छह दिसम्बर उन्नीस सौ ब्यानबे
रेल में सवार होकर अतिथि आये
बसों में चढ़कर अतिथि आये
पैदल पैदल भी अतिथि आये
कारों में बैठकर भी अतिथि आये
बनाये गये तोरणद्वार
बान्धे गये बन्दनवार
पाँव पखारे गये
खूब हुआ खूब हुआ
परम्परा का निर्वाह
जुलूस निकले
जय जयकार हुई
शंख बजे
घड़ियाल बजे
नारे गूंजे
भाषण हुए
गुम्बद गिरा
कुचले गए फूल
रौन्दे गये पत्ते
अखबारों में छपा
नगरी राममय हुई ।
- शरद कोकास
चित्र गूगल से साभार
अखबारों मे छपा नगरी राम मय हुई,
जवाब देंहटाएंयह दिन भी याद रहेगा और वह दिन भी याद रहेगा।
आभार
हे राम...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बहुत करारा --- अत्यंत धारदार.
जवाब देंहटाएंराममय करते करते हम तो रावणमय करते जा रहे हैं
बेहतरीन
राम के नाम पर और भी बहुत कारनामें हुए इतिहास गवाह है वो दिन कभी भुलाएँ ही नही जा सकते..
जवाब देंहटाएंअलग तरह से लिखी गई कविता.
जवाब देंहटाएंक्या बचा जो कहने को बाकी हो ...
जवाब देंहटाएंमैं रहनेवाला अयोध्या का हूँ , सब
आँखों का देख हुआ है ...
............ सुन्दर कविता ...
[ एक चीज खटकी कि इतनी जल्दबाजी
क्यों की कविता में आपने ... आपसे ज्यादा
अपेक्षा करता हूँ इसलिए ...]
........... आभार ...........
Anarchy is the order of the day.
जवाब देंहटाएंnagri ram may hui
जवाब देंहटाएंdesh ki halat nishacharmay hui
jaati aur dharm ke thekedaaron
dwara khoob bhunaye gaye apne swarth
kaise yaad nahi rahega wah kshan
wah din.
@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी - आप ने सही फरमाया है । यह कविता मैने जल्दबाज़ी में ही लिखी थी ..बल्कि एक और कविता इतनी ही बड़ी और 1993 में मैने जब यह कवितायें 'पहल" के सम्पादक ज्ञानरंजन जी की पास भेजीं तो उन्होने यह कहकर वापस कर दीं कि अब विरोध के यह हथियार भोथरे हो गये हैं । मैं इस घटना से उद्वेलित तो था ही इसलिये फिर एक नई कविता ने जन्म लिया और 53 पेज की कविता "पुरातत्ववेत्ता " मैने 10 वर्षों मे लिखी जिसे ज्ञानरंजन जी ने "पहल पुस्तिका " के रूप मे 2005 में प्रकाशित किया, जो पूरे देश में चर्चित हुई । आप मुझसे जो अपेक्षा करते है यह आपका स्नेह भी है और विश्वास भी मैं आपका और अन्य सभी मित्रों का आभारी हूँ । मेरी कोशिश रहेगी कि "पुरातत्ववेत्ता " शीघ्र ही आप मेरे ब्लॉग "पुरातत्ववेत्ता "पर पढ सकें । -शरद कोकास
जवाब देंहटाएंख़बरें चटख
जवाब देंहटाएंबेहद सुर्ख
स्याह पड़ने की
हद तक
छापे के हर्फ़
थरथर कांपते हुए
वक्त से कब्ल
राममय हो
चुके पन्नों को
तकते बच्चे
अवाक हैं
क्या इस राम मय बस्ती होने मै क्या राम खुश हुये होंगे?? कितने बच्चे अनाथ हुये, कितने घर उजडे...... है राम
जवाब देंहटाएंत्रिपाठी जी को लिखे जबाब के बाद आपकी 53 पेज की कविता "पुरातत्ववेत्ता " पढ़ने की इच्छा प्रबल हो गई.
जवाब देंहटाएंकुचले गए फूल ...रोंदे गए पत्ते ...
जवाब देंहटाएंपूरी कविता का सार यही है ...!!
कविता दिल को छू गई। बेहद पसंद आई।
जवाब देंहटाएंअखबारों में छपा
जवाब देंहटाएंनगरी राममय हुई ।
स्तब्ध
बी एस पाबला
Nice Blog!! Nice Post. keep it up. keep blogging!!
जवाब देंहटाएंwww.onlinekhaskhas.blogspot.com
ram ram ji.
जवाब देंहटाएंaaj bas itna hi.
पुरातत्व वेत्ता का इंतज़ार है.
जवाब देंहटाएंजुलूस निकले
जवाब देंहटाएंजय जयकार हुई
शंख बजे
घड़ियाल बजे
नारे गूंजे
भाषण हुए
गुम्बद गिरा...
अच्छा या बुरा ....... ये ज़रूर है की ६ दिसंबर इतिहास में लिखा गया .........
आपकी पुस्तक पढ़ने की इच्छा ज़रूर है, आशा है आप जल्दी ही लगाएँगे ........
अखबारों मे छपा नगरी राम मय हुई,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,
और शायद छपवाने वाले कई रावण थे !
विरोध की एक आवाज़ मेरी भी दर्ज़ करें
जवाब देंहटाएंयह शर्म दिवस है…
bahut hi dardnak aur bhavah sthiti thi aur shayad aaj bhi wo hi hai.
जवाब देंहटाएंmara ek shakhs tha
huye barbaad
na jaane kitne the
us ek chehre ko dhoondhti
nigaahein aaj
na jaane kitni hain
gam ka wo sookha
thahra aaj bhi
har ik nigaah
mein hai
siyasat ki zameen
par bikhri
laashein hajaron hain
aage mere blog par padhiye--------http://redrose-vandana.blogspot.com
कितने ही 6 दिसम्बर याद हैं मुझे,
जवाब देंहटाएं6 दिसम्बर होने के लिये,
गुम्बदों का गिरना ही जरूरी नहीं
मूलत: यह सह अस्तित्व का गिरना है.
.
जवाब देंहटाएं.
.
"अखबारों में छपा
नगरी राममय हुई"
हे राम!
कोकस जी !
जवाब देंहटाएं'' पुरातत्ववेत्ता '' का इंतिजार है ,,,
यथाशीघ्र चाह रहा हूँ ... जैसे स्वाद का
स्मरण होने पर वस्तु के प्रति बेचैनी बढ़ जाय ...
जन्म समारोह हो या म्रत्यु समारोह बाद में फ़ूल तो कुचले ही जाते है . वैसे कह कुछ भी ले अब राममय तो पुरा भारत था तब
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने जो दिल को छू गई! बेहद पसंद आया! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंपता नहीं, कई बार जल्दबाजी में चलाये गये तीरों का घाव ज्यादा गहरा होता है...मेरी अपनी मान्यता है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रतीकात्मक रचना......तस्वीर भी बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंis kavita ke sath ham sabhi us vidhvans ke virodh men hain
जवाब देंहटाएंaakhri line ke saath poori rachna behtrin ,6 dec ki ye prastuti shandar rahi
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दरता के साथ आपने व्यक्त किया सच्चाई को बेहतरीन रचना के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंकरारा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंसाथ का चित्र
टपकते आँसू
क्या कहूँ शरद जी
अयोध्या प्रकरण पर इतना शालीन कटाक्ष
शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ।
achchhi kavita. badhaee.6 disambar ab ek prateek hai. dahashat ka, ghrina ka. fir bhi hamlage rahe. ek shayar ne kahaa hai-unka jo kam hai vo ahale siyasat jane/mera paigam mohabbat hai, jahaan tak pahunche...
जवाब देंहटाएंLAJAWAAB....BAHUT BAHUT BAHUT HI SUNDAR ....SAARTHAK ABHIVYAKTI...
जवाब देंहटाएंSachchee abhivyakti ke liye aabhaar
जवाब देंहटाएंराममय होने में कतई संदेह नहीं......
जवाब देंहटाएंरावण के विनाश के बगैर कभी धरती राममय हो सकती है ???.....
फिर इतना इसमें आश्चर्य क्यूँ ???
aakhir kb tk?
जवाब देंहटाएंyu hi fool kuchle jayege ptte ronde jayege ?ram ke nam par ??????
behtreen prstuti.
शरद जी, बहुत कम लफजों में आपने बहुत गहरी बात कह दी है।
जवाब देंहटाएं------------------
शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व्यन्ग्य रचना----
जवाब देंहटाएंमज़ा आगया शरद जी बहुत खूब लिखा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत-२ आभार
शरद जी मुझे नहीं लगता बाबरी मस्जिद काण्ड पर इस से बेहतर कोई कविता हो सकती है...अद्भुत शब्द और ग़ज़ब के भाव...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज