मैं इनमें से कुछ नहीं करने वाला । कवि हूँ , बस कवितायें लिख रहा हूँ । सोचा था कोई नई कविता लिखूँगा लेकिन .. खैर छोड़िये , पुरानी कविताओं में से बच्चों पर लिखी यह दो कवितायें प्रस्तुत कर रहा हूँ । कवितायें थोड़ी कठिन हैं इसलिये कि लिखी भले ही बच्चों पर हों , दरअसल यह कवितायें बड़ों के लिये हैं ।
1 बच्चा अपने सपनों में राक्षस नहीं होता
आकाश में
पतंग की तरह उड़ती उमंगें
गर्म लिहाफ में दुबकी
परी की कहानियाँ
लट्टू की तरह
फिरकियाँ लेता उत्साह
वह अपनी कल्पना में
कभी होता है
परीलोक का राजकुमार
नन्हा बालक भरत
या उसे मज़ा चखाने वाला खरगोश
लेकिन कभी भी
बच्चा अपने सपनों में
राक्षस नहीं होता ।
2 ईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है
पत्थर को मोम बना सकता है
बच्चे की आँख से ढलका
आँसू का बेगुनाह कतरा
गाल पर आँसू की लकीर लिये
पाँव के अंगूठे से कुरेदता वह
अपने हिस्से की ज़मीन
भिंचे होंठ तनी भृकुटी
हाथ के नाखूनो से
दीवार पर उकेरता
आक्रोश के टेढ़े- मेढ़े चित्र
भय की कश्ती पर सवार होकर
पहुँचना चाहता वह
सर्वोच्च शक्ति के द्वीप पर
बच्चे के कोरे मानस में
ईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है ।
- शरद कोकास
आपकी कवितायेँ मनोविज्ञान से जुडी होती हैं. मन पर इसलिए गहरे असर करती है. सिर्फ उतना नहीं लगता जो कहन में लिखी हुई दिखती है. बहुत सारगर्भित और चौंकाने वाली भी होती है. जैसे यह : -
जवाब देंहटाएंभिंचे होंठ तनी भृकुटी
हाथ के नाखूनो से
दीवार पर उकेरता
आक्रोश के टेढ़े- मेढ़े चित्र
भिंचे होंठ तनी भृकुटी
जवाब देंहटाएंहाथ के नाखूनो से
दीवार पर उकेरता
आक्रोश के टेढ़े- मेढ़े चित्र
क्या बात है!
शरद जी एक बच्चे की मन:स्थिति का सटीक वर्णन हैं ये पंक्तियां
प्रश्न तो यही है कि हम कितना समझ पाते हैं बच्चों के मन को ?
शायद बिल्कुल नहीं ,
लेकिन आप सफल हैं उसे समझने और कविता का रूप देने में
बधाई
6.5/10
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचनाएं / पठनीय
बच्चे के कोरे मानस में
जवाब देंहटाएंईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है
बाल-मन की सोच को कविता में बखूबी ढाला गया है।
बहुत ही सशक्त रचनाएं।
बाल मन का सफल चित्रण करती दोनो कविताएँ बड़ों के लिए प्रेरक हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त रचनाएं
जवाब देंहटाएंbchchon ki ajb gzb or yadgaar duniyaa he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंदोनों रचनाये बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर...
जवाब देंहटाएंकभी भी
जवाब देंहटाएंबच्चा अपने सपनों में
राक्षस नहीं होता --तभी तक जब तक बच्चा है ।
दोनों रचनाओं में बचपन की मासूमियत को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है आपने ।
बच्चे के कोरे मानस में ईश्वर करता है -- खूबसूरत सच्चाई ।
लेकिन कभी भी
जवाब देंहटाएंबच्चा अपने सपनों में
राक्षस नहीं होता ।
वाह....
गाल पर आँसू की लकीर लिये
पाँव के अंगूठे से कुरेदता वह
अपने हिस्से की ज़मीन
बहुत सुन्दर शब्द-चित्र.
बहुत बारीक अध्ययन है. एक एक शब्द मासूमियत की मिसाल है.लाजवाब
जवाब देंहटाएंलेकिन कभी भी
जवाब देंहटाएंबच्चा अपने सपनों में
राक्षस नहीं होता ।
और हर राक्षस, कभी बच्चा जरूर होता है...
बढ़िया कविताएँ
बहुत संवेदनशील लगी यह रचनाएं ! बड़ों को सोचने के लिए विवश करती हुई...
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर कविता है शरद भाई
राम राम
पैमाने में व्यग्र होते सोडे के बुलबुले!
शरद भाई 'बड़े' बच्चों को संबोधित कविताएं अच्छी हैं। पर पहली कविता में आप थोड़ा सा चूक गए लगते हैं। जहां दूसरी कविता बच्चे मात्र पर है वहीं पहली कविता अनजाने में ही लिंगभेद की शिकार हो गई लगती है।
जवाब देंहटाएंपहली कविता के बिम्ब अदभुत हैं और दूसरी कविता ईश्वरीयता की उत्पत्ति को उजागर करती हुई ! बच्चों के हवाले बड़ों पर चोट करती कवितायें कम से कम मुझे तो बेहद पसंद आईं !
जवाब देंहटाएंबच्चों पर दोनों कविताये, सरल पर प्रभावी संदेश देती हुयी।
जवाब देंहटाएंलेकिन कभी भी
जवाब देंहटाएंबच्चा अपने सपनों में
राक्षस नहीं होता ।
kabilegaur hai!!
शरद जी, कविताएं काफ़ी कुछ सोचने को विवश कर रही हैं.
जवाब देंहटाएंबाल दिवस का नायाब तोहफ़ा है ये रचनाएं.
बच्चे के कोरे मानस में
जवाब देंहटाएंईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है
बहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति ।
बच्चों -सा जिगर रखने वाले बड़ों के लिए अच्छी कवितायेँ ...
जवाब देंहटाएंरश्मि का कथन भी सही है ..." हर राक्षस कभी न कभी बच्चा रहा होता है , फिर उसमे राक्षसी भाव कब शुरू हो जाते हैं "
vaah...kokash saaheb...bahut badhiya kavitaayen...aabhaar.
जवाब देंहटाएंबच्चे के कोरे मानस में
जवाब देंहटाएंईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है ।
बहुत ही सशक्त रचनाएं भावपूर्ण और सुंदर...
दोनें रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं!
जवाब देंहटाएं--
बहुत-बहुत बधाई!
आज के चर्चा मंच पर भी आपकी पोस्ट की चर्चा है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/11/335.html
एक एक शब्द मासूमियत की मिसाल है.लाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंलेकिन कभी भी
जवाब देंहटाएंबच्चा अपने सपनों में
राक्षस नहीं होता ।
वाह....
गाल पर आँसू की लकीर लिये
पाँव के अंगूठे से कुरेदता वह
अपने हिस्से की ज़मीन
aapki rachna laazwaab hi hoti hai ,bahut hi badhiya .
bahut sunder likhe hain aap.
जवाब देंहटाएंpari pari bhi hu aur rajkumari bhi . so sweet
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविताएँ, हमेशा की तरह.
जवाब देंहटाएंबच्चों पर मेरी भी दो कविताएँ देखें -
काव्य-प्रसंग
बच्चों का कोमल गीली मिट्टी सा मन और मासूमियत भरा जीवन कल्पनातीत संभावनाओं का इंद्रधनुषी जादुई संसार होता है और उनके भोले भाले मन से ही होकर स्वर्ग का रास्ता गुजरता है. बच्चों का भोला निष्पाप जीवन हमें उनके लिए एक बेहतर दुनिया रचने के लिए प्रेरित करता है. गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
बच्चों के मन की तरह ही र्निमल-निश्छल और सुंदर (कदाचित् चंचल भी)कविताऍं हैं।
जवाब देंहटाएंदोनो रचनायें बहुत सुन्दर हैं। तस्वीरें देख कर मन आनन्द से भर गया। आज बाल दिवस की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसहज, सुंदर, प्रेरक.... बड़ों के भीतर मासूम बालक को जाग्रत करने वाली कवितायें....
जवाब देंहटाएंवाकई शानदार.....
जवाब देंहटाएं_________________
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बाल मन का सुंदर खाका खींच दिया आपने ।
जवाब देंहटाएंबडों के लिये ही है..bachche abhi knhaa padhh sakenge ise...| umdaa..rachanaaye..aapkee visheshtaa he yah..
जवाब देंहटाएंDono kawitayyen bahut bhawprawan hain aur marmik bhee.
जवाब देंहटाएंलेकिन कभी भी
बच्चा अपने सपनों में
राक्षस नहीं होता ।
Aur
बच्चे के कोरे मानस में
ईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है ।
Bahut sunder.
आपके ब्लाग पर पहली बार टिप्पडी भेज रहा हूं,बच्चओं मै तो इश्वर का वाश होता है.मैने भी अपनी कविता बचपन मै लिखा था- काश समय का चक्र उलटा घूम जाता और मुझे अपना बचपन फिर मिल जाता. सुंदर कविता के लिये बधाई.
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