इस चैत्र नवरात्र कविता उत्सव में आप सभी पाठकों का स्वागत है । आज छठवें दिन हम प्रस्तुत कर रहे हैं बंगलोर की कवयित्री अंजुम हसन की एक कविता जो हमने पत्रिका " प्रतिलिपि " से साभार ली है ।
कवयित्री का परिचय : कवयित्री अंजुम हसन बंगलुरू में रहती हैं। उनका एक उपन्यास है Lunatic in my Head जो पेंगुइन - ज़ुबान प्रकाशन से २००७ में प्रकाशित हुआ है और कविताओं की एक किताब Poems – Street on the Hill साहित्य अकादेमी से २००६ में प्रकाशित हुई है। 'ल्युनैटिक इन माइ हेड' प्रतिष्ठित क्रासवर्ड फ़िक्शन अवार्ड के भी नामित हुआ था। इनका महत्वपूर्ण काम प्रमुख प्रतिनिधि संग्रहों एवं चयनिकाओं ,जैसे Language for a New Century: Contemporary Poetry from the Middle East, Asia, & Beyond और Reasons for Belonging: Fourteen Contemporary Indian Poets के अंतर्गत शामिल किया गया है। उन्होंने The Hindu Literary Review, Outlook Traveller, Indian Review of Books और Little Magazine जैसे मंचों पर भी अपनी उल्लेखनीय साहित्यिक उपस्थिति दर्ज कराई है।
अनुवादक का परिचय :इस कविता का अनुवाद किया है प्रसिद्ध कवयित्री व अनुवादक तेजी ग्रोवर ने - प्रसिद्ध कवयित्री और अनुवादक तेजी ग्रोवर की प्रसिद्ध कृतियाँ “यहाँ कुछ अन्धेरी और तीखी है नदी “ , “जैसे परम्परा को सजाते हुए “ , और “ लो कहा साम्बरी “ .सहित उनके पाँच कविता संग्रह व एक उपन्यास प्रकाशित है । तेजी ग्रोवर ने स्कैंडेनेविया की अनेक क्लासीकीय कृतियों का अनुवाद किया है ।उन्हे भारत भूषण स्मृति पुरस्कार , रज़ा फाउंडेशन फेलोशिप प्राप्त हुई है तथा वे 1995 से 1997 तक प्रेमचन्द पीठ उज्जैन की अध्यक्ष रह चुकी हैं ।
प्रस्तुत है यह कविता -
( कल पढ़िये कमला दास की कवितायें जिनका अनुवाद किया है अशोक कुमार पाण्डेय ने )
कवयित्री का परिचय : कवयित्री अंजुम हसन बंगलुरू में रहती हैं। उनका एक उपन्यास है Lunatic in my Head जो पेंगुइन - ज़ुबान प्रकाशन से २००७ में प्रकाशित हुआ है और कविताओं की एक किताब Poems – Street on the Hill साहित्य अकादेमी से २००६ में प्रकाशित हुई है। 'ल्युनैटिक इन माइ हेड' प्रतिष्ठित क्रासवर्ड फ़िक्शन अवार्ड के भी नामित हुआ था। इनका महत्वपूर्ण काम प्रमुख प्रतिनिधि संग्रहों एवं चयनिकाओं ,जैसे Language for a New Century: Contemporary Poetry from the Middle East, Asia, & Beyond और Reasons for Belonging: Fourteen Contemporary Indian Poets के अंतर्गत शामिल किया गया है। उन्होंने The Hindu Literary Review, Outlook Traveller, Indian Review of Books और Little Magazine जैसे मंचों पर भी अपनी उल्लेखनीय साहित्यिक उपस्थिति दर्ज कराई है।
अनुवादक का परिचय :इस कविता का अनुवाद किया है प्रसिद्ध कवयित्री व अनुवादक तेजी ग्रोवर ने - प्रसिद्ध कवयित्री और अनुवादक तेजी ग्रोवर की प्रसिद्ध कृतियाँ “यहाँ कुछ अन्धेरी और तीखी है नदी “ , “जैसे परम्परा को सजाते हुए “ , और “ लो कहा साम्बरी “ .सहित उनके पाँच कविता संग्रह व एक उपन्यास प्रकाशित है । तेजी ग्रोवर ने स्कैंडेनेविया की अनेक क्लासीकीय कृतियों का अनुवाद किया है ।उन्हे भारत भूषण स्मृति पुरस्कार , रज़ा फाउंडेशन फेलोशिप प्राप्त हुई है तथा वे 1995 से 1997 तक प्रेमचन्द पीठ उज्जैन की अध्यक्ष रह चुकी हैं ।
प्रस्तुत है यह कविता -
अंजुम हसन |
अपनी माँ के कपड़ों में
मेरी बगलों का पसीना
सहमकर उसके ब्लाऊज को भिगोता है -
शर्मीले, सीले फूल मेरे पसीने के उसके ब्लाऊज पर।
सहमकर उसके ब्लाऊज को भिगोता है -
शर्मीले, सीले फूल मेरे पसीने के उसके ब्लाऊज पर।
मैं पहनती हूँ उसके प्यास-नीले और जंगल-हरे
और जले-संतरे के रंगों को जैसे वे मेरे हों:
मेरी माँ के रंग मेरी त्वचा पर एक धूल भरे शहर में
और जले-संतरे के रंगों को जैसे वे मेरे हों:
मेरी माँ के रंग मेरी त्वचा पर एक धूल भरे शहर में
मैं उसके कपड़ों में चलती फिरती हूँ
मन ही मन हंसते हुए, इस बोझ से मुक्त
कि आप जो पहनते हैं, वही आप हो जाते हैं:
अपनी माँ के कपड़ों में न तो मैं ख़ुद हूँ न माँ हूँ
मन ही मन हंसते हुए, इस बोझ से मुक्त
कि आप जो पहनते हैं, वही आप हो जाते हैं:
अपनी माँ के कपड़ों में न तो मैं ख़ुद हूँ न माँ हूँ
तेजी ग्रोवर |
लेकिन कुछ-कुछ उस छह साल की लम्छड सी हूँ
जो अपनी उंगलियों पर माँ की सोने की अंगूठियाँ
चढा लेती है, बड़ा सा कार्डिगन पहन लेती है -
धूप और दूध की गंध से भरा -
और प्यार में ऊंघती फिरती है, कमरों में
जिनके पर्दे जून की शहद भरी रोशनी
के खिलाफ खींच दिये गये हैं
जो अपनी उंगलियों पर माँ की सोने की अंगूठियाँ
चढा लेती है, बड़ा सा कार्डिगन पहन लेती है -
धूप और दूध की गंध से भरा -
और प्यार में ऊंघती फिरती है, कमरों में
जिनके पर्दे जून की शहद भरी रोशनी
के खिलाफ खींच दिये गये हैं
कविता : अंजुम हसन
अनुवाद : तेजी ग्रोवर
( कल पढ़िये कमला दास की कवितायें जिनका अनुवाद किया है अशोक कुमार पाण्डेय ने )
आदरणीय शरद जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
...बहुत बढ़िया प्रस्तुति
कविता अच्छी लगीं. कवियत्री, तेजी ग्रोवर जी एवं शरद जी आपको बधाई
ख़ूबसूरत कविता का सुन्दर अनुवाद...
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत कविता का सुन्दर अनुवाद..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता व अनुवाद।
जवाब देंहटाएंअंजुम हसन की कविता तो नहीं पढ़ पाए लेकिन अनुवाद बहुत अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंअनुवादक के रूप में तेजी ग्रोवर जी का परिचय करवाने के लिए धन्यवाद!
कुछ अलग सी ही है यह कविता...अपना अलग सा प्रभाव छोड़ती हुई...
जवाब देंहटाएं''मैं उसके कपड़ों में चलती फिरती हूँ
मन ही मन हंसते हुए, इस बोझ से मुक्त
कि आप जो पहनते हैं, वही आप हो जाते हैं:
अपनी माँ के कपड़ों में न तो मैं ख़ुद हूँ न माँ हूँ'' ...सुंदर, विचारणीय...
अतिसुन्दर
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