शनिवार, दिसंबर 05, 2009

इसके लिये भी भूमिका लिखूँ.....?

            छह दिसम्बर उन्नीस सौ ब्यानबे



रेल में सवार होकर अतिथि आये
बसों में चढ़कर अतिथि आये

पैदल पैदल भी अतिथि आये
कारों में बैठकर भी अतिथि आये



बनाये गये तोरणद्वार
बान्धे गये बन्दनवार
पाँव पखारे गये
खूब हुआ खूब हुआ
परम्परा का निर्वाह



जुलूस निकले
जय जयकार हुई
शंख बजे
घड़ियाल बजे
नारे गूंजे
भाषण हुए
गुम्बद गिरा

कुचले गए फूल
रौन्दे गये पत्ते



अखबारों में छपा
नगरी राममय हुई ।

                        - शरद कोकास 
चित्र गूगल से साभार 

43 टिप्‍पणियां:

  1. अखबारों मे छपा नगरी राम मय हुई,
    यह दिन भी याद रहेगा और वह दिन भी याद रहेगा।
    आभार

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  2. बहुत करारा --- अत्यंत धारदार.

    राममय करते करते हम तो रावणमय करते जा रहे हैं

    बेहतरीन

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  3. राम के नाम पर और भी बहुत कारनामें हुए इतिहास गवाह है वो दिन कभी भुलाएँ ही नही जा सकते..

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  4. क्या बचा जो कहने को बाकी हो ...
    मैं रहनेवाला अयोध्या का हूँ , सब
    आँखों का देख हुआ है ...
    ............ सुन्दर कविता ...
    [ एक चीज खटकी कि इतनी जल्दबाजी
    क्यों की कविता में आपने ... आपसे ज्यादा
    अपेक्षा करता हूँ इसलिए ...]
    ........... आभार ...........

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  5. nagri ram may hui
    desh ki halat nishacharmay hui
    jaati aur dharm ke thekedaaron
    dwara khoob bhunaye gaye apne swarth
    kaise yaad nahi rahega wah kshan
    wah din.

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  6. @अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी - आप ने सही फरमाया है । यह कविता मैने जल्दबाज़ी में ही लिखी थी ..बल्कि एक और कविता इतनी ही बड़ी और 1993 में मैने जब यह कवितायें 'पहल" के सम्पादक ज्ञानरंजन जी की पास भेजीं तो उन्होने यह कहकर वापस कर दीं कि अब विरोध के यह हथियार भोथरे हो गये हैं । मैं इस घटना से उद्वेलित तो था ही इसलिये फिर एक नई कविता ने जन्म लिया और 53 पेज की कविता "पुरातत्ववेत्ता " मैने 10 वर्षों मे लिखी जिसे ज्ञानरंजन जी ने "पहल पुस्तिका " के रूप मे 2005 में प्रकाशित किया, जो पूरे देश में चर्चित हुई । आप मुझसे जो अपेक्षा करते है यह आपका स्नेह भी है और विश्वास भी मैं आपका और अन्य सभी मित्रों का आभारी हूँ । मेरी कोशिश रहेगी कि "पुरातत्ववेत्ता " शीघ्र ही आप मेरे ब्लॉग "पुरातत्ववेत्ता "पर पढ सकें । -शरद कोकास

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  7. ख़बरें चटख
    बेहद सुर्ख
    स्याह पड़ने की
    हद तक
    छापे के हर्फ़
    थरथर कांपते हुए
    वक्त से कब्ल
    राममय हो
    चुके पन्नों को
    तकते बच्चे
    अवाक हैं

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  8. क्या इस राम मय बस्ती होने मै क्या राम खुश हुये होंगे?? कितने बच्चे अनाथ हुये, कितने घर उजडे...... है राम

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  9. त्रिपाठी जी को लिखे जबाब के बाद आपकी 53 पेज की कविता "पुरातत्ववेत्ता " पढ़ने की इच्छा प्रबल हो गई.

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  10. कुचले गए फूल ...रोंदे गए पत्ते ...
    पूरी कविता का सार यही है ...!!

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  11. कविता दिल को छू गई। बेहद पसंद आई।

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  12. अखबारों में छपा
    नगरी राममय हुई ।


    स्तब्ध

    बी एस पाबला

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  13. Nice Blog!! Nice Post. keep it up. keep blogging!!
    www.onlinekhaskhas.blogspot.com

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  14. पुरातत्व वेत्ता का इंतज़ार है.

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  15. जुलूस निकले
    जय जयकार हुई
    शंख बजे
    घड़ियाल बजे
    नारे गूंजे
    भाषण हुए
    गुम्बद गिरा...

    अच्छा या बुरा ....... ये ज़रूर है की ६ दिसंबर इतिहास में लिखा गया .........
    आपकी पुस्तक पढ़ने की इच्छा ज़रूर है, आशा है आप जल्दी ही लगाएँगे ........

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  16. अखबारों मे छपा नगरी राम मय हुई,
    बहुत खूब,
    और शायद छपवाने वाले कई रावण थे !

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  17. विरोध की एक आवाज़ मेरी भी दर्ज़ करें
    यह शर्म दिवस है…

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  18. bahut hi dardnak aur bhavah sthiti thi aur shayad aaj bhi wo hi hai.

    mara ek shakhs tha
    huye barbaad
    na jaane kitne the
    us ek chehre ko dhoondhti
    nigaahein aaj
    na jaane kitni hain
    gam ka wo sookha
    thahra aaj bhi
    har ik nigaah
    mein hai
    siyasat ki zameen
    par bikhri
    laashein hajaron hain

    aage mere blog par padhiye--------http://redrose-vandana.blogspot.com

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  19. कितने ही 6 दिसम्बर याद हैं मुझे,
    6 दिसम्बर होने के लिये,
    गुम्बदों का गिरना ही जरूरी नहीं
    मूलत: यह सह अस्तित्व का गिरना है.

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  20. .
    .
    .
    "अखबारों में छपा
    नगरी राममय हुई"


    हे राम!

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  21. कोकस जी !
    '' पुरातत्ववेत्ता '' का इंतिजार है ,,,
    यथाशीघ्र चाह रहा हूँ ... जैसे स्वाद का
    स्मरण होने पर वस्तु के प्रति बेचैनी बढ़ जाय ...

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  22. जन्म समारोह हो या म्रत्यु समारोह बाद में फ़ूल तो कुचले ही जाते है . वैसे कह कुछ भी ले अब राममय तो पुरा भारत था तब

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  23. बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने जो दिल को छू गई! बेहद पसंद आया! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाइयाँ!

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  24. पता नहीं, कई बार जल्दबाजी में चलाये गये तीरों का घाव ज्यादा गहरा होता है...मेरी अपनी मान्यता है।

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  25. बेहतरीन प्रतीकात्मक रचना......तस्वीर भी बहुत खूब!

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  26. बहुत ही सुन्‍दरता के साथ आपने व्‍यक्‍त किया सच्‍चाई को बेहतरीन रचना के लिये आभार ।

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  27. करारा व्यंग्य
    साथ का चित्र
    टपकते आँसू
    क्या कहूँ शरद जी
    अयोध्या प्रकरण पर इतना शालीन कटाक्ष
    शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ।

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  28. achchhi kavita. badhaee.6 disambar ab ek prateek hai. dahashat ka, ghrina ka. fir bhi hamlage rahe. ek shayar ne kahaa hai-unka jo kam hai vo ahale siyasat jane/mera paigam mohabbat hai, jahaan tak pahunche...

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  29. LAJAWAAB....BAHUT BAHUT BAHUT HI SUNDAR ....SAARTHAK ABHIVYAKTI...

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  30. राममय होने में कतई संदेह नहीं......
    रावण के विनाश के बगैर कभी धरती राममय हो सकती है ???.....
    फिर इतना इसमें आश्चर्य क्यूँ ???

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  31. aakhir kb tk?
    yu hi fool kuchle jayege ptte ronde jayege ?ram ke nam par ??????
    behtreen prstuti.

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  32. कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।

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  33. मज़ा आगया शरद जी बहुत खूब लिखा आपने
    बहुत-२ आभार

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  34. शरद जी मुझे नहीं लगता बाबरी मस्जिद काण्ड पर इस से बेहतर कोई कविता हो सकती है...अद्भुत शब्द और ग़ज़ब के भाव...बधाई...
    नीरज

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