रविवार, जुलाई 04, 2010

नाटक तो फिर भी जारी रहेगा


रंगकर्म बहुत ही कठिन काम है , खासकर छोटे शहर में तो यह और भी कठिन । फिर भी बहुत से ऐसे रंगकर्मी हैं जो इसे जारी रखे हैं । हमारे शहर में भी ऐसी कुछ संस्थायें हैं जो नुक्कड़ नाटक से लेकर मंच तक  लगातार सक्रिय हैं  । हम  लोग जब भी मिलते हैं कई तरह का रोना रोते हैं , जैसे आजकल कलाकार नहीं मिल रहे हैं , फिल्मों की ओर उनका रुझान बढ़ रहा है , जिसे देखो मुम्बई की टिकट कटा रहा है , आदि आदि । लेकिन क्या करें ,सब को रोजी- रोटी की ज़रूरत है , सबकी अपनी महत्वाकाँक्षा है । लाख परेशानियाँ आती हैं फिर भी नाटक है कि बन्द नहीं होता ... बस ऐसी ही कुछ परेशानियाँ , लंतरानिया , और यार दोस्तों की बातों को गूँथ दिया है कविताओं  में , आप भी पढ़िये ....                   
 
           रंगमंच – एक

रंगकर्मियों की शिकायत थी
नाटक नहीं लिखे जा रहे आजकल
निर्देशकों का कहना था
कलाकार जुटाना
अब पहले से ज़्यादा मुश्किल काम है
समीक्षकों के लिये
लगातार गिरता जा रहा था
कला का स्तर
प्रेस रिपोर्टर
हमेशा की तरह
जुटे थे काम में
इन बातों से बेखबर
कलाप्रेमियों को तसल्ली थी
चलो कुछ तो हो रहा है शहर में
चलो कुछ तो सुधर रहा है शहर ।

            रंगमंच - दो 

उसका नाटक हिट हुआ
उसने रेडियो स्टेशन का पता पूछा

उसका नाटक हिट हुआ
उसने दूरदर्शन पर पहचान बढ़ाई

उसका नाटक हिट हुआ
उसने बम्बई की टिकट कटा ली
लौटकर आया बरसों बाद
दोस्तों को याद दिलाई
फलाँ सीरियल में
फलाँ रोल था उसका

दोस्तों ने याद दिलाई
वो दिन भी क्या दिन थे
जब तुम्हारा नाटक हिट होने पर
कई कई दिनो तक
तुम ही तुम होते थे बातों में । 

रंगमंच – तीन                                                                                              

कुछ ने बजाई तालियाँ
कुछ ने कसे फिकरे
पर्दा उठा पर्दा गिरा

कुछ ने की तारीफ
कुछ ने की बुराई
पर्दा उठा पर्दा गिरा

कुछ ने गिनाये दोष
कुछ ने दिये सुझाव
पर्दा उठा पर्दा गिरा

कुछ ने छापी प्रशंसा
कुछ ने छापी आलोचना
पर्दा उठा पर्दा गिरा

कुछ ने की वाह
कुछ ने भरी आह
पर्दा उठा पर्दा गिरा

कुछ ने कहा बन्द करो
कुछ ने कहा जारी रखो
पर्दा उठा पर्दा उठा । 

         ---  शरद कोकास
 

  ( नाटकों के चित्र , मेरे मित्र व दुर्ग के प्रसिद्ध रंगकर्मी बालकृष्ण अय्यर के हिन्दी ब्लॉग माय एक्स्प्रेशन से साभार )

26 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्तों ने याद दिलाई------तुम ही तुम होते थे! क्या बात है शरद जी भावनाओं, प्रेम, महात्वाकांक्षा, लालच, उत्कंठा, स्थानीयता, और ग्लोबल...सब कुछ कह दिया, बात एक समझ में आई की आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बनों न कि दुनिया की विशाल भीड़ के डायनासोर्स के बीच नन्ही चींटी....कुछ ऐसे ही कि यदि नर्क का राजा और स्वर्ग का दरबान बनना हो तो किसे चुना जायेगा...यकीनन आप........चुनेगें?

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  2. marmsparshi kavitaa. katu yatharth.ye sab maine apne aaspass dekhaa hai yahi sub.fir bh...i natak binaa atake jaree rahenge.

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  3. पूजनीय,
    आदरणीय
    एक साथ इतनी टिप्पणी देने वाला ब्लागर पहली बार देख रहा हूं। दूसरी कविता सुब्रत बोस पर है। मैंने तो कभी सीरियल पर काम किया ही नहीं.
    टिप्प्णी धांसू थी. मजा आ गया.

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  4. कितना सच है ये सब.साथ ही मन को कचोटता भी है पर यही यथार्थ है

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  5. सुन्दर फोटोग्राफ्स ! सुन्दर कवितायें !

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  6. शरद जी यह कविता शायद अति-महत्वाकांक्षी युवकों को भटकन से रोक सके!

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  7. रंगकर्मियों को मुश्किलें तो उठानी पड़ती हैं ...क्या कहें ...बहुत chah कर भी नाटक देखने जा नहीं पाते ...!

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  8. दोस्तों ने याद दिलाई
    वो दिन भी क्या दिन थे
    जब तुम्हारा नाटक हिट होने पर
    कई कई दिनो तक
    तुम ही तुम होते थे बातों में ।

    कभी कभी हम भी याद करते हैं , वो भी क्या दिन थे ।
    लेकिन पुराने दोस्त अभी तक साथ हैं , यह भी महत्त्वपूर्ण है ।

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  9. सुन्दर प्रस्तुति। पैसा कमाने की ‘कलाकारियाँ’ और रंग-बिरंगी छलिया ‘अदाकारियों’ से भरे-पूरे परिवेश में रंगमंच का जो हाल है, उसे पूरा का पूरा बयाँ करती तस्वीर आपने प्रस्तुत की है। बधाई।

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  10. बहुत बारीकी से आपने नाटक के हालातों और नाटक कारों के बदलाव की बात शब्दों में ढाल दी.

    लेकिन ये भी सच है की नाटक कभी बंद नहीं होंगे..

    हमारे साहित्यकार डा. राम चन्द्र शुक्ल जी का कहना है...जब तक जिंदगी चलती रहेगी...तब तक कविता और नाटक बंद नहीं हो सकते...ये भी एक इंसान के ह्रदय के पोषण के लिए जरुरी आहार है.

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  11. बेहतरीन प्रस्तुति, बहुत खूब!

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  12. दोस्तों ने याद दिलाई
    वो दिन भी क्या दिन थे
    जब तुम्हारा नाटक हिट होने पर
    कई कई दिनो तक
    तुम ही तुम होते थे बातों में ।

    शायद हर अच्छे कलाकार के साथ ऐसा होता हो .....कोई नई बात नहीं ....हाँ नई बात है रंगमंच पर लिखना ......कुछ दिनों पहले नरेन्द्र मोहन जी रंग मंच पर लाजवाब कवितायेँ विकेश निझावन जी की पत्रिका ' पुष्प गंध' में पढने को मिली थी ..... रंगमंचीय स्त्री की व्यथा का अद्भुत चित्रण देखने को मिला .....!!

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  13. बिलकुल यथार्थ |
    आजकल जीवन में ही नाटक पदार्पण कर गया है विकृत रूप लिए ,कला त्मकता के साथ वो मंचन कहाँ ?फिर भी कुछ दीवाने है जिन्होंने इस कला को आत्मसात कर उसका साथ नहीं छोड़ा है |

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  14. नाटक के महत्त्व पर और उससे होने वाले परिणामों का बहुत सूक्ष्मता से विवेचन किया है.. सोचने पर बाध्य करती आपकी बहुत अच्छी रचना है...
    मेरे ब्लॉग पर आने और सुझाव देने के लिए आभार

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  15. सब महानाटक है .. फंसे हैं सब .. एक रीत सी है ..
    ख़ास नहीं रह गया नाटक .. '' अवास्थानुकृति नाट्यम् '' पर संदेह होता है अक्सर !
    वह अवस्था कौन है ?

    सुन्दर रचा .. आभार ..

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  16. chhote shaharon men rangkarm ek bhookhe pet kii jane vaali tapasya se km nahin hai. hafte men ek do din khud to aadmii bhookhe rah skta hai lekin apne parivaar ko bhookha kaise rakh skta hai..!

    aakii kavitayen padh kar rangkarmiyon se jude apne din yaad aa gaye.
    bahut sunder post.

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  17. पूरा जीवन ही एक नाटक तो है। कल हुई थी हमारी बात। पढ़ा आपका आशीर्वाद काफी दिनो के बाद थोक मे। कुछ ऊर्जा मिली। आपकी यह नाटक के ऊपर लिखी कविता यथार्थ का चित्रण है। सार यही है"परदा उठा परदा गिरा"। बाकी विशेषण लगाना नाकाफ़ी होगा।

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  18. Sharad bhai, tarah-tarah ke rang hain, tarah-tarah ke karm. baaten karne vaale to sirf baten karte hain aur karne vale bina vichlit hue apna kaam karte hain. aap kee rachna badee hee masumiyat se us naatak ko pakadatee hai, jo lagataar chal raha hai, jismen koi patr doosaree baar manch par nahee aataa. yah jo rang badalne kee kala dheere-dheere sab sikhte ja rahe hain, sirf yahee naatak ko manch tak naheen jaane detee. isee se hamaree, aap kee asli ladaai hai. dhanyvaad. aap kavitayen likhte hain isliye aap se aagrah karoonga ki kavita kosh par mujhe padhkar pratikriya jaroor den.

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  19. दोस्तों ने याद दिलाई
    वो दिन भी क्या दिन थे
    जब तुम्हारा नाटक हिट होने पर
    कई कई दिनो तक
    तुम ही तुम होते थे बातों में
    sundar bahut sundar rachna ,bahut gambhir baate kah gaye ,yahan to masala chahiye sabhi ko ,sachchai se katrate hai .har baar soch alag hoti hai .is karan kuch cheeje nahi chalti .

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  20. रंगमंच को लेकर आपकी तकलीफ़ नज़र आती है इन रचनाओं में ... दर्द निकल के आ रहा है ....

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  21. रंगमंच पर अच्छी कविताएं...
    कई चीज़ों को एक साथ छुआ है आपने...

    लगता है...आप रंगमंच से जुडे हुए हैं...

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  22. Bilkul Jeevant, Aisa hi hota hai...Ho raha hai... Shayad hota bhi rahega.

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  23. सुन्दर फोटोग्राफ्स ! सुन्दर कवितायें !

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