tag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post3846274791360600155..comments2023-10-29T18:17:34.870+05:30Comments on शको कोश : किसी की दुनिया उजड़ जाती है और आपको कुछ नहीं होता ?शरद कोकासhttp://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comBlogger31125tag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-23215514263026647052010-10-18T04:00:35.719+05:302010-10-18T04:00:35.719+05:30इसी तरह की एक कविता मराठी में हमने स्कूल में पढी थ...इसी तरह की एक कविता मराठी में हमने स्कूल में पढी थी । चिडिया दाना लेने जाती है और किसी शिकारी के गुलैल से घायल होकर गिरती है उसके भाव और इस कविता के भाव मिलते हैं । इसके साथ कवयित्री खुद भी उतनी ही आर्त है ।<br />कहाँ गया वह जंगल<br />जिस में<br />मोर -पंख फैलाए झूम रहा था वह सुंदर तरुवर ?<br />बिलख रही मैं घूम रही मैं उस चिड़िया के संग<br />यहाँ शेष<br />बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें<br />जिन से बहता अब भी उनका खून <br /><br />इन सब व्यापारों का<br />बिलकुल सही हिसाब लगाती प्रकृति<br />सही हिसाब लगाती प्रकृति !<br /><br />एक से एक सुंदर रचनाएं पढवाने का अनेक धन्यवाद ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-74618506927597982402010-10-14T22:38:05.366+05:302010-10-14T22:38:05.366+05:30ओह !ओह !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-71611154257489171582010-10-14T18:16:03.004+05:302010-10-14T18:16:03.004+05:30ओह प्रकृति पर बेहद संवदनशील अभिव्यक्ति !ओह प्रकृति पर बेहद संवदनशील अभिव्यक्ति !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-2458742611354365532010-10-14T14:05:57.587+05:302010-10-14T14:05:57.587+05:30शरद जी बहुत सुन्दर कार्य कर रहें हैं आप । आप के ब्...शरद जी बहुत सुन्दर कार्य कर रहें हैं आप । आप के ब्लॉग पर नियमित रूप से आता हूँ, कविता का आनन्द लेता हूँ । चिडिया के माध्यम से यह हमारे समाज का सच्चा अक्स है । कविता सुन्दर है, अनुवाद में विचार बच गए हैं पर भाषा आज के मुहावरे की नहीं है। निग़ेटिव बात कहने से बचने के लिए कई बार बिना टिप्पणी किए लौटना पडता है । इसी तरह से एक और अच्छी मराठी कविता का अनुवाद पढा था पर उसमें दलित क्या था समझ नहीं पाया । कटरीना कैफ और प्रियंका चोपडा दलित हों तो लोग उन्हें सुन्दर स्त्रियाँ कहेंगे या दलित सुन्दर स्त्रियां । आप अच्छा कार्य कर रहे हैं बधाई ।RAJESHWAR VASHISTHAhttps://www.blogger.com/profile/01683041193283259654noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-90159602351206276042010-10-14T12:59:27.277+05:302010-10-14T12:59:27.277+05:30यहाँ शेष
बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें
जिन से बहता अ...यहाँ शेष<br />बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें<br />जिन से बहता अब भी उनका खून<br />कड़ी धूप जो बरस रही है तप्त तैल सी<br />और ताप उस महाशाप का<br />जिसे दे गया रोते मरते वह कांतार !<br />--<br />मानवीय सम्वेदनाओं को झकझोती सुगत कुमारी जी की रचना <br />आज के समाज को दिशा देने में सक्षम है!<br />--<br />इस रचना को प्रस्तुत करने के लिए <br />शरद जी आपका बहुत-बहुत आभार!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-14752260363227882512010-10-14T07:11:42.632+05:302010-10-14T07:11:42.632+05:30मनुष्य के संवेदनहीनता का उदाहरण । सचेत करती रचना ।...मनुष्य के संवेदनहीनता का उदाहरण । सचेत करती रचना ।अजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-23044718805624960302010-10-13T23:10:28.050+05:302010-10-13T23:10:28.050+05:30बहुत ही विचारनीय कविताबहुत ही विचारनीय कवितासंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-2883614890536514042010-10-13T21:08:07.513+05:302010-10-13T21:08:07.513+05:30नश्तर सा चुभता है उर में, कटे वृक्ष का मौन
नीड़ ढू...नश्तर सा चुभता है उर में, कटे वृक्ष का मौन<br />नीड़ ढूंढते पागल पंछी को समझाए कौन!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-60110265995546745882010-10-13T19:58:35.840+05:302010-10-13T19:58:35.840+05:30प्राणियों में सबसे ज्यादा विकसित प्राणी ही प्रकृति...प्राणियों में सबसे ज्यादा विकसित प्राणी ही प्रकृति का शत्रु बन बैठा है ।<br />संवेदनाओं से परिपूर्ण रचना ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-21545661696727873122010-10-13T19:07:21.847+05:302010-10-13T19:07:21.847+05:30बहुत मार्मिकता के रची गई .........बहुत मार्मिकता के रची गई .........सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-28323419043529226482010-10-13T18:30:58.602+05:302010-10-13T18:30:58.602+05:30प्रकृति का यह हश्र, क्या होना ही था?प्रकृति का यह हश्र, क्या होना ही था?प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-5114298623549047852010-10-13T18:15:27.748+05:302010-10-13T18:15:27.748+05:30चिड़िया की व्यथा के माध्यम से कवयित्री ने प्रकृति ...चिड़िया की व्यथा के माध्यम से कवयित्री ने प्रकृति और अपनी संवेदना को मार्मिक शब्दों में अभिव्यक्त किया है।...प्रभावशाली कविता।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-48260686509024319722010-10-13T18:15:03.335+05:302010-10-13T18:15:03.335+05:30बहुत ही विचारनीय कविता .........प्रकृति के साथ खिल...बहुत ही विचारनीय कविता .........प्रकृति के साथ खिलवाड शायद कुछ ज्यादा ही हम कर रहे है.उपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-9010464989240530072010-10-13T17:21:52.158+05:302010-10-13T17:21:52.158+05:30chidya kp madhyam bana kar jis tarah se aapne mana...chidya kp madhyam bana kar jis tarah se aapne manav man ko jhak -jhorne par vivas kar diya hai vah vastav me bahut hi kabile tarrif hai.<br /><br /> बिलकुल सही हिसाब लगाती प्रकृति<br />सही हिसाब लगाती प्रकृति !<br />aabhar,<br /> poonamपूनम श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09864127183201263925noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-55233892173785560902010-10-13T16:20:10.302+05:302010-10-13T16:20:10.302+05:30प्रकृति का अनादर कर हम स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड...प्रकृति का अनादर कर हम स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-69649009333007445862010-10-13T16:06:26.104+05:302010-10-13T16:06:26.104+05:30प्रकृति से हो रहे खिलवाड़ पर एक जागरुक नजर चिड़िया...प्रकृति से हो रहे खिलवाड़ पर एक जागरुक नजर चिड़िया के बिम्ब के माध्यम से..बहुत उत्तम रचना.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-80321481343627657252010-10-13T16:02:59.739+05:302010-10-13T16:02:59.739+05:30प्रकृति के प्रति हो या इंसान के मगर दोषी इंसान का ...प्रकृति के प्रति हो या इंसान के मगर दोषी इंसान का स्वार्थ है जिस कारण वो ये अन्याय कर रहा है ना पशु पक्षियों को छोड रहा है और ना इंसान को…………निर्ममता ही हदे जब इंसान पार कर जाता है तब प्रकृति अपना रोद्र रूप धारण कर सब हिसाब ले लेती है……………बेहद सुन्दर अनुवाद यथार्थ बोध कराता हुआ।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-55588207531213033142010-10-13T14:26:56.579+05:302010-10-13T14:26:56.579+05:30अपने स्वार्थ के लिए मानव का प्रकृति प्रदत्त उपहारो...अपने स्वार्थ के लिए मानव का प्रकृति प्रदत्त उपहारों का सम्मान ना करना और फिर प्रकृति का<br />कुपित होना...सब बड़ी कुशलता से कविता में उभर कर आया है.<br />बहुत ही मार्मिक कविताrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-59830384927308052582010-10-13T14:19:53.294+05:302010-10-13T14:19:53.294+05:30आदमी ही ऐसा जानवर है जो अपने सर्वाइवल के लिए नहीं ...आदमी ही ऐसा जानवर है जो अपने सर्वाइवल के लिए नहीं ...अपने लालच के लिए कुदरत की चेन को तोड़ रहा है .....<br /> कवि अपने वक़्त का चौकीदार है .....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-28248556012721103722010-10-13T13:40:00.477+05:302010-10-13T13:40:00.477+05:30प्रकृति के खिलवाड़ किया तो प्रकृति उसका हिसाब खुद ...प्रकृति के खिलवाड़ किया तो प्रकृति उसका हिसाब खुद चुका लेती है.<br />बहुत अच्छी रचना.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-5724643929981221402010-10-13T13:23:37.934+05:302010-10-13T13:23:37.934+05:30कविता के माध्यम से समकालीन व्यवस्था को स्पष्ट किया...कविता के माध्यम से समकालीन व्यवस्था को स्पष्ट किया गया | जिसमें प्रकृति को नष्ट करते निर्मम लोग और उसमें बसती चिड़िया को हम एक तरह से मानव रूप में ही पाते हैं | आज इस आधुनिक दौड़ में किस बात का मोल है और ये समाज को कहाँ ले जायेगा | <br /><br />आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आप पिछले दिनों से कई श्रेष्ठ कविताओं को पढने का अवसर दे रहे हैं |अनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-10181960022638169342010-10-13T12:56:46.704+05:302010-10-13T12:56:46.704+05:30आज जब कुछ बाजार तय करता है की हमारा जीवन कैसा हो ?...आज जब कुछ बाजार तय करता है की हमारा जीवन कैसा हो ?तब सवेद्नाओ की जगह कम ही रहती है और इस बाजारवाद में हम प्रक्रति से ,प्रक्रति निर्मित सजीव प्राणियों की भावनाओ को नजरंदाज करते जा रहने रहे है |सगत कुमारीजी ने बहुत ही स्वेदन शील कविता लिखी है \आभार |shobhanahttps://www.blogger.com/profile/11004251729395220506noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-4295885626310480482010-10-13T12:52:30.083+05:302010-10-13T12:52:30.083+05:305.5./10
सुन्दर अनुवाद
उत्कृष्ट - गहरे भाव5.5./10<br /><br />सुन्दर अनुवाद <br />उत्कृष्ट - गहरे भावउस्ताद जीhttps://www.blogger.com/profile/03230688096212551393noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-7805470550026019002010-10-13T12:42:01.752+05:302010-10-13T12:42:01.752+05:30एक विटप के मर जाने का क्या है मोल ?
एक विहग के करु...एक विटप के मर जाने का क्या है मोल ?<br />एक विहग के करुण रुदन का क्या है मोल ?<br />इन सब व्यापारों का<br />बिलकुल सही हिसाब लगाती प्रकृति <br /><br />इन पंक्तियों में बहुत ही मार्मिक चित्रण है, और इसमें उपजे सवालों का जवाब क्या है, वह हम सब जानते हैं .....लेकिन खामोश रहते हुये कभी भावमय होकर यूं ही किसी रचना को जन्म दे देते हैं...इस प्रस्तुति के लिये आपका आभार ।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-60471665225092048952010-10-13T12:34:25.585+05:302010-10-13T12:34:25.585+05:30बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें
जिन से बहता अब भी उनका ...बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें<br />जिन से बहता अब भी उनका खून<br />कड़ी धूप जो बरस रही है तप्त तैल सी<br />और ताप उस महाशाप का<br />जिसे दे गया रोते मरते वह कांतार !<br />एक अटवि के तड़प - तड़प कर मर जाने का<br />क्या है मोल ?<br />एक विटप के मर जाने का क्या है मोल ?<br />एक विहग के करुण रुदन का क्या है मोल ? <br />शरद जी, साहित्यिक धरोहर पेश करने के लिए आपका आभार.शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद''https://www.blogger.com/profile/09169582610976061788noreply@blogger.com