बुधवार, अक्टूबर 13, 2010

किसी की दुनिया उजड़ जाती है और आपको कुछ नहीं होता ?

13 अक्तूबर 2010 कल प्रस्तुत शेफालिका वर्मा की मैथिली कविता पर बहुत सारे नये पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की । जबलपुर से हमारे पुराने साथी महेन्द्र मिश्र ने कहा शेफालिका वर्मा जी की रचना बहुत जोरदार है मिता दास ने कहा साँस लेना ही ज़िन्दगी नहीं । रंजूभाटिया - बहुत सुन्दर । आकांक्षा - शेफालिका वर्मा जी की रचना लाजवाब है । डॉ. मोनिका शर्मा -बहुत अच्छी रचना साझा की है आपने ।  संजय भास्कर - शेफालिका वर्मा जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद । वन्दना - कविता एक सार्थक सन्देश दे रही है । वाणीगीत-जीवन की सार्थकता पर अच्छी कविता । इस्मत ज़ैदी - बहुत सुन्दर भावों के साथ संस्कारों की सीख देती रचना  सदा - बहुत ही सुन्दर व प्रेरक प्रस्तुति । रश्मि रविजा - जीने का अर्थ तलाशने की सीख देती सुन्दर कविता । महेन्द्र वर्मा - यह कविता कवयित्री के दार्शनैक दृष्टिकोण को सफलता पूर्वक अभिव्यक्त करती है । सुशीला पुरी - एक दूसरे के आँसू पोछने मे ही जीने की सार्थकता है । शोभना चौरे -सूरज बादल के माध्यम से शेफाली जी ने बहुत प्रेरक बात कही है ।  जयकृष्ण राय तुषार- बहुत सुन्दर रचना । डॉ.रूपचन्द शास्त्री मयंक - इस सोद्देश्य रचना को पढ़वाने के लिए धन्यवाद । शिखावार्ष्णेय - शेफलिका जी की रचना मे जीवन की सार्थकता दिखती है । दीपक बाबा- मै इस कविता को जीने की कला कहूँगा । ज़ील - शेफालिका जी से परिचय के लिए आभार । उस्ताद जी - सुन्दर सशक्त । देवेन्द्र पाण्डेय - सार्थकता जीवन का उद्देश्य नहीं प्रक्रिया है । शाहिद मिर्ज़ा शाहिद - नायाब रचनायें पढ़ने को मिल रही हैं । रचना दीक्षित - लाजवाब रचना अच्छी अभिव्यक्ति । डॉ.टी एस दराल-कविता क्या यह तो ज्ञान का भंडार है । राजेश उत्साही ने एक पुराने गीत को याद किया ..अपने लिए जिये तो क्या जिये । प्रवीण पाण्डेय को भी यह कविता अच्छी लगी ।
मुझे यह कहते हुए अच्छा लग रहा है कि इन पुराने पाठकों के अलावा ब्लॉग के बहुत सारे नये पाठक भी इन दिनों जुड़े हैं और जिनकी कविता के बारे में बहुत अच्छी समझ है । लेकिन यहीं कहीं पिछले वर्ष के बहुत सारे साथी अब तक अनुपस्थित हैं । मैं याद कर रहा हूँ , हरकीरत हीर ,संजीव तिवारी ,आशीष खंडेलवाल , गिरिजेश राव , महफूज़ अली ( महफूज़ भाई इस समय एक संकट से गुज़र रहे हैं हम सब दुआ करें कि यह संकट शीघ्र दूर हो ) ,सुमन जी ,राजेश्वर वशिष्ठ ,डॉ. अमरजीत ,कृष्ण कुमार मिश्र ,भूषण ,अजित वडनेरकर , डॉ. अनुराग ,श्रीश पाठक प्रखर ,दीपक भारत दीप , अविनाश वाचस्पति ,शेफाली पाण्डेय , अशोक कुमार पाण्डेय , काजल कुमार , निशांत , लावण्या जी , मुमुक्ष ,लोकेश , अनिलकांत ,अनिल पुसदकर ,विनोद कुमार पाण्डेय , विधु . पवन चन्दन , प्रो. अली ,निर्मला कपिला ,खुशदीप सहगल ,चन्द्र कुमार जैन ,पी सी गोदियाल ,गिरीश बिल्लोरे ,दिनेशराय द्विवेदी, अमिताभ श्रीवास्तव ,पंकज मिश्रा ,हरि जोशी , अम्बरीश अम्बुज . मेजर गौतम राजरिशी ,कुलवंत हैप्पी , अमित के सागर , बबली ,योगेश स्वप्न ,अबयज़ खान ,चाहत ,कविता रावत और ज्योति जी को । और हाँ अपने छोटे भाई दीपक मशाल को भी ।   
            बहरहाल ... नवरात्र के छठवें  दिन आज प्रस्तुत है चर्चित मलयाळम कवयित्री सुगत कुमारी की कविता । सुगत कुमारी का जन्म जनवरी 1934 में तिरुअनंतपुरम में हुआ । इनकी प्रकाशित पुस्तकों के नाम हैं पातिराप्पूक्कल (midnight flowers ), रात्रिमषा (night rain), अबंलमणि (temple bell ), कुरुंजीप्पूक्कल (kurinji flowers ), तथा पावम मानव ह्रिदयम (poor human heart )। सुगत कुमारी , केरल साहित्य अकादमी , वायलार पुरस्कार , साहित्य अकादेमी आदि पुरस्कारों से सम्मानित हैं । इस कविता के अनुवादक हैं प्रसिद्ध रचनाकार ,केरल ज्योति के सम्पादक तथा हिन्दी सेवी के जी बालकृष्ण पिल्लै  । प्रस्तुत कविता साहित्य अकादेमी की पत्रिका “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 77 से साभार ।
            प्रस्तुत कविता एक दृश्य के बहाने मनुष्य की संवेदना को झकझोरती है । यह उस गुम हो चुकी संवेदना की तलाश है जो किसी की बस्ती जला दिए जाने या घर उजाड़ दिये जाने के बाद भी वापस नहीं आती । यह इसलिये तो नहीं कि जैसे जैसे हम सभ्य होते गये है ,और ज़िन्दगी का एक व्यापारी की तरह हिसाब लगाते गए हैं वैसे वैसे संवेदना से भी दूर होते गये हैं ? यह न भूलें कि यह प्रकृति एक दिन हमारा भी हिसाब करेगी ।

हाय ! क्या कर डाला तुमने मेरी दुनिया का

वह देखो इक चिड़िया माँ
बड़े वेग से उड़ती आती भोज्य लिए
अपनी प्यारी संतानों को देने
 सहसा चौंकी
तड़प तड़प कर घूम रही वह
बिलख रही वह !
मानव की भाषा में उसका यही अर्थ हो सकता है
हाय - हाय क्या कर डाला तुमने मेरी दुनिया का ?
पिघल रहा है दिल उसका
पिघल रहा है दिल मेरा भी
घूम फिर रही मैं भी उसके संग
वह छोटा घोंसला कहाँ
जिस के अंदर बैठी थी
इस चिड़िया की प्यारी संतानें
कुछ खाने को मृदु मुँह खोले ?

कहाँ गया वह जंगल
जिस में
मोर -पंख फैलाए झूम रहा था वह सुंदर तरुवर ?
बिलख रही मैं घूम रही मैं उस चिड़िया के संग
यहाँ शेष
बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें
जिन से बहता अब भी उनका खून
कड़ी धूप जो बरस रही है तप्त तैल सी
और ताप उस महाशाप का
जिसे दे गया रोते मरते वह कांतार !
एक अटवि के तड़प - तड़प कर मर जाने का
क्या है मोल ?
एक विटप के मर जाने का क्या है मोल ?
एक विहग के करुण रुदन का क्या है मोल ?
इन सब व्यापारों का
बिलकुल सही हिसाब लगाती प्रकृति
सही हिसाब लगाती प्रकृति !

-       सुगत कुमारी  
 ( सुगत कुमारी का चित्र गूगल से साभार )

31 टिप्‍पणियां:

  1. chidiyaa kaa apne bchchon ke liyen bhojn lejane kaa andaze byaan bhut khub he mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. निर्मम होती दुनिया से ज्‍वलंत सवाल है।

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  3. दिल को छू लेने वाली कविता.......

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  4. एक अटवि के तड़प - तड़प कर मर जाने का
    क्या है मोल ?
    एक विटप के मर जाने का क्या है मोल ?
    एक विहग के करुण रुदन का क्या है मोल ?

    चिड़िया को प्रतीक मान लें तो कहीं न कहीं आज मानव जीवन का भी क्या मोल है?
    जंगलों को नष्ट करके पक्षियों को बेघर करने वाले हों या इंसानी लाशों के व्यापारी ,मेरी नज़र में दोनों ही आतंकवादी हैं
    और वो व्यक्ति जो किसी का दिल दुखाए वो भी किसी आतंक्वादी से कम गुनाहगार नहीं
    चिड़िया की विवशता का बहुत मार्मिक चित्रण है ,बढ़िया कविता
    बधाई और धन्यवाद रचनाकार को ,अनुवाद्कर्त्ता को और शरद जी आप को भी जिन के कारण इतनी बढ़िया कविताएं पढ़ने को मिल रही हैं

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  5. सुंदर रचना....प्रकृति के प्रति हमारी निर्ममता पर सवाल उठाती....

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  6. चिड़िया के माध्यम से प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों से सार्थक प्रश्न ...प्रकृति अपना संतुलन स्वयं कर लेती है ..जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है तब भी इंसान की आँखें नहीं खुलतीं ...

    सुन्दर अनुवाद के साथ अच्छी रचना ..

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  7. बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें
    जिन से बहता अब भी उनका खून
    कड़ी धूप जो बरस रही है तप्त तैल सी
    और ताप उस महाशाप का
    जिसे दे गया रोते मरते वह कांतार !
    एक अटवि के तड़प - तड़प कर मर जाने का
    क्या है मोल ?
    एक विटप के मर जाने का क्या है मोल ?
    एक विहग के करुण रुदन का क्या है मोल ?
    शरद जी, साहित्यिक धरोहर पेश करने के लिए आपका आभार.

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  8. एक विटप के मर जाने का क्या है मोल ?
    एक विहग के करुण रुदन का क्या है मोल ?
    इन सब व्यापारों का
    बिलकुल सही हिसाब लगाती प्रकृति

    इन पंक्तियों में बहुत ही मार्मिक चित्रण है, और इसमें उपजे सवालों का जवाब क्‍या है, वह हम सब जानते हैं .....लेकिन खामोश रहते हुये कभी भावमय होकर यूं ही किसी रचना को जन्‍म दे देते हैं...इस प्रस्‍तुति के लिये आपका आभार ।

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  9. 5.5./10

    सुन्दर अनुवाद
    उत्कृष्ट - गहरे भाव

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  10. आज जब कुछ बाजार तय करता है की हमारा जीवन कैसा हो ?तब सवेद्नाओ की जगह कम ही रहती है और इस बाजारवाद में हम प्रक्रति से ,प्रक्रति निर्मित सजीव प्राणियों की भावनाओ को नजरंदाज करते जा रहने रहे है |सगत कुमारीजी ने बहुत ही स्वेदन शील कविता लिखी है \आभार |

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  11. कविता के माध्यम से समकालीन व्यवस्था को स्पष्ट किया गया | जिसमें प्रकृति को नष्ट करते निर्मम लोग और उसमें बसती चिड़िया को हम एक तरह से मानव रूप में ही पाते हैं | आज इस आधुनिक दौड़ में किस बात का मोल है और ये समाज को कहाँ ले जायेगा |

    आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आप पिछले दिनों से कई श्रेष्ठ कविताओं को पढने का अवसर दे रहे हैं |

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  12. प्रकृति के खिलवाड़ किया तो प्रकृति उसका हिसाब खुद चुका लेती है.
    बहुत अच्छी रचना.

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  13. आदमी ही ऐसा जानवर है जो अपने सर्वाइवल के लिए नहीं ...अपने लालच के लिए कुदरत की चेन को तोड़ रहा है .....
    कवि अपने वक़्त का चौकीदार है .....

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  14. अपने स्वार्थ के लिए मानव का प्रकृति प्रदत्त उपहारों का सम्मान ना करना और फिर प्रकृति का
    कुपित होना...सब बड़ी कुशलता से कविता में उभर कर आया है.
    बहुत ही मार्मिक कविता

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  15. प्रकृति के प्रति हो या इंसान के मगर दोषी इंसान का स्वार्थ है जिस कारण वो ये अन्याय कर रहा है ना पशु पक्षियों को छोड रहा है और ना इंसान को…………निर्ममता ही हदे जब इंसान पार कर जाता है तब प्रकृति अपना रोद्र रूप धारण कर सब हिसाब ले लेती है……………बेहद सुन्दर अनुवाद यथार्थ बोध कराता हुआ।

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  16. प्रकृति से हो रहे खिलवाड़ पर एक जागरुक नजर चिड़िया के बिम्ब के माध्यम से..बहुत उत्तम रचना.

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  17. प्रकृति का अनादर कर हम स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।

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  18. chidya kp madhyam bana kar jis tarah se aapne manav man ko jhak -jhorne par vivas kar diya hai vah vastav me bahut hi kabile tarrif hai.

    बिलकुल सही हिसाब लगाती प्रकृति
    सही हिसाब लगाती प्रकृति !
    aabhar,
    poonam

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  19. बहुत ही विचारनीय कविता .........प्रकृति के साथ खिलवाड शायद कुछ ज्यादा ही हम कर रहे है.

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  20. चिड़िया की व्यथा के माध्यम से कवयित्री ने प्रकृति और अपनी संवेदना को मार्मिक शब्दों में अभिव्यक्त किया है।...प्रभावशाली कविता।

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  21. प्रकृति का यह हश्र, क्या होना ही था?

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  22. प्राणियों में सबसे ज्यादा विकसित प्राणी ही प्रकृति का शत्रु बन बैठा है ।
    संवेदनाओं से परिपूर्ण रचना ।

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  23. नश्तर सा चुभता है उर में, कटे वृक्ष का मौन
    नीड़ ढूंढते पागल पंछी को समझाए कौन!

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  24. मनुष्य के संवेदनहीनता का उदाहरण । सचेत करती रचना ।

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  25. यहाँ शेष
    बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें
    जिन से बहता अब भी उनका खून
    कड़ी धूप जो बरस रही है तप्त तैल सी
    और ताप उस महाशाप का
    जिसे दे गया रोते मरते वह कांतार !
    --
    मानवीय सम्वेदनाओं को झकझोती सुगत कुमारी जी की रचना
    आज के समाज को दिशा देने में सक्षम है!
    --
    इस रचना को प्रस्तुत करने के लिए
    शरद जी आपका बहुत-बहुत आभार!

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  26. शरद जी बहुत सुन्दर कार्य कर रहें हैं आप । आप के ब्लॉग पर नियमित रूप से आता हूँ, कविता का आनन्द लेता हूँ । चिडिया के माध्यम से यह हमारे समाज का सच्चा अक्स है । कविता सुन्दर है, अनुवाद में विचार बच गए हैं पर भाषा आज के मुहावरे की नहीं है। निग़ेटिव बात कहने से बचने के लिए कई बार बिना टिप्पणी किए लौटना पडता है । इसी तरह से एक और अच्छी मराठी कविता का अनुवाद पढा था पर उसमें दलित क्या था समझ नहीं पाया । कटरीना कैफ और प्रियंका चोपडा दलित हों तो लोग उन्हें सुन्दर स्त्रियाँ कहेंगे या दलित सुन्दर स्त्रियां । आप अच्छा कार्य कर रहे हैं बधाई ।

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  27. ओह प्रकृति पर बेहद संवदनशील अभिव्यक्ति !

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  28. इसी तरह की एक कविता मराठी में हमने स्कूल में पढी थी । चिडिया दाना लेने जाती है और किसी शिकारी के गुलैल से घायल होकर गिरती है उसके भाव और इस कविता के भाव मिलते हैं । इसके साथ कवयित्री खुद भी उतनी ही आर्त है ।
    कहाँ गया वह जंगल
    जिस में
    मोर -पंख फैलाए झूम रहा था वह सुंदर तरुवर ?
    बिलख रही मैं घूम रही मैं उस चिड़िया के संग
    यहाँ शेष
    बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें
    जिन से बहता अब भी उनका खून

    इन सब व्यापारों का
    बिलकुल सही हिसाब लगाती प्रकृति
    सही हिसाब लगाती प्रकृति !

    एक से एक सुंदर रचनाएं पढवाने का अनेक धन्यवाद ।

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