1988 मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष है , इस साल मेरा विवाह हुआ था और मुझे घर की पकी - पकाई रोटी मिलने लगी थी । कुछ प्रेम कवितायें भी लिखीं इस साल और शिल्प और कथ्य में भी कुछ परिवर्तन हुआ । प्रस्तुत है उस समय की यह एक कविता ।
रोटी की गन्ध
ओसारे में बैठकर
मैं जब लिख रहा होता हूँ कोई कविता
यादों की खपच्चियों से बना
अनुभूतियों का पिटारा
संवेदनाएँ बचाना चाहती हैं
मस्तिष्क को अनचाही फांस से
लेकिन उंगलियों से टटोलकर
बिम्ब ढूँढना तो सम्भव नहीं
यकायक सजग हो उठती है
तथाकथित नश्वर शरीर की इन्द्रियाँ
नासापुटों तक आ पहुंचती है
पकती हुई रोटी की ताज़ा गन्ध
कान के पर्दे से टकराती है
कपड़े पटकने फींचने की आवाज़ें
पाठ पढते हुए बच्चों की आवाज़ें सुनकर
जेहन में उभरता है उनके हिलते शरीर का बिम्ब
यह गन्ध और यह आवाज़ें
आहत करने लगती हैं मेरी संवेदनायें
गरम तवे पर गिरी पानी की बून्द की तरह
उड़ जाती है मेरी कविता
मेरे और कविता के बीच
आई बाधा के दौरान
मै सोचता हूँ
गोलियों बमों की आवाज़ों
चीखों –चित्कारों की तुलना में
कितनी स्वाभाविक हैं यह आवाज़ें
यकीनन बारूद की गन्ध की अपेक्षा
रोटी की गन्ध अधिक प्रिय है मुझे
उतार लेना चाहता हूँ मैं हू ब हू इनको
अपनी कविता में ।
1988 तो मेरे लिए भी महत्वपूर्ण है ..
जवाब देंहटाएंमुझे इस वर्ष रोटियां पकानी शुरू करनी पडी थी ..
रोटी से ही तो जीवन की शुरूआत होती है और अंत भी ..
सुदर रचना !!
धन्यवाद , इस वर्ष मेरा रोटी पकाना बन्द हुआ था :-)
हटाएंकैसा तो जीव है
जवाब देंहटाएंयह आदमी भी!
कभी फूलता है
आँच पर
रोटी सा
कभी पचकता है
भूख से
खाली पेट सा।
वाह भाई !!
हटाएंजीवन की सोंधी गंध छिपी है जीवन में।
जवाब देंहटाएं*रोटी में
जवाब देंहटाएंसही फरमाया ।
हटाएंचलता है,
जवाब देंहटाएंरुकता है,
रोता है,
हंसता है,
कभी बारिश में भीगता है
तो कभी धूप में सूखता है..आदमी
इस रोटी की ही खातिर तो..
वाह वाह !!
हटाएंयकीनन बारूद की गन्ध की अपेक्षा
जवाब देंहटाएंरोटी की गन्ध अधिक प्रिय है मुझे
और फिर शायद इस गंध से वंचित खुद बारूद बन जाते हैं
धन्यवाद वर्मा जी
हटाएंगहन भावों को समेटे हुये सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी
हटाएंयकीनन बारूद की गन्ध की अपेक्षा
जवाब देंहटाएंरोटी की गन्ध अधिक प्रिय है मुझे!!
काश कि बारूद के शौक़ीन सिर्फ इस खुशबू को ही जीना चाहें, दुनिया बदल जायेगी !
काश ऐसा होता..
हटाएंरोटी की गंध उतर आई है कविता में
जवाब देंहटाएंचिर परिचित सुकून देती
धन्यवाद रश्मि जी
हटाएंक्या बात है शरद जी!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वन्दना जी
हटाएंbahut kam kavitayen pasand aati hain mujhe.. aapki unme se ek hai... impressed ;)
जवाब देंहटाएंयकीनन बारूद की गन्ध की अपेक्षा
जवाब देंहटाएंरोटी की गन्ध अधिक प्रिय है मुझे
एक शांतिकामी व्यक्ति की सोच इससे अधिक और कुछ नहीं। इस कविता के स्वर साथ हर कोई अपना स्वर मिलाना चाहेगा।
यह आज के समय में ज़रूरी है ।
हटाएंबहुत अच्छी कविता शरद जी। रोटी की गंध तक महसूस करा गई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मथुरा जी
हटाएंbahut hi saral aur swabhawik.......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मृदुला जी
हटाएंमेरे और कविता के बीच
जवाब देंहटाएंआई बाधा के दौरान
मै सोचता हूँ
गोलियों बमों की आवाज़ों
चीखों –चित्कारों की तुलना में
कितनी स्वाभाविक हैं यह आवाज़ें
यकीनन बारूद की गन्ध की अपेक्षा
रोटी की गन्ध अधिक प्रिय है मुझे
उतार लेना चाहता हूँ मैं हू ब हू इनको
अपनी कविता में ।
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सचमुच ..........
धन्यवाद प्रदीप जी
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