रविवार, अक्टूबर 17, 2010

उम्मीद नहीं छोड़ती कवितायें ... बुदबुदाती हैं धन्यवाद ! धन्यवाद !


8 अक्तूबर से 16 अक्तूबर 2010 तक ब्लॉग “ शरद कोकास “ पर चलने वाले इस नवरात्र कविता उत्सव मे आपने डोगरी कवयित्री पद्मा सचदेव , तेलुगु कवयित्री वरिगिंड सत्य सुरेखा (अनुवाद आर शांता सुन्दरी) ,असमिया कवयित्री निर्मल प्रभा बोरदोलोई (अनुवाद सिद्धेश्वर सिंह ) ,मराठी कवयित्री ज्योती लांजेवार ( अनुवाद शरद कोकास ) , मैथिली कवयित्री शेफालिका वर्मा , मलयाळम कवयित्री सुगत कुमारी ( अनुवाद जी. बालकृष्ण पिल्लै) ,ओड़िया कवयित्री प्रतिभा शतपथी ( अनुवाद राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ) , सिन्धी कवयित्री विम्मी सदारंगाणी तथा बांगला कवयित्री जया मित्र ( अनुवाद नीता बनर्जी) की कविताएँ और उनके अनुवाद पढ़े ।
इस कविता उत्सव में अनेक पाठकों , कविता प्रेमियों , कवि और ब्लॉगर्स ने अपनी भागीदारी दर्ज की ।
            8 अक्तूबर 2010 को प्रकाशितपद्मा सचदेव की कविता के बारे में गिरीश पंकज कहते हैं स्त्री लेखन की सही दिशा क्या हो सकती है , यह कविता तय करती है । रूपचन्द शास्त्री मयंक ने कहा यह परिवेश का सुन्दर चित्रण करती है । संगीता ने कहा पद्मा जी के बारे में जानना ,उन्हे पढ़ना सुखद अनुभूति है । रश्मि रविजा ने कहा पद्मा जी की रचना बहुत दिनों बाद पढी । सुशीला पुरी ने कहा यह कविता कई सवाल खड़े करती है । सागर ने इसे आज के संदर्भ में अच्छी कविता बताया । रन्जू भाटिया ने कहा पद्मा जी को पढ़ना अच्छा लगा । शिखा वार्ष्णेय ने कहा इस कविता की एक एक पन्क्ति छू जाती है । शोभना चौरे ने कहा पद्माजी उनकी पसन्दीदा कवयित्री हैं ।ताऊ रामपुरिया ने कहा कि इस कविता में पद्मा जी की खासियत के अनुरूप एक एक शब्द है । डॉ. टी एस दराल ने पद्मा जी से इस शृंखला के श्रीगणेश को बेहतर बताया । महेन्द्र वर्मा ने पद्मा जी के धर्मयुग में प्रकाशन के दिनों की बात की । जे पी तिवारी , मनोज ,बबली ,कविता रावत ,सुज्ञ , अली ,राज भाटिया , देवेन्द्र पाण्डे , संजीव तिवारी ,वाणी गीत ,संजय भास्कर को यह कविता पसन्द आई । परमजीत सिंह बाली , अलबेला खत्रीडॉ. मोनिका शर्मा को ने इसे अच्छी प्रस्तुति बताया । 
                        9 अक्तूबर 2010 को  प्रकाशित वरिगोंड सत्य सुरेखा की तेलुगु कविता पर बहुत सारी प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं । प्रवीण त्रिवेदी ने कहा सच है इन प्रश्नों के जवाब नहीं ही मिलने वाले  मनोज कुमार ने कहा हँसी हँसी में गहरी बात कह दी गई है ।रावेन्द्र कुमार रवि ने कहा कि यह महसूस करने की बात है कि प्रश्नकर्ता और उत्तर न देने वाले की हँसी में क्या अंतर है ।इस्मत ज़ैदी ने कविता में प्रश्नों के उत्तर ढूँढने के इस प्रयास को सराहनीय बताया निशांत ने कहा चलानो वालो से बड़े उनसे भी बड़े चलाने वाले । एस एम मासूम, पारुल ,अजय कुमार ,देवेन्द्र पाण्डेय ,राज भाटिया ,ज्योति सिंह ,पूनम श्रीवास्तव,दीपक बाबा को यह कविता पसंद आई । संगीता स्वरूप ने कहा कि कवयित्री ने मन की वेदना कह दी है । वन्दना ने इसे सार्थक अभिव्यक्ति कहा और शाहिद मिर्ज़ा ने कहा कि सवाल जवाब का यह सिलसिला कभी नही थमेगा । शोभना चौरे ने कहा इस पीड़ा को अंतर्मन से समझने की कोशिश रही हूँ ।रश्मि रविजा ने कहा कि जवाब किसीके पास नहीं है इसलिये लोग सवालों पर हँस पड़ते हैं । सुशीला पुरी ने कहा कि विवशता में भी हँसकर खुद को बहलाया जा सकता है ।वाणी गीत ने कहा कि सवाल का जवाब भी अगर सवाल है तो हँसने के सिवा क्या किया जा सकता है ।महेन्द्र वर्मा ने चांद और डर के अनूठे बिम्ब का ज़िक्र किया । समीर लाल ने कहा कि पीड़ा का चरम भी अक्सर हँसी में तब्दील होते देखा है । राहुल सिंह ने कहा जग ह कहत भगत बहिया ,भगत ह कहत जगत बहिया .। एक ब्लॉगर की टिप्पणी बहुत दिनों बाद मिली ..कोपल कोकास ने कहा हँसने वालों को देखकर हँसी रोकना मुश्किल है तो हँसना ही बेहतर है । उत्तम राव क्षीरसागर ने इसे अपने उद्देशय में सफल कविता बताया । गत वर्ष 19 सितम्बर 2009 से 27 सितम्बर 2009 तक के शारदीय नवरात्र कविता उत्सव में शामिल श्री पी सी गोदियाल , दिनेश राय द्विवेदी , निर्मला कपिला अशोक कुमार पाण्डेय,मिथिलेश दुबे, मीनू खरे, विनोद कुमार पाण्डेय , समयचक्र, हेमंत कुमार ,टी एस दराल,भूतनाथ, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, विनीता यशस्वी , मिता दास ,लावण्या शाह ,पंकज नारायण और कुलवंत हैप्पी को भी मैंने याद किया  ।   
            10 अक्तूबर 2010 को प्रकाशित  असमिया कवयित्री निर्मलाप्रभा बोरदोलोई की कविता के पाठकों के रूप में फिर कुछ नये लोगों का आगमन हुआ । उन सभी का मैंने स्वागत किया । उनके उद्धरण इस प्रकार हैं । डॉ.नूतन नीति ने कहा इच्छा अंतस मन बेहद अच्छी लगी । शाहिद मिर्ज़ा ने कहा कि दोनों कवितायें मर्मस्पर्शी हैं । डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक एवं उपेन्द्र जी ने मूल कविता का भाव हूबहू कविता में उतारने के लिए  अनुवादक  सिद्धेश्वर जी की प्रशंसा की । संगीता स्वरूप ने इन्हे अतीत से जुड़ती भविष्य की कविता निरूपित किया । देवेन्द्र पाण्डेय ,राज भाटिया , काजल कुमार और कुसुम कुसुमेश जी को कवितायें अच्छी लगीं । राजेश उत्साही ने अपनी विस्तृत टिप्पणी में कहा कि ब्लॉग में अच्छे पाठक कैसे तैयार हों इस दिशा में सोचना ज़रूरी है । महेन्द्र वर्मा ने कहा कि सिद्धेश्वर जी ठीक कहते हैं अच्छी कविता ठहराव चाहती है । दिगम्बर नासवा ने इन्हे कम शब्दों में गहरी वेदना व्यक्त करने वाली कवितायें कहा ।वन्दना जी ने इन्हे स्त्री मन की अंतर्वेदना व्यक्त करने वाली कवितायें कहा और इस पोस्ट को चर्चा मंच में शमिल करने की सूचना दी । वन्दना अवस्थी दुबे ने कविताओं के परिप्रेक्ष्य में कहा कि ऐसा हमारे पास क्या है जिसे हम यादों के रूप में सहेज जायें ।डॉ. टी एस.दराल ने दुख को मर्मस्पर्शी तथा इच्छा को सचेत करती प्रेरणात्मक रचना बताया ।डॉ. मोनिका शर्मा , उस्ताद जी और  ZEAL को यह कवितायें अच्छी लगीं ।प्रज्ञा पाण्डेय ने इसे मन को मथने वाली कविता कहा और सुशीला पुरी ने कहा कि कवयित्री की इच्छा समूचे विश्व से जोड़ती है ।बहुत दिनो बाद पधारी आशा जोगलेकर ने कहा सिद्धेश्वर जी ने कविता की आत्मा अक्षुण्ण रखी है। रावेन्द्र कुमार संजय भास्कर व अजय कुमार ने भी अपनी उपस्थिति  दर्ज कराई ।
                        11 अक्तूबर को प्रकाशित  ज्योती लांजेवार की मराठी कविता पर अनेक सुधि पाठकों की प्रतिक्रिया प्राप्त हुई । इन प्रतिक्रियाओं से एक एक पंक्ति उद्धृत  कर रहा हूँ । इन्हे अवश्य पढ़िये । देवेन्द्र पाण्डेय - वेदना की गन्ध को एक क्षण बसा लेने की आकांक्षा अधुत अहसास कराती है । पद्म सिंह - बहुत अच्छी तरह उकेरे गये भाव । ललित शर्मा - बेहतरीन रचना और अनुवाद । इस्मत ज़ैदी - कोमल भावों की व्याख्या करती सुन्दर रचना ।  संगीता स्वरूप ,एस एम मासूम -स्नेहिल स्पर्श के महत्व को बताती सुन्दर रचना । के के यादव- मराठी ने ही सर्वप्रथम दलित साहित्य को ऊँचाइयाँ दीं । डॉ.मोनिका शर्मा -प्रभावी और भावपूर्ण रचना । उस्ताद जी -बोझिल । वन्दना -बहुत सुन्दर अनुवाद । सिद्धेश्वर सिंह -एक अच्छी कविता पढ़ने के सुख में हूँ । रंजू भाटिया - अनुवाद बहुत अच्छा किया है आपने । सुशीला पुरी -  प्रेम भी एक तरह का युद्ध है । महेन्द्र वर्मा -  अपने प्रिय से गहन आत्मीयता को अभिव्यक्त करती कविता । पी एन सुब्रमनियन - अनुवाद में मूल भावनाओं को समेटना बहुत कठिन होता है । मनोज कुमार - कविता भाषा शिल्‍प और भंगिमा के स्‍तर पर समय के प्रवाह में मनुष्‍य की नियति को संवेदना के समांतर, दार्शनिक धरातल पर अनुभव करती और तोलती है मुक्ति - दलित कवियत्रियों की कविताओं में एक वेदना तो होती ही है । संजय भास्कर  - मूल भाव अभियव्यक्ति लाजवाब है । शाहिद मिर्ज़ा  - आपके अनुवाद से आया निखार चार चांद लगा रहा है । शिखा वार्ष्णेय - कविता में पवन के माध्यम से वेदना को उकेरना बहुत प्रभावी लगा । ज्योति सिंह -पवन के मध्यम से गहरी बात कही गई है ।  वाणी गीत - सदियों से हाशिये पर रहे लोगों के लिए प्रेम सिर्फ रोमांस नहीं हो सकता आकांक्षा - सुन्दर कविता. और सार्थक अनुवाद रश्मि रविजा - किसी भी वेदना को स्नेहिल स्पर्श की आकांक्षा जरूर होती है डॉ. टी एस दराल - अनुवाद में किये गए शब्दों के प्रयोग दिलचस्प हैं  समीर लाल - प्रेम की वेदना...अनुवाद में भी वही प्रवाह...और भावों की महक ! कैलाश - मराठी की दलित प्रेम कविता को प्रस्तुत करने के लिए आपका शुक्रियाराजेश उत्साही - अनुवाद और सहज और सरल हो सकता थाडॉ. रूपचन्द शास्त्री - शब्दों के मोतियों को टाँकने मे आपने कमाल किया है । रचना दीक्षित - सचमुच खूबसूरत कविता । zeal - परिचय करवाने का आभार और बेहतरीन अनुवाद के लिए आपको बधाई राज भाटिया - बहुत अच्छी कविता जी । रावेन्द्रकुमार रवि - उपस्थित श्रीमानउत्तम राव क्षीर सागर - अंति‍म पद की पहली पंक्‍ति‍ खटकती है मेरे हि‍साब से यह 'अपने भीतर बसा लेना उसे' होती शोभना चौरे - मराठी से हिंदी अनुवाद सुन्दर है | वन्दना अवस्थी दुबे -कितनी मासूम इच्छा है!!! बहुत सुन्दर
12 अक्तूबर 2010 को प्रकाशित  शेफालिकावर्मा की मैथिली कविता पर बहुत सारे नये पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की । जबलपुर से हमारे पुराने साथी महेन्द्र मिश्र ने कहा शेफालिका वर्मा जी की रचना बहुत जोरदार है मिता दास ने कहा साँस लेना ही ज़िन्दगी नहीं । रंजू भाटिया - बहुत सुन्दर । आकांक्षा - शेफालिका वर्मा जी की रचना लाजवाब है । डॉ. मोनिका शर्मा -बहुत अच्छी रचना साझा की है आपने ।  संजय भास्कर - शेफालिका वर्मा जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद । वन्दना - कविता एक सार्थक सन्देश दे रही है । वाणी गीत-जीवन की सार्थकता पर अच्छी कविता । इस्मत ज़ैदी - बहुत सुन्दर भावों के साथ संस्कारों की सीख देती रचना  सदा - बहुत ही सुन्दर व प्रेरक प्रस्तुति । रश्मि रविजा - जीने का अर्थ तलाशने की सीख देती सुन्दर कविता । महेन्द्र वर्मा - यह कविता कवयित्री के दार्शनैक दृष्टिकोण को सफलता पूर्वक अभिव्यक्त करती है । सुशीला पुरी - एक दूसरे के आँसू पोछने मे ही जीने की सार्थकता है । शोभना चौरे -सूरज बादल के माध्यम से शेफाली जी ने बहुत प्रेरक बात कही है ।  जयकृष्ण राय तुषार- बहुत सुन्दर रचना । डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक - इस सोद्देश्य रचना को पढ़वाने के लिए धन्यवाद । शिखा वार्ष्णेय - शेफलिका जी की रचना मे जीवन की सार्थकता दिखती है । दीपक बाबा- मै इस कविता को जीने की कला कहूँगा । ज़ील - शेफालिका जी से परिचय के लिए आभार । उस्ताद जी - सुन्दर सशक्त । देवेन्द्र पाण्डेय - सार्थकता जीवन का उद्देश्य नहीं प्रक्रिया है । शाहिद मिर्ज़ा शाहिद - नायाब रचनायें पढ़ने को मिल रही हैं । रचना दीक्षित - लाजवाब रचना अच्छी अभिव्यक्ति । डॉ.टी एस दराल-कविता क्या यह तो ज्ञान का भंडार है ।
13 अक्तूबर 2010 कोप्रकाशित मलयाळम कवयित्री सुगत कुमारी की कविता पर अख्तर खान अकेला ,राजेश उत्साही ,अर्पिता ,इस्मत ज़ैदी डॉ. मोनिका . संगीता स्वरूप , शाहिद मिर्ज़ा , सदा , उस्ताद जी , शोभना , डॉ. अनुराग , अनिल कांत , शिखा वार्ष्णेय , रश्मि रविजा ,वन्दना , समीर लाल , ज़ील . झरोखा , उपेन्द्र , महेन्द्र वर्मा , प्रवीण पाण्डेय , सुशीला पुरी, डॉ. टी एस दराल  देवेन्द्र पाण्डेय , संजय भास्कर ,अजय कुमार , राजेश्वर वशिष्ठ , डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक . प्रो. अली ,और अभिषेक ओझा ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की । 
14 अक्तूबर 2010 को प्रकाशित ओड़िया कवयित्री प्रतिभा शतपथी की कविता पर नवरात्र कविता उत्सव के सातवें दिन कविता के प्रेमी इन पाठकों के विचार प्राप्त हुए । शाहिद मिर्ज़ा शाहिद - कितना कुछ सीखने का मौका दिया आपने ।संगीता स्वरूप - मार्मिक अभिव्यक्ति ।ज़ील - मार्मिक अभिव्यक्ति , इन कवयित्रियों से परिचय के लिए आभार ।रचना दीक्षित -  बेहद मार्मिक ,मानवता को झकझोरती हुई । सुनील गज्जाणी -  आपका आभार कि यह आपने हम तक पहुँचाया । इस्मत ज़ैदी - कितने दुख हैं समाज में ऐसे में गुल ओ बुलबुल की बातें निरर्थक लगने लगती हैं । अनिल कांत - आपके इस कर्म से मिलने वाले लाभ को केवल प्रशंसा कर देने से वर्णित नहीं किया जा सकता । शोभना चौरे - बहुत ही गहरी वेदना को अभिव्यक्त करती सशक्त कविता । वन्दना - बेहद मर्मस्पर्शी रचना झकझोर जाती है ।शिखा वार्ष्णेय - दिल को छू लेने वाली कविता । रश्मि रविजा - बहुत ही उम्दा कविता । उपेन्द्र - इतनी अच्छी कविताओं से परिचय आपके प्रयास के बगैर मुमकिन नहीं ।प्रवीण पाण्डेय - इतने आयाम हैं नारी मन के । डॉ. अनुराग - इस बार का कथादेश अभी कल ही हाथ आया है । शुक्रिया इस कविता को बाँटने के लिए । राजेश उत्साही - एक सच्ची स्त्री से ईश्वर भी डरता है । महेन्द्र वर्मा - एक वेदनाव्यथित नारी और शक्तिस्वरूपा नारी दोनो का प्रभावशाली चित्रण ।डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक -इस कविता को पढ़कर “लुच्च बड़ा परमेश्वर से कहावत का स्मरण हो आया । समीर लाल उड़न तश्तरी - बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति रही । राजेश्वर वशिष्ठ - बेहतरीन कविता व अनुवाद । संजय भास्कर - बेहतरीन कविता के लिए धन्यवाद । अशोक बजाज -अच्छी प्रस्तुति । अमिताभ श्रीवास्तव -अभी तो सात कविता ही हुई हैं दो का इंतज़ार है ।रानी विशाल - मर्मस्पर्शी रचना । प्रो. अली -भयभीत होते ईश्वर का खयाल बहुत रोमांचित करता है । वाणी गीत - बेहद मार्मिक आभार ।
15 अक्तूबर 2010 आठवें दिन प्रकाशित विम्मी सदारंगाणी की कविता पर ओपनिंग बैट्समैन की तरह शुरुआत करते हुए संजय भास्कर ने कहा – “मैं कोल्ड कॉफी के ले वेटर को बुलाती हूँ ..अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया । डॉ. मोनिका शर्मा ने सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार व्यक्त किया । वन्दना ने कहा इन कविताओं में बहुत कुछ अनकहा छुपा है । महेन्द्र वर्मा ने कहा पहली कविता में युवा मन की अपेक्षा दूसरी में बाल मन द्वारा दुनिया की उपेक्षा है । दीपक बाबा ने कहा ये आवारा किस्म के खयाल बेहतरीन कवियों की ही अमानत हैं । राजेश उत्साही ने कहा विम्मी जी की कविता दिल पर ऐसे गिरती है जैसे किसी ने गरम गरम चाय उंडेल दी हो ।दूसरी कविता आज के समकालीन परिदृश्य में असहिष्णु होते समाज की बात करती है । इसमत ज़ैदी ने कहा बार बार पढ़नी होगी यह कविता ।संगीता स्वरूप ने कहा आपके माध्यम से अनेक भाषाओं की कवयित्रियों से परिचय हुआ । सदा ने कहा बहुत सुन्दर रचनायें ...आप एक माध्यम बने इन रचनाओं के लिए । प्रवीण पाण्डेय ने कहा दोनो की दोनो सशक्त रचनायें ।शाहिद मिर्ज़ा ने कहा अच्छी और दुर्लभ रचनायें पढ़ने को मिलीं ।डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक ने कहा दोनो कवितायें बहुत ही गहन भाव अपने में समेटे हुए हैं । अली साहब ने कहा गान्धी जी से थोड़ी इज़्ज़त से पेश आया जा सकता था । कविता मानीखेज़ है । दीपक मशाल ने कहा पूरी कविता वर्कशॉप की तरह लगी यह मालिका । डॉ. दिव्या,ज़ील ने कहा अनॉदर ग्रेट कलेक्शन ।  डॉ. टी एस दराल ने कहा दूसरी कविता को समझने के लिए दिमाग लगाना पड़ेगा ।अमिताभ मीत ने कहा यह कविता बार बार पढ़ी , समझने की कोशिश की जाएगी ।समीर भाई उड़न तश्तरी ने कहा काश इस चोट की धमक सही जगह पहुँचे ।अनामिका की सदायें ने कहा इनमे स्त्री ,समाज और पुरुषवादी मानसिकता को लेकर अनेक अर्थ हैं ।रानी विशाल ने कहा इन कविताओं के माध्यम से काव्यशिल्प के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है । अनिल कांत ने कहा कितना कुछ कह देती हैं विम्मी जी । अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी इस सत्र में पहली बार आये उनका स्वागत उन्होने कहा ..प्रेम का जेट विमान भी गजब होता है । एक समय में इतिहास के दो चेहरे ,हम कहाँ है व हमारी भूमिका कैसी है इस पर प्रश्न है ।हम लुका छिपी के खेल ( इतिहास के प्रति अगम्भीरता ) में आँख मुन्दिया हो गए हैं । सिद्धेश्वर जी ने कविता की जयजयकार की ।
16 अक्तूबर अंतिम दिन प्रकाशित बांगला कवयित्री जया मित्रा की कविता पर संजय भास्कर , ताऊ रामपुरिया ,ललित शर्मा , राजेश उत्साही , उस्ताद जी , डॉ. दिव्या , डॉ. मोनिका शर्मा . डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक ,महेन्द्र वर्मा , वन्दना , देवेन्द्र पाण्डेय , रचना दीक्षित , इस्मत ज़ैदी , शिखा वार्ष्णेय , रश्मि रविजा , डॉ. टी एस दराल , राज भाटिया , सूर्यकांत गुप्ता ,प्रवीण पाण्डेय , शाहिद मिर्ज़ा शाहिद ,वन्दना अवस्थी दुबे , अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी , गिरीश पंकज , गिरिजा कुलश्रेष्ठ ,वाणी गीत , प्रो. अली ,अशोक बजाज गिरीश बिल्लोरे व नूतन नीति की प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं ।
इन नौ दिनो तक आपका स्नेह व सहयोग मुझे मिलता रहा , आभारी हूँ । इस ब्लॉग पर निरंतर बेहतरीन कवितायें देता रहूंगा  । आप हमेशा आते रहेंगे ऐसा विश्वास है । आभार उन साथियों का भी जो अन्यान्य व्यस्तताओं के कारण फिलहाल नहीं आ पाये ।
धन्यवाद मैं क्या कहूँ वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह की कविता “ उमस “ में तो कवितायें खुद धन्यवाद दे रही हैं ..........
पर मौसम चाहे जितना खराब हो
उम्मीद नहीं छोड़ती कवितायें
वे किसी अदृश्य खिड़की से
चुपचाप देखती रहती हैं
हर आते जाते को
और बुदबुदाती हैं  -   
धन्यवाद ! धन्यवाद !

1983 में लिखी केदार जी की यह कविता मुझे आज ब्लॉग के सन्दर्भ में कितनी सही लग रही है । यह कवि भी कह रहा है ....... धन्यवाद ! धन्यवाद !  
निवेदन - कृपया मेरा ब्लॉग पास पड़ोस देखें , एक नई तरह की किताब के बारे में । 

शनिवार, अक्टूबर 16, 2010

नवरात्र कविता उत्सव - अंतिम दिन - बांगला कविता - जया मित्र

ओ मेरे देश ! तुम्ही को ढूँढती फिर रही हूँ ।

कल प्रकाशित विम्मी सदारंगाणी की कविता पर ओपनिंग बैट्समैन की तरह शुरुआत करते हुए संजय भास्कर ने कहा – “मैं कोल्ड कॉफी के लिये वेटर को बुलाती हूँ ..अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया । डॉ. मोनिका शर्मा ने सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार व्यक्त किया । वन्दना ने कहा इन कविताओं में बहुत कुछ अनकहा छुपा है । महेन्द्र वर्मा ने कहा पहली कविता में युवा मन की अपेक्षा दूसरी में बाल मन द्वारा दुनिया की उपेक्षा है । दीपक बाबा ने कहा ये आवारा किस्म के खयाल बेहतरीन कवियों की ही अमानत हैं । राजेश उत्साही ने कहा विम्मी जी की कविता दिल पर ऐसे गिरती है जैसे किसी ने गरम गरम चाय उंडेल दी हो ।दूसरी कविता आज के समकालीन परिदृश्य में असहिष्णु होते समाज की बात करती है । इसमत ज़ैदी ने कहा बार बार पढ़नी होगी यह कविता । संगीता स्वरूप ने कहा आपके माध्यम से अनेक भाषाओं की कवयित्रियों से परिचय हुआ । सदा ने कहा बहुत सुन्दर रचनायें ...आप एक माध्यम बने इन रचनाओं के लिए । प्रवीण पाण्डेय ने कहा दोनों की दोनों सशक्त रचनायें । शाहिद मिर्ज़ा ने कहा अच्छी और दुर्लभ रचनायें पढ़ने को मिलीं ।डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक ने कहा दोनों कवितायें बहुत ही गहन भाव अपने में समेटे हुए हैं । अली साहब ने कहा गान्धी जी से थोड़ी इज़्ज़त से पेश आया जा सकता था । कविता मानीखेज़ है । दीपक मशाल ने कहा पूरी कविता वर्कशॉप की तरह लगी यह मालिका । डॉ. दिव्या , ज़ील ने कहा अनॉदर ग्रेट कलेक्शन ।  डॉ. टी एस दराल ने कहा दूसरी कविता को समझने के लिए दिमाग लगाना पड़ेगा । अमिताभ मीत ने कहा यह कविता बार बार पढ़ी , समझने की कोशिश की जाएगी । समीर भाई उड़न तश्तरी ने कहा काश इस चोट की धमक सही जगह पहुँचे । अनामिका की सदायें ने कहा इनमे स्त्री ,समाज और पुरुषवादी मानसिकता को लेकर अनेक अर्थ हैं । रानी विशाल ने कहा इन कविताओं के माध्यम से काव्यशिल्प के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है । अनिल कांत ने कहा कितना कुछ कह देती हैं विम्मी जी । अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी इस सत्र में पहली बार आये , उनका स्वागत है , उन्होने कहा ..प्रेम का जेट विमान भी गजब होता है । एक समय में इतिहास के दो चेहरे ,हम कहाँ है व हमारी भूमिका कैसी है इस पर प्रश्न है । हम लुका छिपी के खेल ( इतिहास के प्रति अगम्भीरता ) में आँख मुन्दिया हो गए हैं । सिद्धेश्वर जी ने कविता की जयजयकार की ।    
16 अक्तूबर 2010 । नवरात्र कविता उत्सव के अंतिम दिन आज प्रस्तुत है बांगला कवयित्री जया मित्र की कविता । इस कविता का बांगला से हिन्दी अनुवाद किया है नीता बैनर्जी ने । यह कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के  अंक 94 से साभार । यह कविता 2001 में प्रकाशित है लेकिन इसे पढ़कर जाने क्यों ऐसा लगा कि यह बिलकुल अभी अभी लिखी गई है । आपको भी ऐसा लगता है क्या ? 
16 अक्तूबर 2010 । नवरात्र कविता उत्सव के अंतिम दिन आज प्रस्तुत है बांगला कवयित्री जया मित्र की कविता । इस कविता का बांगला से हिन्दी अनुवाद किया है नीता बैनर्जी ने । यह कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के  अंक 94 से साभार । यह कविता 2001 में प्रकाशित है लेकिन इसे पढ़कर जाने क्यों ऐसा लगा कि यह बिलकुल अभी अभी लिखी गई है । आपको भी ऐसा लगता है क्या ?  

मेरा स्वदेश आज

हाथ बढ़ाने से
कुछ नहीं छू पाती उंगलियाँ
न हवा
न कुहासा
न ही नदी की गंध
बस कीचड़ में डूबते जा रहे हैं
तलुवे पाँवों के

अरे ! ये क्या है ?
पानी ?
या इंसान के खून की धारा ?
अन्धकार इस प्रश्न का
कोई जवाब नहीं देता
मेरे एक ओर फैली है
ख़ाक उजड़ी बस्ती
दूसरी ओर
खंड -  खंड हुई यह ज़मीन

बीच के इस खालीपन में खड़ी
शून्य ह्दय से मैं
उध्वस्त भीड़ के
रोते हुए खोए -  खोए चेहरों में
ओ मेरे देश !
तुम्ही को ढूँढती फिर रही हूँ ।
-       जया मित्र

कवयित्री का परिचयजया मित्र – जन्म 21 सितम्बर 1950 , धनबाद । उद्दलोक नामे डाको ,प्रत्न प्रस्तरेर गान , दीर्घा एकतारा  ( कविता संग्रह ) एकती उपकथार जन्म , माटी ओ शिकार ( उपन्यास ) युद्धपर्व ( कहानी संग्रह ) साहित्य अकादेमी के अनुवाद पुरस्कार तथा आनन्द पुरस्कार से सम्मानित ।
अनुवादक का परिचय – नीता बैनर्जी – जन्म 17 नवम्बर 1948 मुम्बई । असमिया बांगला , राजस्थानी हिन्दी व अंग्रेज़ी में अनुवाद । उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान और भारतीय अनुवाद परिषद से सम्मानित । 
(चित्र गूगल से साभार )   


शुक्रवार, अक्टूबर 15, 2010

नवरात्र कविता उत्सव - आठवाँ दिन - सिन्धी कवयित्री - विम्मी सदारंगाणी

            हम लुका छिपी खेलेंगे जब हिटलर सोया पड़ा होगा 

नवरात्र कविता उत्सव के सातवें दिन ओड़िया कवयित्री प्रतिभा शतपथी की कविता पर कविता के प्रेमी इन पाठकों के विचार प्राप्त हुए । शाहिद मिर्ज़ा शाहिद - कितना कुछ सीखने का मौका दिया आपने । संगीता स्वरूप - मार्मिक अभिव्यक्ति । डॉ.दिव्या श्रीवास्तव ज़ील - मार्मिक अभिव्यक्ति , इन कवयित्रियों से परिचय के लिए आभार । रचना दीक्षित -  बेहद मार्मिक ,मानवता को झकझोरती हुई । सुनील गज्जाणी -  आपका आभार कि यह आपने हम तक पहुँचाया । इस्मत ज़ैदी - कितने दुख हैं समाज में ऐसे में गुल ओ बुलबुल की बातें निरर्थक लगने लगती हैंअनिल कांत  - आपके इस कर्म से मिलने वाले लाभ को केवल प्रशंसा कर देने से वर्णित नहीं किया जा सकता । शोभना चौरे - बहुत ही गहरी वेदना को अभिव्यक्त करती सशक्त कविता । वन्दना (चर्चा मंच )- बेहद मर्मस्पर्शी रचना झकझोर जाती है ।  शिखा वार्ष्णेय - दिल को छू लेने वाली कविता । रश्मि रविजा - बहुत ही उम्दा कविता ।  उपेन्द्र - इतनी अच्छी कविताओं से परिचय आपके प्रयास के बगैर मुमकिन नहीं । प्रवीण पाण्डेय - इतने आयाम हैं नारी मन के ।             डॉ. अनुराग - इस बार का कथादेश अभी कल ही हाथ आया है । शुक्रिया इस कविता को बाँटने के लिए । राजेश उत्साही - एक सच्ची स्त्री से ईश्वर भी डरता है । महेन्द्र वर्मा - एक वेदनाव्यथित नारी और शक्तिस्वरूपा नारी दोनो का प्रभावशाली चित्रण । डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक -इस कविता को पढ़कर “लुच्च बड़ा परमेश्वर से कहावत का स्मरण हो आया । समीर लाल उड़नतश्तरी - बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति रही । राजेश्वर वशिष्ठ - बेहतरीन कविता व अनुवाद । संजय भास्कर - बेहतरीन कविता के लिए धन्यवाद । अशोक बजाज -अच्छी प्रस्तुति । अमिताभ श्रीवास्तव - अभी तो सात कविता ही हुई हैं दो का इंतज़ार है । रानी विशाल - मर्मस्पर्शी रचना । प्रो. अली -भयभीत होते ईश्वर का खयाल बहुत रोमांचित करता है । वाणी गीत - बेहद मार्मिक आभार । 
  
15 अक्तूबर 2010 । आज नवरात्र के आठवें दिन प्रस्तुत है सिंधी कवयित्री विम्मी सदारंगाणी की यह दो छोटी छोटी प्रेम कवितायें जो दिखने में बहुत छोटी हैं और बहुत सरल शब्दों में रची गई हैं । लेकिन जब मैं इनके निहितार्थ सोचने लगा तो इनमें स्त्री और समाज और पुरुषवादी मानसिकता को लेकर अनेक अर्थ खुलने लगे । आप को भी इनमें अनेक अर्थ नज़र आयेंगे । मुझे लगा यह कवितायें आप लोगों को ज़रूर पढवानी चाहिये । कविता छोटी हो या लम्बी वह कविता होनी चाहिये । प्रस्तुत कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 93 से साभार ।


1.वेटर को बुलाती हूँ

 
चाय का प्याला मैंने
तुम्हारी तरफ बढ़ाया
 

तुमने मेरी ओर नज़र घुमाई
तुम्हारी ठंडी आँखें
मेरे गरम होंठ
मेरी चाय में बाल कहाँ से आ गया
तुम चाय नहीं पिओगे
मैं ही पी लेती हूँ
तुम्हारे साथ बैठकर
सिर्फ ‘कोल्ड काफी ‘ पी जा सकती है

मैं ‘ कोल्ड काफी ‘ के लिए
वेटर को बुलाती हूँ ।



2.हम लुका-छिपी खेलेंगे

जब हिटलर सोया पड़ा होगा
गांधी अपना चरखा चलाने में डूबा होगा
उस समय
हम लुका -छिपी खेलेंगे ।

-       विम्मी सदारंगाणी
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कवयित्री का परिचय – युवा कवयित्री विम्मी सदारंगाणी ने दो सिन्धी कविता संग्रह के अलावा बाल साहित्य भी लिखा है । सिन्धी भाषा पर अध्ययन सम्बन्धी 5 पुस्तकें भी उन्होने लिखी हैं । उन्हे 1995 का गुजरात साहित्य अकादेमी पुरस्कार व एन सी ई आर टी का नेशनल चिल्ड्रेन लिटरेचर अवार्ड भी मिला है । सिन्धी से हिन्दी के अलावा गुजराती में भी उन्होने अनुवाद किए हैं । वे सिन्धी एडवाइज़री बोर्ड साहित्य अकादमी दिल्ली व नेशनल कौंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ सिन्धी लैंगवेज की सदस्य भी हैं ।
एक निवेदन - पिछली पोस्ट के सुधी पाठक एवं टिप्पणीकार जो प्रतिष्ठित ब्लॉगर भी है उनके ब्लॉग्स के लिंक मैंने साभार दिये हैं । इन ब्लॉगर्स की पोस्ट पर जाकर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें - शरद कोकास

गुरुवार, अक्टूबर 14, 2010

नवरात्र कविता उत्सव - सातवाँ दिन - ओड़िया कविता प्रतिभा शतपथी -डरते हैं ईश्वर भी

            14 अक्तूबर , नवरात्र के सातवें दिन आज प्रस्तुत है ओड़िया की प्रसिद्ध रचनाकार प्रतिभा शतपथी की यह कविता । प्रतिभा शतपथी का जन्म 1945 में हुआ और इनकी कविता व आलोचना की बारह से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । वे राज्य साहित्य अकादमी के अलावा अन्य पुरस्कारों से सम्मानित हैं । इस कविता का अनुवाद साहित्य अकादमी के अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया है जिनकी हिन्दी – ओड़िया में परस्पर अनुवाद की 56 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । प्रस्तुत कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 130 से साभार ।
डरते हैं ईश्वर भी

साठ आलोक वर्ष में कदम रख
तलाशती फिर रही है राह
चौराहे पर
इतने बड़े महादेश के दक्षिण में

शोर - शराबे से भरा मणियों का बाज़ार
पृथ्वी को बेच बाच कर खा जाने को तैयार लोग
चले जा रहे हैं राह बदल
आ - जा रहे हैं
दिन भर में लाखों सौदागर
वहीं एक औरत परेशान है
कहाँ है उसका घर
राह ढूँढती
कुछ ही हाथ की दूरी पर
समुद्र में टूटती निलिमा
प्रबल - लताओं से धड़कता है जीवन
संसार के सुख - दुख झेलकर
लौट जाएगी वह औरत , कहती है
कहीं तो होगा उसका एक घर
है सत्य की कसौटी
उसमें अपनी साँसों को उसने
छिन - छिन परखा है

पगली है या कोई वेश्या
या सिद्ध देवी
 न जाने कौन है वह औरत
उसे राह बताने में
खड़े होने में उसके पास
डरते हैं ईश्वर भी ।

          - प्रतिभा शतपथी

बुधवार, अक्टूबर 13, 2010

किसी की दुनिया उजड़ जाती है और आपको कुछ नहीं होता ?

13 अक्तूबर 2010 कल प्रस्तुत शेफालिका वर्मा की मैथिली कविता पर बहुत सारे नये पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की । जबलपुर से हमारे पुराने साथी महेन्द्र मिश्र ने कहा शेफालिका वर्मा जी की रचना बहुत जोरदार है मिता दास ने कहा साँस लेना ही ज़िन्दगी नहीं । रंजूभाटिया - बहुत सुन्दर । आकांक्षा - शेफालिका वर्मा जी की रचना लाजवाब है । डॉ. मोनिका शर्मा -बहुत अच्छी रचना साझा की है आपने ।  संजय भास्कर - शेफालिका वर्मा जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद । वन्दना - कविता एक सार्थक सन्देश दे रही है । वाणीगीत-जीवन की सार्थकता पर अच्छी कविता । इस्मत ज़ैदी - बहुत सुन्दर भावों के साथ संस्कारों की सीख देती रचना  सदा - बहुत ही सुन्दर व प्रेरक प्रस्तुति । रश्मि रविजा - जीने का अर्थ तलाशने की सीख देती सुन्दर कविता । महेन्द्र वर्मा - यह कविता कवयित्री के दार्शनैक दृष्टिकोण को सफलता पूर्वक अभिव्यक्त करती है । सुशीला पुरी - एक दूसरे के आँसू पोछने मे ही जीने की सार्थकता है । शोभना चौरे -सूरज बादल के माध्यम से शेफाली जी ने बहुत प्रेरक बात कही है ।  जयकृष्ण राय तुषार- बहुत सुन्दर रचना । डॉ.रूपचन्द शास्त्री मयंक - इस सोद्देश्य रचना को पढ़वाने के लिए धन्यवाद । शिखावार्ष्णेय - शेफलिका जी की रचना मे जीवन की सार्थकता दिखती है । दीपक बाबा- मै इस कविता को जीने की कला कहूँगा । ज़ील - शेफालिका जी से परिचय के लिए आभार । उस्ताद जी - सुन्दर सशक्त । देवेन्द्र पाण्डेय - सार्थकता जीवन का उद्देश्य नहीं प्रक्रिया है । शाहिद मिर्ज़ा शाहिद - नायाब रचनायें पढ़ने को मिल रही हैं । रचना दीक्षित - लाजवाब रचना अच्छी अभिव्यक्ति । डॉ.टी एस दराल-कविता क्या यह तो ज्ञान का भंडार है । राजेश उत्साही ने एक पुराने गीत को याद किया ..अपने लिए जिये तो क्या जिये । प्रवीण पाण्डेय को भी यह कविता अच्छी लगी ।
मुझे यह कहते हुए अच्छा लग रहा है कि इन पुराने पाठकों के अलावा ब्लॉग के बहुत सारे नये पाठक भी इन दिनों जुड़े हैं और जिनकी कविता के बारे में बहुत अच्छी समझ है । लेकिन यहीं कहीं पिछले वर्ष के बहुत सारे साथी अब तक अनुपस्थित हैं । मैं याद कर रहा हूँ , हरकीरत हीर ,संजीव तिवारी ,आशीष खंडेलवाल , गिरिजेश राव , महफूज़ अली ( महफूज़ भाई इस समय एक संकट से गुज़र रहे हैं हम सब दुआ करें कि यह संकट शीघ्र दूर हो ) ,सुमन जी ,राजेश्वर वशिष्ठ ,डॉ. अमरजीत ,कृष्ण कुमार मिश्र ,भूषण ,अजित वडनेरकर , डॉ. अनुराग ,श्रीश पाठक प्रखर ,दीपक भारत दीप , अविनाश वाचस्पति ,शेफाली पाण्डेय , अशोक कुमार पाण्डेय , काजल कुमार , निशांत , लावण्या जी , मुमुक्ष ,लोकेश , अनिलकांत ,अनिल पुसदकर ,विनोद कुमार पाण्डेय , विधु . पवन चन्दन , प्रो. अली ,निर्मला कपिला ,खुशदीप सहगल ,चन्द्र कुमार जैन ,पी सी गोदियाल ,गिरीश बिल्लोरे ,दिनेशराय द्विवेदी, अमिताभ श्रीवास्तव ,पंकज मिश्रा ,हरि जोशी , अम्बरीश अम्बुज . मेजर गौतम राजरिशी ,कुलवंत हैप्पी , अमित के सागर , बबली ,योगेश स्वप्न ,अबयज़ खान ,चाहत ,कविता रावत और ज्योति जी को । और हाँ अपने छोटे भाई दीपक मशाल को भी ।   
            बहरहाल ... नवरात्र के छठवें  दिन आज प्रस्तुत है चर्चित मलयाळम कवयित्री सुगत कुमारी की कविता । सुगत कुमारी का जन्म जनवरी 1934 में तिरुअनंतपुरम में हुआ । इनकी प्रकाशित पुस्तकों के नाम हैं पातिराप्पूक्कल (midnight flowers ), रात्रिमषा (night rain), अबंलमणि (temple bell ), कुरुंजीप्पूक्कल (kurinji flowers ), तथा पावम मानव ह्रिदयम (poor human heart )। सुगत कुमारी , केरल साहित्य अकादमी , वायलार पुरस्कार , साहित्य अकादेमी आदि पुरस्कारों से सम्मानित हैं । इस कविता के अनुवादक हैं प्रसिद्ध रचनाकार ,केरल ज्योति के सम्पादक तथा हिन्दी सेवी के जी बालकृष्ण पिल्लै  । प्रस्तुत कविता साहित्य अकादेमी की पत्रिका “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 77 से साभार ।
            प्रस्तुत कविता एक दृश्य के बहाने मनुष्य की संवेदना को झकझोरती है । यह उस गुम हो चुकी संवेदना की तलाश है जो किसी की बस्ती जला दिए जाने या घर उजाड़ दिये जाने के बाद भी वापस नहीं आती । यह इसलिये तो नहीं कि जैसे जैसे हम सभ्य होते गये है ,और ज़िन्दगी का एक व्यापारी की तरह हिसाब लगाते गए हैं वैसे वैसे संवेदना से भी दूर होते गये हैं ? यह न भूलें कि यह प्रकृति एक दिन हमारा भी हिसाब करेगी ।

हाय ! क्या कर डाला तुमने मेरी दुनिया का

वह देखो इक चिड़िया माँ
बड़े वेग से उड़ती आती भोज्य लिए
अपनी प्यारी संतानों को देने
 सहसा चौंकी
तड़प तड़प कर घूम रही वह
बिलख रही वह !
मानव की भाषा में उसका यही अर्थ हो सकता है
हाय - हाय क्या कर डाला तुमने मेरी दुनिया का ?
पिघल रहा है दिल उसका
पिघल रहा है दिल मेरा भी
घूम फिर रही मैं भी उसके संग
वह छोटा घोंसला कहाँ
जिस के अंदर बैठी थी
इस चिड़िया की प्यारी संतानें
कुछ खाने को मृदु मुँह खोले ?

कहाँ गया वह जंगल
जिस में
मोर -पंख फैलाए झूम रहा था वह सुंदर तरुवर ?
बिलख रही मैं घूम रही मैं उस चिड़िया के संग
यहाँ शेष
बस कटे हुए पेड़ों की ठूँठें
जिन से बहता अब भी उनका खून
कड़ी धूप जो बरस रही है तप्त तैल सी
और ताप उस महाशाप का
जिसे दे गया रोते मरते वह कांतार !
एक अटवि के तड़प - तड़प कर मर जाने का
क्या है मोल ?
एक विटप के मर जाने का क्या है मोल ?
एक विहग के करुण रुदन का क्या है मोल ?
इन सब व्यापारों का
बिलकुल सही हिसाब लगाती प्रकृति
सही हिसाब लगाती प्रकृति !

-       सुगत कुमारी  
 ( सुगत कुमारी का चित्र गूगल से साभार )

मंगलवार, अक्टूबर 12, 2010

नवरात्र कविता उत्सव - पाँचवा दिन - मैथिली कवयित्री शेफालिका वर्मा


12 अक्तूबर 2010
            कल प्रस्तुत ज्योती लांजेवार की मराठी कविता पर अनेक सुधि पाठकों की प्रतिक्रिया प्राप्त हुई । इन प्रतिक्रियाओं से एक एक पंक्ति उद्धृत  कर रहा हूँ । इन्हे अवश्य पढ़िये । देवेन्द्र पाण्डेय - वेदना की गन्ध को एक क्षण बसा लेने की आकांक्षा अधुत अहसास कराती है । पद्म सिंह - बहुत अच्छी तरह उकेरे गये भाव । ललित शर्मा - बेहतरीन रचना और अनुवाद । इस्मत ज़ैदी - कोमल भावों की व्याख्या करती सुन्दर रचना ।  संगीता स्वरूप ,एस एम मासूम -स्नेहिल स्पर्श के महत्व को बताती सुन्दर रचना । के के यादव- मराठी ने ही सर्वप्रथम दलित साहित्य को ऊँचाइयाँ दीं । डॉ.मोनिका शर्मा -प्रभावी और भावपूर्ण रचना । उस्ताद जी -बोझिल । वन्दना -बहुत सुन्दर अनुवाद । सिद्धेश्वर सिंह -एक अच्छी कविता पढ़ने के सुख में हूँ । रंजू भाटिया - अनुवाद बहुत अच्छा किया है आपने । सुशीला पुरी -  प्रेम भी एक तरह का युद्ध है । महेन्द्र वर्मा -  अपने प्रिय से गहन आत्मीयता को अभिव्यक्त करती कविता । पी एन सुब्रमनियन - अनुवाद में मूल भावनाओं को समेटना बहुत कठिन होता है । मनोज कुमार - कविता भाषा शिल्‍प और भंगिमा के स्‍तर पर समय के प्रवाह में मनुष्‍य की नियति को संवेदना के समांतर, दार्शनिक धरातल पर अनुभव करती और तोलती है मुक्ति - दलित कवियत्रियों की कविताओं में एक वेदना तो होती ही है । संजय भास्कर  - मूल भाव अभियव्यक्ति लाजवाब है । शाहिद मिर्ज़ा  - आपके अनुवाद से आया निखार चार चांद लगा रहा है । शिखा वार्ष्णेय - कविता में पवन के माध्यम से वेदना को उकेरना बहुत प्रभावी लगा । ज्योति सिंह -पवन के मध्यम से गहरी बात कही गई है ।  वाणी गीत - सदियों से हाशिये पर रहे लोगों के लिए प्रेम सिर्फ रोमांस नहीं हो सकता आकांक्षा - सुन्दर कविता. और सार्थक अनुवाद रश्मि रविजा - किसी भी वेदना को स्नेहिल स्पर्श की आकांक्षा जरूर होती है डॉ. टी एस दराल - अनुवाद में किये गए शब्दों के प्रयोग दिलचस्प हैं  समीर लाल - प्रेम की वेदना...अनुवाद में भी वही प्रवाह...और भावों की महक ! कैलाश - मराठी की दलित प्रेम कविता को प्रस्तुत करने के लिए आपका शुक्रियाराजेश उत्साही - अनुवाद और सहज और सरल हो सकता थाडॉ. रूपचन्द शास्त्री - शब्दों के मोतियों को टाँकने मे आपने कमाल किया है । रचना दीक्षित - सचमुच खूबसूरत कविता । zeal - परिचय करवाने का आभार और बेहतरीन अनुवाद के लिए आपको बधाई राज भाटिया - बहुत अच्छी कविता जी । रावेन्द्रकुमार रवि - उपस्थित श्रीमानउत्तम राव क्षीर सागर - अंति‍म पद की पहली पंक्‍ति‍ खटकती है मेरे हि‍साब से यह 'अपने भीतर बसा लेना उसे' होती शोभना चौरे - मराठी से हिंदी अनुवाद सुन्दर है | वन्दना अवस्थी दुबे -कितनी मासूम इच्छा है!!! बहुत सुन्दर । इसके  अलावा फेसबुक पर भी तीन मित्रों की प्रतिक्रिया प्राप्त हुई , तीनों कवि मित्रों के नाम ' अ ' से हैं -अंशुमाली रस्तोगी , अमिताभ श्रीवास्तव और अनुपम ओझाआप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद । 
           नवरात्र के पाँचवे दिन प्रस्तुत है मैथिली कवयित्री शेफालिका वर्मा की कविता । शेफालिका वर्मा का जन्म 1943 में हुआ । आप अनेक पुरस्कारों से सम्मानित है । प्रस्तुत है जीवन की सार्थकता पर सवाल करती हुई उनकी यह कविता । इसमें प्रेम भी है और जीवन दर्शन भी । प्रकृति के बिम्बों का भी बेहतरीन प्रयोग है । मूल मैथिली कविता का हिन्दी अनुवाद स्वयं कवयित्री ने किया है । प्रस्तुत कविता “ समकालीन भारतीय साहित्य “ के अंक 128 से साभार ।  

सार्थकता

तुमसे अलग हो आज यह अनुभूति हुई
साँस लेना ही ज़िन्दगी नहीं
किन्तु
जीवन की सार्थकता बनाना
महती उद्देश्य होना चाहिये
सार्थक ?
कैसे बनाऊँ प्रश्न छटपटाता रहा
बेचैन सा
पछवा पुरवा में लहराते पेड़ों की
शाखा से पत्तों की
लयात्मक गति से झर झर गिरने से
बेला गुलाब की सुरभि से
तुम्हारा संदेशा आ रहा था

सार्थकता उद्देश्य नहीं
जीवन की प्रक्रिया है
अपनों का साथ
एक दूसरे के सुख दुख में साँस लेना
एक – दूसरे के आँसू पोंछने में ही जीने की
सार्थकता है
अपने लिए तो सभी जीते हैं
पर तुम जिओ
उस सूरज की तरह
जो कभी अस्त नहीं होता
धरती के इस छोर से उस छोर तक
परिक्रमा करता रहता है
सबों को रोशनी बाँटता है

सबों को चैन देने में
उसका जीवन
सार्थक हो जाता है
बादल लगते हैं
कुहासा उसे ओट कर देता है
किंतु
वह कभी डगमगाता नहीं
अपने कर्तव्य में
अपने को सार्थक करने में
सबों के जीवन को
वह अडिग अटल है
प्रतिपल प्रतिक्षण ।

-       शेफालिका वर्मा 

जन्म:९ अगस्त, १९४३,जन्म स्थान : बंगाली टोला, भागलपुर । शिक्षा:एम., पी-एच.डी. (पटना विश्वविद्यालय),सम्प्रति: ए. एन. कालेज मे हिन्दी की प्राध्यापिका ।प्रकाशित रचना:झहरैत नोर, बिजुकैत ठोर । नारी मनक ग्रन्थिकेँ खोलि:करुण रससँ भरल अधिकतर रचना। प्रकाशित कृति :विप्रलब्धा कविता संग्रह,स्मृति रेखा संस्मरण संग्रह,एकटा आकाश कथा संग्रह, यायावरी यात्रावृत्तान्त, भावाञ्जलि काव्यप्रगीत । ठहरे हुए पल 
( चित्र व परिचय गूगल से साभार )