मुम्बई दिनांक 28 दिसम्बर 2009 । गेट वे ऑफ इंडिया के सामने खड़ा हूँ । ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेज़ों ने भारत पर अपने विजय की खुशी में इसे बनवाया था । उन लोगों ने जिनके राज्य में कहते हैं कभी सूरज नहीं डूबता था । जिस अरब सागर को हम अपना कहते थे उसी अरब सागर के रास्ते वे व्यापार करने आये थे और उसे अपने अधिकार में ले लिया था । मैं देख रहा हूँ कि यह दरवाज़ा अब भी खुला हुआ है ।
सामने पाँच सितारा ताज़ होटेल की इमारत है जिसे आतंक वादी अपना निशाना बना चुके हैं । मेरा ध्यान उस टूट फूट वाले हिस्से पर चल रहे मरम्मत के काम की ओर चला गया है । आतंकवाद पर चल रही बहसों से बेखबर मज़दूर खुश हैं उन्हे काफ़ी दिनों से काम मिला हुआ है । शांति के प्रतीक कबूतर उड़ाये जा रहे हैं कि अब देश आज़ाद है ।
गेट्वे ऑफ इंडिया के सामने पर्यटकों की भारी भीड़ है हर एक के चेहरे पर खुशी । यहाँ से लौटकर सब अपनी अपनी परेशानियों में डूब जायेंगे । एक युवा अपनी प्रेमिका से कह रहा है ...स्माइल प्लीज़ और उसकी तस्वीर ले रहा है यह कैसा प्रेम है कि उसे मुस्कराने के लिये भी हिदायत देना पड़ रहा है ।
मैं इस जनतंत्र का एक मामूली सा कवि जाने क्या क्या सोच रहा हूँ और इन सब दृश्यों को कविता में ढालने की कोशिश कर रहा हूँ .. । लीजिये अब कविता बन ही गई है तो आप भी पढ़ लीजिये .. इस श्रंखला की पहली कविता ।
सिटी पोयम्स मुम्बई – गेट वे ऑफ इंडिया
शाम के साये कुछ गहराने लगे
गेट वे ऑफ इंडिया की परछाईं ने
अरब सागर की एक लहर को छुआ
और उस पर पूरी तरह छा गई
पाँच सितारा ताज़ की मरम्मत करते हुए
एक मज़दूर ने डूबते सूरज को सलाम किया
एक कबूतर ने मुंडेर से उड़ान भरी
और तुम्हारी ज़ुल्फ हवा में लहराई
बस एक क्लिक की आवाज़ गूंजी
और तुम क़ैद हो गईं
मन के कैमरे में ।
-शरद कोकास
वाह! जुल्फ़ लहराई,
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ एक क्लिक की कैद
लाजवाब है, आभार
बहुत रोचक अभिव्यक्ति है। अंतिम पंक्तियॉं मन को छू गईं।
जवाब देंहटाएंमन के केमरे में.......बेहद सुन्दर और सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंregards
पाँच सितारा ताज़ की मरम्मत करते हुए
जवाब देंहटाएंएक मज़दूर ने डूबते सूरज को सलाम किया
सलाम इन पक्तियों को
बी एस पाबला
बहुत खूब बधाई । मकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंएक शाम के उस पूरे दृश्य को ही जीवंत कर दिया,कविता के माध्यम से...अच्छी अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंhmmmmmmmmm.so sweet. it seems rommance is your forte.thanks for such a beautiful poem
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंवाह!!! बहुत खूब. होता है ऐसा भी होता है.
जवाब देंहटाएंयह कैसा प्रेम है कि उसे मुस्कराने के लिये भी हिदायत देना पड़ रहा है ।
जवाब देंहटाएंक्या करें भाई, आजकल मुस्कराने के लिए भी बड़े प्रयतन करने पड़ते हैं।
क़ैद हो गईं मन के कैमरे में ।
ये हुई न बात। बहुत सुन्दर।
वास्तविक सौंदर्य की कविता।
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनायें, बहुत गहरी बात कह दी आप ने, होना तो यह चाहिये की हमे गुलामी की सारी यादे मिटा देनी चाहिये,
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट !
छोटी छोटी अच्छी छीटें डाली हैं आपने ..
जवाब देंहटाएंसार्थक बिम्ब बन रहा है .. अच्छी लगी कविता .. आभार ,,,
chhotee mgar arthvatta kee drishti se bade kavita. badhai, naye saal ki shubhkaamanaon ke sath..
जवाब देंहटाएंपाँच सितारा ताज़ की मरम्मत करते हुए
जवाब देंहटाएंएक मज़दूर ने डूबते सूरज को सलाम किया
और इसके साथ कैमरे की एक क्लिक के साथ मन में कैद हुई कोई एक तुम ...
विचारों की कैसी स्वतन्त्र उड़ान ...!!
सर जी / मुस्कराने के लिये तो कहना ही पड़ता है ,वह भी मुस्करा कर । क्या क्या सोच कर सब द्रश्यों को कविता के रूप में ढाला ,कविता भी सुन्दर और जिसको मन के कैमरे मे कैद किया होगा वह भी सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंWAH ji WAH,
जवाब देंहटाएंbahut sundar he MAN KA CAMERA
सर जी /कुमार अम्बुज के अलावा और गुना के किस किस मित्र की याद आई ,गुना से आपका लगाव जानकर बहुत प्रसन्नता हुई
जवाब देंहटाएंएक क्लिक की आवाज़ गूंजी
जवाब देंहटाएंऔर तुम क़ैद हो गईं
कौन थी वो ....????
शरद जी
जवाब देंहटाएंकविता तो खूबशूरत है ही साथ में जानकारी भी आपने अच्छी दी है
आप को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें
बहुत बहुत आभार
क्या बात है sir... लोहे के घर की क़ैद से निकल कर खुले आसमान को मन के camera में क़ैद किया जा रहा है.. बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंbahut hi achchhi rachna
जवाब देंहटाएंलोहे के गेट से गेटवे ऑफ इंडिया की खुली हवा में आ तो गए मगर दर्द वही ....
जवाब देंहटाएंशाम के साये कुछ गहराने लगे
गेट वे ऑफ इंडिया की परछाईं ने
अरब सागर की एक लहर को छुआ
और उस पर पूरी तरह छा गई
..कैद तो आप कर रहे हैं ..
मन के कैमरे में नहीं ..
मन के कमरे में.
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जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद शरद भाई को नमस्कार कहने का अवसर प्राप्त हुआ.
जवाब देंहटाएंशब्दों को इतने सरल ढंग से सजाने में तो आपका सानी नहीं.
सोचता हूँ कितनी तत्परता से (कंप्यूटर भी फ़ैल) विचार प्रकट हो जाते हैं.
उमड़ना घुमड़ना तो ट्यूब लाइट की तरह है थोडा चोक देना होता है.
बहुत मन-भावन रचना.
एक शाम के उस पूरे दृश्य को ही जीवंत कर दिया,कविता के माध्यम से...अच्छी अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंमुम्बई की यात्रा पर क्या खूब रच आए।
जवाब देंहटाएंकमाल कर दिया।
पाँच सितारा ताज़ की मरम्मत करते हुए
एक मज़दूर ने डूबते सूरज को सलाम किया
एक कबूतर ने मुंडेर से उड़ान भरी
और तुम्हारी ज़ुल्फ हवा में लहराई
बस एक क्लिक की आवाज़ गूंजी
और तुम क़ैद हो गईं
मन के कैमरे में ।