सोमवार, मई 03, 2010

तुम्हे मेरी दाढ़ी अच्छी लगती है ..


शरद बिल्लोरे की एक कविता

शरद और मैं भोपाल के रीजनल कॉलेज में साथ साथ थे  । कविता लिखने की शुरुआत के साथ साथ बहुत सारी बदमस्तियाँ हमने कीं । मैं सोच रहा था इस बार फिर उसकी किसी शरारत के बारे में लिखूंगा लेकिन मैं सिर्फ सोचता रहा और कुछ लिख नहीं पाया । सो उसकी यह एक प्रेम कविता जो उसने अपनी अस्थायी नौकरी के शुरुआती दिनो में लिखी थी । शरद आज ही के दिन हमसे बिछुड़ गया था । उसकी इस कविता में और अन्य कविताओं में भी जितने बिम्ब हैं वे सब हम दोस्तों के जाने पहचाने हैं इसलिये यह कवितायें हमें बहुत अच्छी लगती हैं लेकिन कुछ ऐसे बिम्ब भी होते हैं जो एक खास उम्र में सभी को अपने से लगते हैं ..शरद बिल्लोरे की कविता की यही ख़ासियत है कि उसकी कविता सभी को अपनी ही दास्तान लगती है ।बहुत सहजता के साथ वह बड़ी- बड़ी बातें कविता में लिख जाता था ।
शरद ने बाद के दिनों मे अपनी दाढ़ी बढ़ा ली थी ,ऐसा उसने किसी के कहने पर किया था हम उसकी दाढ़ी कटवाने के पीछे पड़े रहते थे और वह हँसता था । फिर सब अपने अपने शहरों और गाँवों को लौट गये । शरद चिठ्ठियाँ लिखता रहा और फिर एक दिन अरुणाचल प्रदेश में उसे नौकरी मिली और वह चला गया । पहली ही  छुट्टियों में घर लौटते  हुए कटनी स्टेशन पर ट्रेन में उसे लू लगी और अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया । बाद में उसकी कविताओं का संग्रह मित्रों के प्रयास से प्रगतिशील लेखक संघ ने प्रकाशित किया ।
                           अब जबकि तुम इस शहर में नहीं हो                       

हफ्ते भर से चल रहे हैं
जेब में सात रुपये
और शरीर पर एक जोड़ कपड़े

एक पूरा चार सौ पृष्ठों का उपन्यास
कल ही पूरा पढ़ा
और कल ही अफसर ने
मेरे काम की तारीफ की

दोस्तों को मैंने उनकी चिठ्ठियों के
लम्बे लम्बे उत्तर लिखे
और माँ को लिखा
कि मुझे उसकी खूब खूब याद आती है

संवादों के
अपमान की हद पार करने पर भी
मुझे मारपीट जितना
गुस्सा नहीं आया

और बरसात में
सड़क पार करती लड़कियों को
घूरते हुए मैं झिझका नहीं

तुम्हे मेरी दाढ़ी अच्छी लगती है
और जबकि तुम
इस शहर में नहीं हो
मैं
दाढ़ी कटवाने के बारे में सोच रहा हूँ ।

                        - शरद बिल्लोरे

शरद को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.. यही सोचता हूँ कि वह आज होता तो देश का एक बड़ा कवि होता । क्या कहूँ उसे याद करते हुए आँखों के साथ साथ मन भीग जाता है..। आज कुछ मित्रों के साथ शरद की स्मृतियों को शेयर किया और आज ही मुझे पता चला कि जिसे उसकी दाढ़ी अच्छी लगती थी वह इन दिनो कनाडा में है ।  शरद पर न सही उसकी कविता पर कुछ तो कहिये  - शरद कोकास 
चित्र 1 -शरद बिल्लोरे के कविता संग्रह का मुखपृष्ठ  चित्र 2 - रीजनल कॉलेज भोपाल 

52 टिप्‍पणियां:

  1. दाढ़ी के माफिक विचारों से गुंफित कविता।

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  2. सहज ही बेचैनी को बयान करने वाली कविता है शरद बिल्लोरे जी की !
    बेचैनी के आरोह-अवरोह के द्वारा बेचैनी की कथा कहती कविता !
    इनका आज हमारे बीच न होना एक समर्थ कवि का न होना है , आप द्वारा की
    गयी विनम्र श्रद्धांजलि में मैं भी आपके साथ हूँ ..
    समझ सकता हूँ कि आपको कितनी याद सता रही होगी इस सहज - कवि की !

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  3. श्री शरद बिल्लोरे भैया को मेरी ओर से भी विनम्र श्रद्धांजली.. उनकी कविता वास्तव में हर किसी की खुद की दास्तान सी है.
    आपका आभार भैया उन्हें पढवाने के लिए..

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  4. और माँ को लिखा
    कि मुझे उसकी खूब खूब याद आती है

    ख़ूब ख़ूब अच्छी……सरल,असरदार कविता ।
    बाक़ी अमरेन्द्र जी ने बड़ी बढ़िया बात कही -
    "बेचैनी के आरोह-अवरोह के द्वारा बेचैनी की कथा कहती कविता"

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  5. वो बड़ा कवि भी है और दोस्त भी। तभी तो जिन्दा है जेहन में, हवाओं में उसके विचारों सुगंध है, जो आपके मार्फत हम तक पहुंची। शरद जी को हमारी और श्रद्धांजलि। और वो सलामत रहे, जिससे पसंद थी शरद की दाड़ी....वरना कैसे मिलते आज कवि शरद बिल्लौरे से, जो आज के दिन ही हमसे ले गया था विदा।

    जोबन ऋतु चले जाने वाली पंजाबी शायर की कुछ पंक्तियाँ, जिसको मौत से बहुत ज्यादा लगाव था।

    जोबन ऋतु जो मरते, वो चाँद बनते या सितारे
    जोबन ऋतु आशिक मरते या नसीबों वाले

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  6. संवादों के
    अपमान की हद पार करने पर भी
    मुझे मारपीट जितना
    गुस्सा नहीं आया
    वाकई यह भी की दास्तान से अलग कुछ और तो नहीं

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  7. वाकई यह सभी की दास्तान से अलग कुछ और तो नहीं

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  8. शरद भाई जैसी कि आप से बात हुई थी। मैंने भी आज http://utsahi.blogspot यानी गुल्‍लक में भाई शरद बिल्‍लौरे को याद करते हुए उनकी तीन कविताएं पोस्‍ट की हैं। यह संयोग ही है कि एक कविता तो यही है।

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  9. ''तुम्हे मेरी दाढ़ी अच्छी लगती है
    और जबकि तुम
    इस शहर में नहीं हो''
    ----------आपने अपने मित्र की याद मे हमे भी रुला दिया ।

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  10. सहज किन्तु काव्यात्मक।
    अच्छी कविता की शक्ति ही यही है कि वह दैनन्दिन जीवन के छोटे छोटे तत्वों/ घटकों को एक नये अर्थ व बृहद् अर्थ-विस्तार से मनोहारी ढंग से प्रस्तुत कर दे।

    सही है कि यदि शरद होते... तो आज ख्यात होते।
    श्रद्धांजली।

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  11. क्या बात है शरद भाई.... इतनी सहजता से लिख पाना बेहद कठिन है... शुक्रिया इस बेहतरीन रचना के लिए.

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  12. छोटी सी उम्र में दोस्त का बिछुड़ना वाकई दर्द दायक है।
    कविता की सादगी बहुत पसंद आई।

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  13. ek sharad ne doosare sharad ko yaad kiyaa. billore asamay chle gaye.aj hote o beshak ek mahatvpoorn hastakshar hote. us kavi ko yaad karana zarooree tha. blog ke sahitya premiyo ko unake baare mey pataa to chalaa. badhai

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  14. शरद बिल्लोरे जी की और कवितायें भी उपलब्ध करवा सकें, तो अच्छा लगेगा।
    आभार आपके मित्र की रचना को हमारे साथ शेयर करने के लिये।

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  15. शरद बिल्लोरे जी को मेरी भी श्रदांजलि, पढ़कर आँखे नम हो गयी हैं, उनका कविता संग्रह पढ़ना चाहूँगा, कृपया मंगवाने की कोई व्यवस्था हो तो बताइयेगा !

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  16. आज आप ने इस कविता मै फ़िर से अपने दोस्त को जिन्दा कर दिया, दिल भर आया, जब कोई अजीज दोस्त इस तरह अचानक चला जाये... तो हम भोचकें से खडे रह जाते है, विश्वास नही होता बहुत दिनो तक..............

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  17. सच में बेचैन करती कविता. आखिरी लाइनें तो ज़बर्दस्त हैं. मेरी भी श्रद्धांजलि आपके दोस्त शरद को.

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  18. बेचैन करती सी कविता...ह्रदय में गहरे तक असर करती है .
    उनको मेरी श्रृद्धांजलि .

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  19. तुम्हे मेरी दाढ़ी अच्छी लगती है
    और जबकि तुम
    इस शहर में नहीं हो
    मैं
    दाढ़ी कटवाने के बारे में सोच रहा हूँ ।

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  20. आख़िरी लाइनें भौंचक कर देती हैं ।
    " तय तो यही हुआ था" कहाँ प्राप्त की जा सकती है ?

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  21. @निलेश माथुर @डॉ. अमर कुमार - शरद बिल्लोरे का कविता संग्रह " तय तो यही हुआ था " अब आउट ऑफ प्रिंट है । संग्रह की प्रतियाँ भी बहुत कम लोगों के पास होंगी । वैसे हम कुछ मित्र इस प्रयास मे हैं कि यह संग्रह दोबारा प्रिंट करवा सकें । तब तक मैं कोशिश करूंगा कि ब्लॉग पर उनकी कवितायें देता रहूँ ।

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  22. श्री शरद बिल्लोरे भैया को मेरी ओर से भी विनम्र श्रद्धांजली.. उनकी कविता वास्तव में हर किसी की खुद की दास्तान सी है.
    आपका आभार भैया उन्हें पढवाने के लिए..


    + 1

    बहूत खूब, बहूत गहरी.

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  23. सहज....और मन के भावों को बताती सक्षम रचना..

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  24. बेचैन करती सी एक कविता

    मेरी श्रृद्धांजलि

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  25. शरद बिल्लोरे जी की और कवितायें भी उपलब्ध करवा सकें, तो अच्छा लगेगा।
    आभार आपके मित्र की रचना को हमारे साथ शेयर करने के लिये।

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  26. शरद बिल्लोरे जी से रू-ब-रू कराने के लिए शरद भाई आपका आभार...

    ऐसे ही नहीं कहा जाता कि ऊपर वाले को भी दुनिया चलाने के लिए अच्छे हाथों की ज़रूरत होती है...शरद बिल्लोरे यही काम बखूबी कर रहे होंगे...

    जय हिंद...

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  27. कुछ भी कहना मुश्किल हो रहा है...अपने दोस्त की ये कविता पढवाने का आभार...
    उन्हें हमारी विनम्र श्रधांजलि

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  28. शरद बिल्लौरे मेरे लिए हमेशा ही प्रेरक कवि रहे हैं. आपने उनकी कविता पढाई....शुक्रिया. असमय चली गई उनके जैसी प्रतिभाओं की याद यूँ भी कचोटती है.

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  29. शरद बिल्लौरे को मेरी श्रृद्धांजलि.........
    ....जो चले जाते हैं .....
    ....यादों में हर रोज़ मिलते हैं.....

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  30. संवादों के
    अपमान की हद पार करने पर भी
    मुझे मारपीट जितना
    गुस्सा नहीं आया

    taareef karna meri kshamtaa me naahi... Sharad ji ko shraddha suman

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  31. शरद भाई की कविता का ब्लॉग पर प्रकाशन ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है |

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  32. उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि

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  33. और जबकि तुम
    इस शहर में नहीं हो
    मैं
    दाढ़ी कटवाने के बारे में सोच रहा हूँ ।

    शरद जी बिल्लोरे जी की कविता अंतस को छूती है ......!!

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  34. कविता पढ़कर लगा... शरदजी नहीं, एक महत्‍वपूर्ण कवि खो गया है...

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  35. संवादों के
    अपमान की हद पार करने पर भी
    मुझे मारपीट जितना
    गुस्सा नहीं आया

    और बरसात में
    सड़क पार करती लड़कियों को
    घूरते हुए मैं झिझका नहीं

    तुम्हे मेरी दाढ़ी अच्छी लगती है
    और जबकि तुम
    इस शहर में नहीं हो
    मैं
    दाढ़ी कटवाने के बारे में सोच रहा हूँ ।
    bahut hi sundar

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  36. एक उम्दा रचना...
    मैं दाढ़ी कटवाने की सोच रहा हूं....

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  37. शरद बिल्लोरे जी से रूबरू कराने के लिए शरद जी आपका बहुत धन्यवाद।

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  38. किसी आम दिन की खास कविता. खास व्यक्ति के लिये एक आम आदमी मगर खस कवि की कविता.....

    सत्य

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  39. Sharad Billoreji se ru-b-ru karane aur sahajta aur sajagta bhari prastuti ke liye bahut dhanyavaad.

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  40. sharad jee ke baare me jaana ....kavita to bahut sundar hai...unhen shraddhanjali

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  41. बहुत प्यारी कविता है शरद जी... सच मे मैने कुछ जो बहुत अच्छी कविताये पढी है, ये उनमे ही शामिल होगी..

    ऎसे कवि/लेखक को मेरी तरफ़ से नमन.. आपको कोटि कोटि धन्यवाद..

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  42. aatm vibhor kar diya itni saadgi se likhe man ke bhavo ne. apke dost ko shraddhanjali.

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  43. संवादों के
    अपमान की हद पार करने पर भी
    मुझे मारपीट जितना
    गुस्सा नहीं आया

    superb! umeed hain aage bhi sharad ji ke kaviayein aapke madhyam se padhne ko milengi

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  44. संवादों के
    अपमान की हद पार करने पर भी ...
    ---बेहद संवेंदनशील हृदय रहा होगा शरद जी का जो इन गहन भावों को इतनी सहजता से अभिव्यक्त कर गए.उन्हें विनम्र श्रधांजलि.यकीनन उनकी कवितायेँ एक आम इंसान के भावों के आस पास की रही होंगी.आभार.

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  45. बहुत प्रभावशाली
    http:// adeshpankaj.blogspot.com/
    http:// nanhendeep.blogspot.com/

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  46. hna, shardji hote to????? aapke saath unaki smartiyaa judi he, fir is jesi kavitaye....waah to kartaa hu..aour shayad yah WAAH shardji jnhaa bhi kanhi hone????????? paa lenge...

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  47. सिर्फ एक इन्सान का होना न होना कितना कुछ जोड या तोड देता है ..। सहज ही बयां करती है यह कविता ।

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