सुबह देखा तो सारे अखबार विज्ञापनों से भरे हुए हैं । पुष्य नक्षत्र में दिनभर खरीदारी कीजिये ,सोना,चान्दी,हीरा,मूंगा,नीलम,ज्वेलरी,एलेक्ट्रोनिक सामान ,टीवी फ्रिज,कार,बाइक ,ज़मीन-ज़ायदाद। ऐसा कहा जा रहा है कि इस दिन यह सब खरीदने से घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी इसलिये लोग बिना ज़रूरत भी अनाप – शनाप गैरज़रूरी सामान खरीद रहे है । और कुछ इसलिये भी कि उन्हे ज़रूरत का अहसास दिलाया जा रहा है । अरे ..आपके घर में यह नये तरह का टीवी नहीं है ? कैसे आधुनिक हैं आप ? अरे आप अभी तक पुराने किस्म की ज्वेलरी पहन रही हैं ,आपको शर्म नहीं आती ? क्या भाईसाहब अभी तक वही पुराना स्कूटर ?
जिस देश में करोड़ों लोगों को ठीक से दो वक़्त की रोटी नहीं मिलती उस देश में उन्हे बताया जा रहा है फलाने ऑवन में खाना जल्दी पकता है इसलिये यह तो आपके यहाँ होना ही चाहिये । इसकी आपको सख़्त ज़रूरत है ।
ठीक है जिनकी क्षमता है वे खरीद सकते हैं और बाक़ी लोगों से कहा जा सकता है जो है उसीमें खुश रहो ,संतोष ही सबसे बड़ा धन है । हाँलाकि अब तो यह बात भी नहीं है ,कहा जा रहा है खरीदो खरीदो चाहे कर्ज़ लेकर खरीदो ।लेकिन यह तो हद हो गई कि अब बाज़ार हमें बतला रहा है कि हमें किस चीज़ की ज़रूरत है ।
बाज़ार हमे बतला रहा है कि पत्नी से प्यार करने के लिये उसे क्या देना चाहिये ।भाई बहन को उपहार में क्या दे कि वह आपको भाई माने ? किस उपहार के देने से आपका बच्चा आपकी इज़्ज़त करेगा ?
घरेलू और नितांत उपयोगी वस्तुओं तक तो ठीक है ,प्रेम,सौहार्द्र,भाईचारा, हँसी-खुशी भी अब हमें बाज़ार की सलाह से खरीदना होगा ? क्या हमें बतलाना होगा कि इन सबकी हमारे जीवन में ज़रूरत क्यों है ? और इन्हे हासिल करने के लिये हमारी संस्कृति में क्या प्रावधान है ? जीवन के मूल राग तो हमे पुरखों से मिले हैं।
इन्ही भावों पर बिम्बों के माध्यम से कुछ कहने की कोशिश की है इस छोटी सी कविता में ।
ज़रूरत
क्या ज़रूरी है
दिया जाए कोई बयान
ज़रूरतों के बारे में
पेश की जाए कोई फेहरिस्त
हलफनामा दिया जाए
चिड़िया से पूछा जाए
क्यों ज़रूरी है अनाज का दाना
चूल्हे से तलब की जाए
आग की ज़रूरत
पशुओं से मांगा जाए
घास का हिसाब
कपड़ों से कपास का
छप्पर से बाँस का
हिसाब मांगा जाए
हल्दी से पूछी जाए
हाथ पीले होने की उमर
दवा की शीशी से पूछा जाए
दवा का असर
फूलों से रंगत की
बच्चों से हँसी की ज़रूरत पूछी जाए
क्या ज़रूरी है
हर ज़रूरी चीज़ के बारे में
किया जाए कोई सवाल ।
- शरद कोकास
(इस चित्र में जबलपुर की यह एक कॉस्मेटिक्स की दुकान है जहाँ एक गरीब चायवाला चाय देने आया है , दुकान के मालिक सुनील विश्वकर्मा चाय पीते हुए प्रसन्न हैं क्योंकि उन्हे इस वक़्त चाय की सख़्त ज़रूरत जो है . यह चित्र ऑफ सीज़न का है ,इन दिनो तो उनके यहाँ भारी भीड़ है । इस चित्र को देखकर क्या क्या सोच सकते हैं आप ? )
दुनिया में करोड़ों लोग खाने और छत से महरूम हैं। उनकी बाजार तक पहुँचने की शक्ति छीन ली गई है। दूसरी ओर वे लोग हैं जिन के पास बाजार जाने की शक्ति है, लेकिन उन्हें कोई जरूरत नहीं है। उन के लिए मार्केटिंग स्कूलों ने नया सिद्धांत खोजा है कि उन्हें उन उत्पादों की जरूरत का अहसास कराया जाए जिस से माल बेचा जाए. हमारे ज्योतिषी मार्केटिंग के उसी खेल की फुटबाल बने हुए हैं।
जवाब देंहटाएंइस संदर्भ में सुंदर कविता है। (सही तो यह है कि मैं इस पर लिखना चाहता था, लेकिन कुछ और जरूरी विषय और काम थे।
hamne bhi SHUBH MUHURT ka fayda uthakar kharidari karli hai janab...................
जवाब देंहटाएं.............................................
.............................................
..........................poore 2kg PYAJ
kharidi hai, suna hai sasti ho gai hai.
bahut ahi likha aapne........aur kavita ne to jaise sab kah diya.........bahut sunadar.
जवाब देंहटाएंशरद जी, ग्लोबल मार्केटिंग का यही तो फंडा है, मगर ये लोग भी उन्ही को मूर्ख बनाने में शक्षम है जिनके पास आय के ज्ञात श्रोतो के अलावा भी कुछ है ! मैं तो भैसहाब आज भी टोपाज ब्लेड और लाइफबॉय साबुन इस्तेमाल करता हूँ !
जवाब देंहटाएंहमारी जरूरतें तय करने का हक हम बाज़ार को दें या न दें ये तो हम पर निर्भर है ।
जवाब देंहटाएंमाफ़ करना शरद जी अगर गलत लगे तो चतरा को देखकर बस यही लग रहा है कि दुलानदार सोच रहा है कि हमारे बन्दे तो लूट ही रहे है पीछे मै आराम से चाय पीलू
जवाब देंहटाएंआखिर में इंसान को क्या चाहिए ---बस दो गज ज़मीन.
जवाब देंहटाएंज़रूरतें सीमित होती हैं, लेकिन हवस की कोई सीमा नहीं.
वैसे तलब हो चाय की, और चाय मिल जाये, तो यही कहने को दिल करता है ---तुझ में रब दिखता है--.
बहुत सुंदर लिखा जनाब आप ने, लेकिन जो इन बजार वालो के कहने से चलते है, वाद मै पश्चताते भी वो ही है, जो अपना घर अपनी जरुरत, अपनी जेब देख कर चलते है वो जीवन भर सुखी रहते है.बाजार वालो को तो ग्राहक चाहिये नगद नही तो कोई बात नही उधार ही सही, लेकिन खरिदो तो सही
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
@पंकज जी इस चित्र का एक पाठ यह भी है कि वह गरीब चायवाला कुछ खरीदने नही बल्कि चाय बेचने आया है क्योंकि इस दुकान मे उसकी ज़रूरत की कोई चीज़ नही है । फिर यह दुकानदार भी थोक वाले का ग्राहक होता है ,थोक वाला एजेंसी का और वह कारखाने का । इसी तरह 1 रू. लागत की वस्तु हमे 10 रू. मे मिलती है ,विज्ञापन के पैसे भी हमारी जेब से ही जाते हैं ।
जवाब देंहटाएं@धन्यवाद द्विवेदी जी , आपने बिलकुल सही विश्लेषण किया है ।जिन्हे ज़रूरत है उनके पास क्रय शक्ति नहीं है और जिनके पास है उन्हे ज़रूरत नहीं है इसलिये बाज़ार कृत्रिम ज़रूरत का निर्माण करता है और अंतत: सभी उसकी चपेट में आ जाते हैं । मैने तो कविता में अपनी बात कही है लेकिन आप का इस विषय में काफी अध्ययन है अत: ,आपसे अपेक्षा है कि जब भी समय मिले इस विषय पर विस्तार से अवश्य लिखे । मैं भी एक लेख तैयार करता हूँ ।- आपका शरद
जवाब देंहटाएंपूरी दुनिया एक विक्रय श्रंखला है। यहां भी ज्ञान परम्परा विद्यमान है। लोगों को अवगत कराया जा रहा है कि क्या कुछ है खरीदने लायक। इस चक्कर में आप क्या क्या दाव पर लगा सकते हैं। बाजार में संत कोई नहीं होता। बाजार में महंत ही टिकते हैं।
जवाब देंहटाएंबाजार निर्वाण है
बाजार शांति है
बाजार सत्य है
बाजार धर्म है
शरद जी जब जब भारत के आर्थिक पक्ष के विषय में सोचता हूं तब यही समझ में आता है कि भारत को एक वैश्विक बाजार बनाया जा रहा है ...तब तसल्ली होती है कि चलो इसका कुछ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष परिणाम यहां के लोगों के हक में भी तो होगा ही....मगर जब गांव जाता हूं और देखता हूं कि इस बार भी दो तीन दुकानें सिर्फ़ इसलिये बंद हो गयी ..क्योंकि उन्हें खरीददार नहीं मिले ...तब मैं उलझ जाता हूं ..और अक्सर यही होता है...
जवाब देंहटाएंकविता सब कुछ कह रही है !!
जवाब देंहटाएंये आज का सच क्यूँ बन गया है
पैसे से अगर सब कुछ खरीदा जा सकता तो दुनिया में लोग इतने दुखी नही होते..आप पैसे से दिखावे या कुछ भौतिक वास्तु ही खरीद सकते हो जो कभी भी नष्ट हो सकती है.मानवीय अर्थों में इस पैसे की कीमत कौड़ी भर नही है..
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा...धन्यवाद शरद जी..अच्छा लगा
कोरे यथार्थ से कब तक मुंह मोड़ा जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंआभार ।
जरूरतों और लालच में बहुत अंतर होता है ...जरूरतें पूरी की जा सकती हैं ...लालच अंधे कुएं की तरह कभी भर नहीं सकता ...हम तो वैसे भी संतोषी प्रकृति के ही हैं ...त्योहारी मौसम में अच्छा विषय चुना है ...शायद अंधाधुंध खरीदारी करने वाले ग्राहकों में कुछ जागरूकता बढे ...बस ये व्यापारी कोई फतवा जारी ना कर दे ...(हा हा )
जवाब देंहटाएंअब हमारे आपके पास बाजार में खरीदारी करने के पैसे नहीं .. तो हम आप उनसे जलते हैं .. वे तो पुष्य नक्षत्र में ही खरीदारी करते हुए और अमीर होते जा रहे हैं .. और हम आप इसे अंधविश्वास समझकर और गरीब होते जा रहे हैं.. वैसे इसे व्यंग्य ही समझे .. क्यूंकि मैं मुहूर्त्त को नहीं मानती .. वास्तविकता के लिए मेरा यह आलेखदेख सकते हैं !!
जवाब देंहटाएंशरद जी, ये बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ ही तो हमारे देश के हर परिवार को आधुनिक बना रहीं हैं।
जवाब देंहटाएंऔर आप ऐतराज कर रहे हैं?
मेरा पड़ोसी आधुनिक हो जाए और मैं न होऊँ? ऐसा कैसे हो सकता है भला? उससे बड़ा आधुनिक बन कर दिखाउँगा, चाहे मुझे कर्ज में डूब ही क्यों न जाना पड़े।
अजीत वडनेरकर से सहमत्।
जवाब देंहटाएंहल्दी से पूछी जाए
जवाब देंहटाएंहाथ पीले होने की उमर !!!!!
क्या जबर्दस्त व्यंग्य रचना है !
कहाँ हल्दी सा तुच्छ बाजार और कहाँ ,
भावनाओं की अपर सृष्टि .....पैसे से क्या क्या
खरीदा जा सकता है !फिर भी मारामारी मची है !
हृदय से बधाई स्वीकार करें !
वो गीत याद है आपको
जवाब देंहटाएंबाबूजी तुम क्या-क्या खरीदोगे... तबले की क्या थाप थी उसमें... ?
दरल साहब की बात बढा रहा हूँ...
इंसान की इच्क्षाओं का कोई अंत नहीं,
दो गज कफ़न चाहिये दो गज ज़मीं के बाद..
यानि मरने पर भी चैन नहीं... वाह-वाह !
वाह वाह शरद जी बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बहुत ही सुंदर प्रस्तुती! रचना तो लाजवाब है ! वाकई में काबिले तारीफ़ है आपका ये शानदार पोस्ट!
जवाब देंहटाएंआज का बाजार बिलकुल बाजारू हो चुका है. यहाँ जरूरत के हिसाब से बेचने का काम नही होता, जरूरत पैदा करके बेचा जाता है. बहुत सुन्दर रचना --
जवाब देंहटाएंक्या ज़रूरी है
हर ज़रूरी चीज़ के बारे में
किया जाए कोई सवाल ।
????????
घरेलू और नितांत उपयोगी वस्तुओं तक तो ठीक है ,प्रेम,सौहार्द्र,भाईचारा, हँसी-खुशी भी अब हमें बाज़ार की सलाह से खरीदना होगा ? क्या हमें बतलाना होगा कि इन सबकी हमारे जीवन में ज़रूरत क्यों है ? और इन्हे हासिल करने के लिये हमारी संस्कृति में क्या प्रावधान है ? जीवन के मूल राग तो हमे पुरखों से मिले हैं।
जवाब देंहटाएंयही आज का सच हो चला है, अपना ज्ञान, आत्मविश्वास सब हिल गया है...............
क्या ज़रूरी है
हर ज़रूरी चीज़ के बारे में
किया जाए कोई सवाल ।
हमारे अपने पूछे जाने वाले सवालों की कीमत तो समाचार पत्र और टी. वी वालों को विज्ञापन खर्च के रूप में हम देने की औकात रखते ही नहीं तो फिर हमारे सवालों के मायने क्या?????????????
वैसे विज्ञापन पर अपने कुछ विचार मैं "विज्ञापन पर दोहे" के रूप में पूर्व की एक पोस्ट में स्पष्ट कर चूका हूँ.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
शरद जी एक बहुत बड़ा तंत्र है, बाजारवाद का नही..बाजार का, जहाँ बेसमेंट मे ख्वाब मैनुफ़क्चर किये जाते हैं..चाइनीज-माल टाइप, और हमारी जरूरतों पर क्रैश-कोर्स दिये जाते हैं..मगर हमारी आँखें खुद गिरवी पड़ी हैं वहीं..थोक मे.
जवाब देंहटाएंचित्र देख के तो हमें अब चाय की तलब लग रही है बस ;-)
बेहतरीन कविता...
जवाब देंहटाएंआपकी भूमिका ने इसके प्रभाव को कम ही किया है...
इसके कैनवास को सीमित...
sharad ji , donon rachnayen sateek, aur samayik.
जवाब देंहटाएंmere blog par aane aur comment karne ke liye hardik dhanyawaad.
इन त्योहारों का उद्देश्य शायद यही था कि साल के बाक़ी दिनों में हम कंज्यूमरिज्म से मुक्त रह सकें. मगर आज...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्रेरक रचना, दीपावली की शुभकामनाएं!
ांम aखुद ही लुटने के लिये तैयार बैठे हैं । बिना जरूरत के घर भरे जा रहे हैण बहुत बडिया विश्य है आभार्
जवाब देंहटाएंbas ek kavita ne rishton aur unme chhipi bhavnaon ke bazarikaran ki pol khol ke rakh di. kamaal hai.......
जवाब देंहटाएंkai dinon se aise guru ki talash me tha jo kisi bhi rachna ko sirf aah...wah... karke na chala jaye balki.. uski sameeksha kar ke bataye ki maine kaise kalam chalai hai.. jisse ki main lekhan ko behtar bana sakoon..
Mahfooz bhai ne aapka naam sujhaya hai.. ab dekhna ye hai ki ye Guru Dronacharya is eklavya ki kutiya me kab aate hain, mafgdarshan karne(chahen to angootha bhi milega :) ) kutia ka pata hai swarnimpal.blogspot.com main prateeksha karoonga gurudev.
हल्दी से पूछी जाए
जवाब देंहटाएंहाथ पीले होने की उमर ।
बिल्कुल सच कहा आपने जरूरतें कभी खत्म नहीं होती, और आधुनिक शापिंग माल, बाजार में सजी दुकानें और विज्ञापनों के माध्यम से लोक-लुभावन प्रचार प्रसार आकर्षित करते हुये लगते हैं लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि हमें जिस वस्तु की आवश्यकता न हो उसे भी हम सिर्फ इसलिये खरीद लें उसके साथ एक चीज और मुफ्त मिल रही है, जबकी अपनापन जताने के लिये इन भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती, अपनों को समय देना उनका ख्याल रखना भी आपस में प्रेम और भाईचारा बढ़ाता है, आपकी यह पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी, दीपावली की शुभकामनाओं के साथ आभार
अब आपके लिखे की तारीफ़ कितनी करूँ? फिर भी इस नायाब कविता में उठाये गये सवाल और उनका लय-प्रवाह कमाल का है...
जवाब देंहटाएं"हल्दी से पूछी जाए / हाथ पीले होने की उमर
दवा की शीशी से पूछा जाए / दवा का असर"
इन सब के विस्तार मे न जाते हुये मैं तो बस कविता का आनंद ले रहा हूं।
क्या ज़रूरी है
जवाब देंहटाएंहर ज़रूरी चीज़ के बारे में
किया जाए कोई सवाल ..........
बहुत से सवालों को कड़ी करती आपकी लाजवाब और प्रभावी रचना ..........
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
कलमदंश पर आपकी टिप्पणी देख कर आपके ब्लाग पर चला आया. आप तो बढ़िया कवि निकले. विचारोत्तेजक....... अब किसी समय आपकी पिछली पोस्टें पढ़ने का मन है. पढ़ कर बताऊंगा. फिलहाल बधाई स्वीकारें..
जवाब देंहटाएंविकसित होती हुई बुद्धि को
जवाब देंहटाएंअधिक से अधिक तर्कशक्ति चाहिए
बढ़ते हुए व्यापार को
अधिक से अधिक ग्राहक चाहिए
विकसित होती हुई तकनीक को
अधिक से अधिक रोबोट चाहिए
एक समय वो था
जब मनुष्य के लिए यह खतरा था कि
उसे दास बनाया जा सकता है
आज के समय में मनुष्य जाति के लिए यह खतरा है कि
उसे रोबोट बनाया जा सकता है ।
अंधाधुंध किसी भी चीज़ का प्रयोग घातक है
मानवीय संवेदनशीलता को जीवित रखने के लिए
समझ और विवेक से काम लीजिए और बाजार-तंत्र को स्वयं पर हावी मत होने दीजिए ।
आज बाजार में निर्वाण ढ़ूँढ़ा जा रहा है ।
आज बाजार में शांति ढ़ूँढ़ी जा रही है ।
आज बाजार में सत्य ढ़ूँढ़ा जा रहा है ।
और आज बाजार में धर्म ढ़ूँढ़ा जा रहा है ।
सभी मैनेजमेन्ट गुरुओं ने भारतीय धर्म और दर्शन की शब्दावली में बाजार की व्याख्या करनी शुरु कर दी है । आज धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का प्राप्ति का मार्ग बाजार के गलियारों से होकर गुजरता है और बाजार की ताकतें चीजों को नए ढ़ंग से परिभाषित कर रहीं हैं ।
झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."
जवाब देंहटाएंregards
"लेकिन यह तो हद हो गई कि अब बाज़ार हमें बतला रहा है कि हमें किस चीज़ की ज़रूरत है ।"
जवाब देंहटाएंSharad bhai Lagta hai ki ab purane falsafoon ko badlne ki zarrorat hai wo 'Avshyakta , Avishkaar ki janni hai'
Diwali ki hardik shubhkamnaiyen..
Dhanteras ki dene se dar raha hoon, kahai aapne soch liya ki na jaane kaune home appliance ka advertiesment karne wala hoon ab? HAHA...
जब बाजार ये सिखा रहा है कि दूसरो के बच्चो को पलने का नाटक कैसे किया जाय? जो मजबूरी में बच्चो को झूलाघर में रखते है उनके दर्द को जाना जा सकता है पर जो अपने
जवाब देंहटाएं५से ६ महीने के बच्चो को किसकी ?खातिर तथाकथित सेलिब्रिटीज के पास रखते है ये समझ से परे है |ये मार्केटिग का कौनसा तरीका है ?
सशक्त रचना |
एक नन्हा दिया अपने आप को जलाकर अमावस को प्रकाशवान कर देता है |
आपको आपके परिवार को दीपावली मंगलमय हो |
शुभकामनाये बधाई
दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंpaise se kia kia tum yahaan khridoge.....it is very beautiful artical vich criticise the mandi culture......bazaar ne aam admi ke jiwan ko buri tarah ast vyast kar dia hai...mubark
जवाब देंहटाएं--क्रेडिट कार्ड ने रही सही कसर पूरी कर दी है..अब क्षमता और जरुरत से से अधिक खरीदारी करते हैं लोग..
जवाब देंहटाएं--आप के प्रश्न के उत्तर में सतही तौर पर जवाब -
[आप ही की कविता की पंक्तियाँ -:
क्या ज़रूरी है
हर ज़रूरी चीज़ के बारे में
किया जाए कोई सवाल ..........?
........
--चित्र में -यह चाय वाला चाय देने आया है क्योंकि ऐसा करना उस के रोज़गार का हिस्सा है अन्यथा कोस्मटिक की दुकान में उस का क्या काम?बाकि सब भी अपने में व्यस्त हैं.
अब बाज़ार हमें बतला रहा है कि हमें किस चीज़ की ज़रूरत है ।
जवाब देंहटाएंबाज़ार हमे बतला रहा है कि पत्नी से प्यार करने के लिये उसे क्या देना चाहिये ।भाई बहन को उपहार में क्या दे कि वह आपको भाई माने ? किस उपहार के देने से आपका बच्चा आपकी इज़्ज़त करेगा ?
शरद जी एक सच्चाई पेश कर दी आपने ....!!