सोमवार, अक्टूबर 11, 2010

दलित कविता में प्रेमी आंदोलन के कार्यकर्ता होते हैं

11 अक्तूबर – नवरात्र कविता उत्सव –चौथा दिन – मराठी कवयित्री ज्योती लांजेवार


कल प्रस्तुत असमिया कवयित्री निर्मला प्रभा बोरदोलोई की कविता के पाठकों के रूप में फिर कुछ नये लोगों का आगमन हुआ । हम उन सभी का स्वागत करते हैं । डॉ.नूतन नीति ने कहा इच्छा अंतस मन बेहद अच्छी लगी । शाहिद मिर्ज़ा ने कहा कि दोनों कवितायें मर्मस्पर्शी हैं । डॉ. रूपचन्द शास्त्री मयंक एवं उपेन्द्र जी ने मूल कविता का भाव हूबहू कविता में उतारने के लिए  अनुवादक  सिद्धेश्वर जी की प्रशंसा की । संगीता स्वरूप ने इन्हे अतीत से जुड़ती भविष्य की कविता निरूपित किया । देवेन्द्र पाण्डेय ,राज भाटिया , काजल कुमार और कुसुम कुसुमेश जी को कवितायें अच्छी लगीं । राजेश उत्साही ने अपनी विस्तृत टिप्पणी में कहा कि ब्लॉग में अच्छे पाठक कैसे तैयार हों इस दिशा में सोचना ज़रूरी है । महेन्द्र वर्मा ने कहा कि सिद्धेश्वर जी ठीक कहते हैं अच्छी कविता ठहराव चाहती है । दिगम्बर नासवा ने इन्हे कम शब्दों में गहरी वेदना व्यक्त करने वाली कवितायें कहा ।वन्दना जी ने इन्हे स्त्री मन की अंतर्वेदना व्यक्त करने वाली कवितायें कहा और इस पोस्ट को चर्चा मंच में शमिल करने की सूचना दी । वन्दना अवस्थी दुबे ने कविताओं के परिप्रेक्ष्य में कहा कि ऐसा हमारे पास क्या है जिसे हम यादों के रूप में सहेज जायें ।डॉ. टी एस.दराल ने दुख को मर्मस्पर्शी तथा इच्छा को सचेत करती प्रेरणात्मक रचना बताया ।डॉ. मोनिका शर्मा , उस्ताद जी और  ZEAL को यह कवितायें अच्छी लगीं ।प्रज्ञा पाण्डेय ने इसे मन को मथने वाली कविता कहा और सुशीला पुरी ने कहा कि कवयित्री की इच्छा समूचे विश्व से जोड़ती है ।बहुत दिनो बाद पधारी आशा जोगलेकर ने कहा सिद्धेश्वर जी ने कविता की आत्मा अक्षुण्ण रखी है। रावेन्द्र कुमार संजय भास्कर व अजय कुमार ने भी अपनी उप्स्थिति दर्ज कराई ।
आप सभी पाठकों को अपनी और सिद्धेश्वर जी की ओर से धन्यवाद देते हुए आज 11 अक्तूबर नवरात्र के चौथे दिन प्रस्तुत है मराठी कवयित्री ज्योती लांजेवार की यह दलित प्रेम कविता । इसे मैंने मराठी के प्रसिद्ध दलित कवि शरण कुमार लिंबाळे द्वारा सम्पादित कविता संग्रह “ दलित प्रेम कविता “ से लिया है । शरण कुमार कहते हैं कि मूल मराठी प्रेम कविता प्रिय के वर्णन ,स्मृति ,विरह व आत्मिक प्रेम के बिम्बों से भरपूर है लेकिन दलित प्रेम कविता में प्रेम तो है ही साथ ही इसमें सामाजिक विषमता के साथ साथ प्रेमी व प्रेमिका का जीवन संघर्ष तथा जाति के आधार पर सदियों से उपेक्षित उनकी वेदना भी उपस्थित है । इसीलिये इस कविता में प्रेमी बागीचे में , या समुद्र के किनारे या एक दूजे की बाहों में दिखाई देने की अपेक्षा आन्दोलन व संघर्ष के कार्यकर्ता के रूप में दिखाई देते हैं । प्रेम में बहाए जाने वाले आँसुओं और आहों के लिये इस कविता में कोई जगह नहीं है । इस कविता में स्त्री की वेदना भी व्यक्तिगत वेदना नहीं वह पूरे दलित समाज , और स्त्री समाज की वेदना है ।
इस कविता के आस्वाद के लिए दलित आंदोलन के बारे में जानना ज़रूरी तो नहीं है लेकिन यह कविता इस बात के लिए प्रेरित करती है कि हम उत्पीड़ितों का इतिहास भी जाने शायद तभी हम रोम के गुलाम स्पार्टकस और वेरोनिया के प्रेम को समझ पायेंगे और पाब्लो नेरूदा की प्रेम कविताओं के अर्थ ग्रहण कर सकेंगे । 
इस मूल मराठी कविता का हिन्दी अनुवाद किया है शरद कोकास ने ।

वेदना का प्रेम

          मेरे असीम प्रेम का परिचय देने वाला
          यह निर्बन्ध नटखट पवन
          मुझसे कुछ कहे बगैर
          यदि तुम्हारी खिड़की तक आया
          उसे भेज देना सीधे
          उफनते सागर की ओर
         मुझे पता है यह पवन
          हर फूल से चुगली करने वाला
         सुखलोलुप सिरफिरा और भ्रमित है

           मगर यहीं कहीं
          मेरी वेदना की गंध लिए
          अगर आती है कोई व्यथित दृष्टि
          तुम्हारी ओर
           तो उसे मत भेज देना
          केतकी के सुगन्धित वन में

          भीतर बसा लेना उसे
          एक क्षण के लिये ही सही
          उसे ज़रूरत होगी
          तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की ।

-       ज्योती लांजेवार

मैंने पहली बार अपने किसी अनुवाद को ब्लॉग पर प्रस्तुत किया है सो आप की प्रतिक्रिया इस पर भी चाहूँगा । आप सभी से अनुरोध है कि कल पुन: इस ब्लॉग पर पधारें और आज की अपनी टिप्पणियों के सार संक्षेप के साथ एक और भारतीय भाषा की कवयित्री की कविता का आनन्द लें । - शरद कोकास 

44 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब..
    वेदना की गंध को एक क्षण के लिए भी बसा लेने की आकांक्षा अद्भुत एहसास कराती है।
    ..मूल भी पढ़ा।

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  2. भीतर बसा लेना उसे
    एक क्षण के लिये ही सही
    उसे ज़रूरत होगी
    तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की ।
    बहुत अच्छी तरह से उकेरे गए भाव ... वेदना और पवन का सहारा लेते हुए ... मूल रचना तो मै नहीं पढ़ सकता लेकिन अनूदित रचना बेहतरीन है

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  3. बेहतरीन रचना और अनुवाद उतना ही उम्दा
    बहुत बढिया शरद भाई

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  4. भीतर बसा लेना उसे
    एक क्षण के लिये ही सही
    उसे ज़रूरत होगी
    तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की

    कोमल भावों की व्याख्या करती हुई सुंदर रचना

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  5. मगर यहीं कहीं
    मेरी वेदना की गंध लिए
    अगर आती है कोई व्यथित दृष्टि
    तुम्हारी ओर
    तो उसे मत भेज देना
    केतकी के सुगन्धित वन में


    स्नेहिल स्पर्श के महत्त्व को बताती सुन्दर रचना ...सच है कितनी वेदना क्यों न हो स्नेह भरा स्पर्श वेदना को कम कर देता है ...बहुत अच्छी रचना और बहुत सुन्दर अनुवाद

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  6. दलित प्रेम कविता....सुनकर अटपटा लगा. पर सच्चाई से मुंह भी नहीं मोड़ा जा सकता. दलित-विमर्श, नारी विमर्श, बाल विमर्श जैसे तमाम विमर्शों ने हर उस आवाज़ को साहित्य में व्यापक स्पेस दिया है, जिसे लोग मूल धारा में शामिल करने से बचते/ डरते हैं. मराठी ने ही तो सर्वप्रथम दलित साहित्य को उचाईयां दीं. ऐसे में मराठी से अनुदित यह कविता गहरा प्रभाव छोडती है !!

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  7. भीतर बसा लेना उसे
    एक क्षण के लिये ही सही
    उसे ज़रूरत होगी
    तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की ।


    बहुत सुंदर है यह अनुदित रचना......प्रभावी और भावपूर्ण

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  8. स्नेहिल स्पर्श के महत्त्व को बताती सुन्दर रचना

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  9. स्पर्श और वो भी स्नेहिल्……………बस इसी की चाह मे उम्र गुजर जाती है और उस वेदना को बखूबी उकेरा है …………………बहुत सुन्दर अनुवाद्।

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  10. शरद भाई, आज नवरात्र कविता उत्सव के चौथे दिन मराठी कवयित्री ज्योती लांजेवार की कविता 'वेदना का प्रेम' पढ़कर एक अच्छी कविता पढ़ने के सुख में हूँ। 'प्रेम' को बरते जाने का यह हिन्दीतर स्वर अद्भुत है और आपका अनुवाद बहुत ही बढ़िया! ज्योति जी की इस कविता में डूबते - उतराते मुझे कुछ काव्य पंक्तियाँ याद आई हैं_-

    *
    इक लफ़्ज़े-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
    सिमटे तो दिले-आशिक फैले तो ज़माना है
    -'जिगर' मुरादाबादी
    **
    प्रेम करने से पहले
    पढ लो कबीर को
    ताकि
    शर्मिंदा न होना पडे
    एक जुलाहे के सामने।
    - दिनेश सिंदल
    ***
    तू खुदा है , मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा
    दोनों इन्साँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
    -अहमद फ़राज़

    --
    कविता उत्सव और (आपके) अनुवाद का क्रम जारी रहे। हिन्दी ब्लॉग की बनती हुई दुनिया में आपका यह प्रयास बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है,यह देख - सुन- पढ़ अच्छा लग रहा है और आश्वस्ति हो रही है कि सब ठीक है!
    पुन बधाई!
    आपसे और इस कविता उत्सव के भागी और सहचर बन रहे सभी सथियों से बस इतना ही कहना है 'वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला दो!

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  11. बहुत बढ़िया ..अनुवाद बहुत अच्छा किया है आपने ..मूल भाव अभियव्यक्ति लाजवाब है

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  12. क्षमा चाहूँगा। अहमद फ़राज़ साहब के शे'र को कुछ यँ सुधार लें-

    न तू खुदा है , न मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा
    दोनों इन्साँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें

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  13. '' भीतर बसा लेना उसे
    एक क्षण के लिये ही सही''

    प्रेम कविता को दलित कविता कहना, क्या यह नहीं कह रहा कि प्रेम भी एक तरह का युद्ध है ?

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  14. असीम प्रेम में वेदना की संभावना तो होती ही है और इसीलिए उसे आवश्यकता होती है- समूचे अस्तित्व के स्नेहिल स्पर्श की। अपने प्रिय से गहन आत्मीयता को अभ्व्यिक्त करती सुकोमल भावों वाली कविता।

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  15. बेहद सुन्दर. अनुवाद में मूल भावनाओं को समेटना बड़ा कठिन होता है. हमारे एक मित्र हैं भिलाई में. लांजेवार ही हैं. हमने सोचा की ज्योति उन्ही की कोई होंगी. बधाई दे दूं. परन्तु बात नहीं हो पायी.

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  16. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना ( विशेष नवरात्र कार्यक्रम ) 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  17. कविता भाषा शिल्‍प और भंगिमा के स्‍तर पर समय के प्रवाह में मनुष्‍य की नियति को संवेदना के समांतर, दार्शनिक धरातल पर अनुभव करती और तोलती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    दुर्नामी लहरें, को याद करते हैं वर्ल्ड डिजास्टर रिडक्शन डे पर , मनोज कुमार, “मनोज” पर!

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  18. पहली तीन कवितायें नहीं पढ़ पायी, अब बाद में पढूंगी. ये कविता सचमुच वेदना का प्रेम और प्रेम की वेदना दर्शाती है. मैंने इससे पहले निर्मला पुतुल की कविताएँ सूनी थीं, जब हमारे ग्रुप द्वारा आयोजित कवियत्री सम्मलेन में आयी थीं वो. दलित कवियत्रियों की कविताओं में एक वेदना तो होती ही है, एक रोष भी होता है अपने सामाज के प्रति, अपने समाज के पुरुषों के प्रति और शेष समाज के प्रति.

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  19. मेरी वेदना की गंध लिए
    अगर आती है कोई व्यथित दृष्टि
    तुम्हारी ओर...तो उसे मत भेज देना
    केतकी के सुगन्धित वन में...
    बहुत अच्छी रचना...
    और आपके अनुवाद से आया निखार चार चांद लगा रहा है.

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  20. २ दिन से शहर से बहार थी पिछली कवितायेँ नहीं पढ़ पाई अब पढ़ती हूँ.
    इस कविता में पवन के माध्यम से वेदना को उकेरना बहुत प्रभावी लगा.
    बहुत अच्छा अनुवाद किया है आपने.बधाई स्वीकारें.

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  21. भीतर बसा लेना उसे
    एक क्षण के लिये ही सही
    उसे ज़रूरत होगी
    तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की ।
    pavan ke madhyam se bahut gahri aur sundar baate kahi gayi hai ,main to baar baar padhti rahi ,aur iske liye aapki aabhari hoon .

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  22. सदियों से हाशिये पर रहे लोगों के लिए प्रेम सिर्फ रोमांस नहीं हो सकता ...
    अच्छी कविता , अच्छा अनुवाद ...
    सरहनीय कार्य के लिए बहुत आभार ...!

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  23. भीतर बसा लेना उसे
    एक क्षण के लिये ही सही
    उसे ज़रूरत होगी
    तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की...सुन्दर कविता. और सार्थक अनुवाद ...बधाई.

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  24. किसी भी वेदना को स्नेहिल स्पर्श की आकांक्षा जरूर होती है.....एक पल के लिए ही सही.
    ख़ूबसूरत कविता

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  25. मुझे पता है यह पवन
    हर फूल से चुगली करने वाला
    सुखलोलुप सिरफिरा और भ्रमित है
    उसे ज़रूरत होगी
    तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की ।

    अनुवाद में किये गए शब्दों के प्रयोग दिलचस्प हैं ।
    रचना का प्रेम भाव और उसकी अभिव्यक्ति बेहतरीन लगी ।

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  26. प्रेम की वेदना...अनुवाद में भी वही प्रवाह...और भावों की महक!

    बहुत उम्दा!

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  27. मराठी की दलित प्रेम कविता को प्रस्तुत करने के लिए आपका शुक्रिया .अंतर्मन की सुन्दर भावाभिव्यक्ति है ये कविता .अगले अनुवाद के इंतजार में .

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  28. शरद भाई ज्‍योती जी की यह कविता बहुत संक्षेप में अपनी समूची चाहत की बात कहती है। पर हां मुझे लगता है अनुवाद और सहज और सरल हो सकता था।

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  29. शरद कोकास जी!
    वैसे तो अनुवाद का कार्य बहुत ही नाजुक होता है!
    मगर आपने ज्योती लांजेवार की रचना का बहुत ही
    हृदयस्पर्शी अनुवाद किया है!
    --
    मगर यहीं कहीं
    मेरी वेदना की गंध लिए
    अगर आती है कोई व्यथित दृष्टि
    तुम्हारी ओर
    तो उसे मत भेज देना
    केतकी के सुगन्धित वन में....
    --
    शब्दो के मोतियों को टाँकने में
    आपने सचमुच कमाल किया है!

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  30. देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ पर क्या करूँ अपना ही नुकसान किया. सचमुच ख़ूबसूरत कविता

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  31. .

    भीतर बसा लेना उसे
    एक क्षण के लिये ही सही
    उसे ज़रूरत होगी
    तुम्हारे समूचे अस्तित्व के स्नेहल स्पर्श की ।...

    शरद जी, बहुत खूबसूरत लगी ये पंक्तियाँ। परिचय करवाने का आभार और बेहतरीन अनुवाद के लिए आपको बधाई ।

    .

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  32. अच्‍छी कवि‍ता---अच्‍छा अनुवाद
    काव्‍य में शब्‍दानुवाद की बजाय भावानुवाद ज्‍़यादा कारगर होता है, आपने मूलत: भाव सहेजे... बधाई !

    अंति‍म पद की पहली पंक्‍ति‍ खटकती है मेरे हि‍साब से यह 'अपने भीतर बसा लेना उसे' होती (यद्यपि‍ आप असहमत हो सकते हैं)।

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  33. वेदना और स्पर्श का आत्मिक सम्बन्ध दर्शाती सुन्दर कविता |
    मराठी से हिंदी अनुवाद सुन्दर है |
    ज्योतिजी को बधाई |

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  34. वेदना को ही कोमल, तरल स्पर्श की अधिक जरूरत होती है । मूल कविता जितनी सशक्त अनुवाद भी उसे न्याय देता हुआ ।

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  35. सशक्त कविता और अनुवाद के तो क्या कहने. भावानुवाद अद्वितीय.

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  36. prem....prem......or prem......kyun kaisa or kitna......ati sundar...kokas bhai.....bhadhe chalo.....

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  37. कोमल भावनाओं से ओतप्रोत सुंदर भाव भरी रचना.

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  38. पढकर ऐसा लगता तो नहीं कि अनुवाद करते हुआ कविता का कोई अंश मात्र भी क्षय हुआ होगा ! तो बतौर अनुवादक भी सफल हुए !
    इसे दलित कविता का टैग क्यों ? ये ज़रूर जानना चाहूँगा

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