की ऐसी फोटोग्रफिक अभिव्यंजना बहुत कम देखी है मैंने .
    # वन्दना अवस्थी दुबे , प्रेम को एक बार ही स्म्पूर्णता मे झेल जाए आदमी तो बहुत है.... बार बार ये शायद सम्भव नहीं होता

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  12. खुबसूरत क्षणिकाएं.... भाव संयोजन चमत्कृत सी करती है....
    सादर...

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  13. बुखार में प्रेम कवितायें ?

    हमें तो लगता है कि प्रेम भी एक किस्म का बुखार है :)

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  14. बुखार क्या आया अपने साथ सृजन की नव शक्ती ले आया । अंतिम बहुत भाई ।
    शीत का मुकाबला करना
    अच्छा लगता है
    ठिठुरते हुए मुसाफिर का
    गर्म पानी के चश्मे की खोज में
    यात्रा जारी रखना ।

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  15. बहुत ही अच्‍छी क्षणिकाएं .. स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के लिये शुभकामनाएं ।

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  16. बुखार की बडबडाहत जैसी ही कविता !

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  17. अपना खयाल रखिए... कहीं डीहैड्रेशन न हो जाय इस प्रेम में :)

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  18. bukhar mein bhi itni badiya asarkarak kavita padhna bahut achha laga... apna khayal rakhen....shubhkamnayen..

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  19. बवंडर भीतर ही भीतर
    घुमड़ता हुआ
    लेता हुआ रोटी की जगह
    पानी को स्थानापन्न करता
    रगों में खून नहीं ज्यों पानी
    शरीर से उड़ता हुआ ।
    bahut hi sundar rakhi parv ki badhai aapko

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  20. बुखार भी अंततः विम्ब हुआ... बढ़िया कवितायेँ...

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  21. खूबसूरत क्षणिकाएं. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  22. Poetry not making life rather poetry itself is LIFE..I am grateful to Mr. Sharad Kokas for giving us Awesome Thought in form of poet.

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  23. @ सुचिस्मिता , बहुत बहुत धन्यवाद

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