सोमवार, जुलाई 19, 2010

नाटक में काम करने वाली लड़की

जो लोग रंगकर्म से जुड़े हैं वे इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि नाटक में अभिनय के लिये स्त्री पात्र जुटाना कितना कठिन काम है । निर्देशक को बहुत नाक रगड़नी पड़ती है तब कहीं जाकर नाटक में काम करने के लिये  कोई लड़की मिल पाती है । इस पर भी नाटक छोड़ने के लिये उस लड़की पर इतने दबाव होते हैं , उस पर इतने पहरे बिठाये जाते हैं कि पूछो मत । हमारी मध्यवर्गीय मानसिकता अब भी कहाँ बदली है ..? हम अब भी सोचते हैं कि नाटक ( नौटंकी) भले घर के लोगों के लिये नहीं है ,हमारे घर की लड़की नाटक में काम करेगी तो बिगड़ जायेगी  । लेकिन सच्चाई यह है कि हम भी कहीं न कहीं अपनी असल ज़िन्दगी में नाटक ही तो करते हैं । इस सोच को दृश्य रूप देती हुई नाटक श्रंखला की मेरी यह कविता आप सब के लिये    ...

                                 नाटक में काम करने वाली लड़की 


पिता हुए नाराज़
भाई ने दी धमकी
माँ ने बन्द कर दी बातचीत
उसने नाटक नहीं छोड़ा

घर में आये लोग
पिता ने पहना नया कुर्ता
माँ ने सजाई बैठक
भाई लेकर आया मिठाई

वह आई साड़ी पहनकर
चाय की ट्रे में लिये आस

सभी ने बान्धे तारीफों के पुल
अभिनय प्रतिभा का किया गुणगान

चले गये लोग
वह हुई नाराज़
उसने दी धमकी
बन्द कर दी बातचीत

घरवालों ने नाटक नहीं छोड़ा ।

                              - शरद कोकास 

37 टिप्‍पणियां:

  1. वाह शरद भाई नाटक की बहुत सुंदर व्‍याख्‍या है।

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  2. हम्म बेटी को मंच पर ,नाटक के लिए मना करते, माता-पिता खुद रोज ही नाटक करते रहें...कविता ने समाज की विसंगतियों पर करारा कटाक्ष किया है...

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  3. शायद इस तरह के नाटकों का पटाक्षेप नहीं होता.
    रोज नए नाटक का सूत्रपात .. नाटकीय परिवेश का गठन
    वाकई लड़कियों का नाटक में काम करना दुष्कर है
    सुन्दर रचना

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  4. नाटक नाटक नाटक .... बाहर का नाटक तो हो जाता है .... पर घर का नाटक सहना आसान नही होता ... प्रभावी रचना है बहुत शरद जी ...

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  5. वह आई साड़ी पहनकर
    चाय की ट्रे में लिये आस

    चयन का हक़ अभी भी लड़के के हाथ में ही है ।
    लेकिन अब बहुत कुछ बदल भी रहा है ।

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  6. चले गये लोग
    वह हुई नाराज़
    उसने दी धमकी
    बन्द कर दी बातचीत

    घरवालों ने नाटक नहीं छोड़ा ।
    कभी इसी नाटक से मुझे भी तकलीफ हुई थी ......!!

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  7. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  8. सरलतम शब्दों में सफलतम कविता...

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  9. क्या कहें?
    कुछ-कुछ समझ में आया!
    जो समझ में नही आया वही तो ...!

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  10. बिल्कुल सही कहा आपने शरद जी ! आज भी लड़कियों को नाटक मे काम करने देने के लिए परिवार के लोग तैयार नही होते । आपकी कविता ने पूरी कथा ही कह डाली ...और शादी के बाद भी तो नाटक चलता ही रहता है ।

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  11. क्या कहूँ??? पर हाँ ये सच है .... मन को झकझोरती हुई प्रस्तुति

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  12. समान सोच रखने वालों को सामाजिक विसंगतियां कितना एक जैसा सोचने पर मजबूर करतीं हैं, हैं न शरद जी?

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  13. अरे वाह! क्या बात कही है आपने...!
    मिडिल क्लास की मानसिकता उड़ेल कर रख दी चंद पंक्तियों में.
    कहने का अंदाज जितना मनमोहक, बात उससे भी कहीं अधिक मारक !
    ..बधाई.

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  14. नाटकवालियों के प्रति नाटकवालों की पीड़ा को बेहतरीन तरीके से शब्दों में बांधा है। बधाई।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com

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  15. likhte kya ho...........kamaaaaaaaaaal karte ho

    jai ho aapki.........

    umda ...bahut hi umda rachna..

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  16. बात सही कहते हैं आज भी रंगमच से जुडना सही नहीं माना जाता है.
    कविता के माध्यम से दोनों सिरों को जोड़ दिया..ये दुनिया भी तो रंगमच ही है न आखिर.

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  17. बहुत ही सुंदर कविता है शरद जी। बहुत साफ और स्पष्ट। इसके लिए तो उस भूमिका की जरूरत भी न थी जो आपने दी है।

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  18. घर वालों ने नाटक नहीं छोड़ा ...लड़कियां भी कहाँ छोडती हैं ...
    रंगमंच पर नहीं तो जीवन में सही ...!

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  19. भाई शरद जी मैं तो आपकी काव्य-कला का निर्विवाद प्रशंसक हूँ.

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  20. भाई शरद जी मैं तो आपकी काव्य-कला का विवादरहित प्रशंसक हूँ.;)

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  21. अपने-अपने हिस्से का नाटक ... बहुत कुछ है इस नाटक में !

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  22. सच है कि हम प्रतिपल नाटक करते हैं लेकिन साक्षात किसी चरित्र को निभाना पड़े तो समाज के नाक-भौं सिकुड़ जाते हैं। बदल रही है मानसिकता। अच्‍छी कविता, बधाई।

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  23. अच्छी रचना...ऐसे नाटक से एक लडकी को जो मानसिक आघात होता है उसका एक चित्रण कर रही है कविता....लेकिन इस ज़िंदगी के मंच पर हर कोई नाटक ही तो करता है ...

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  24. sach bilkul sach ,samajik aaina hai aapki rachna .sundar bahut sundar kahan aur sach ke saath .

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  25. वाह शरद भाई
    क्या कविता है
    सच तो यह है भाई कि वास्तव में न नाटक छूटता है न कविता
    साला मैं तो बड़ी दुविधा में फंसा हुआ हूं... करूं तो क्या करूं

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  26. नाटक की बहुत सुंदर व्‍याख्‍या है।

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  27. वाकई रोज हम अपने ड्राइंग रूम में नाटक करते हैं ...
    वी आई पी मेहमान ...
    शादी विवाह के आयोजन में अपने आपको पेश करना ...
    अपने आपको अच्छा दिखाने की चाहत ...
    गज़ब का लिखते हो शरद भाई ...
    हार्दिक शुभकामनायें !

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  28. कल सतीश जयसवाल जी का फोन आया था ....आपसे हुई बातचीत का ज़िक्र कर रहे थे ......!!

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  29. चले गये लोग
    वह हुई नाराज़
    उसने दी धमकी
    बन्द कर दी बातचीत
    घरवालों ने नाटक नहीं छोड़ा ।
    ... समाज की विसंगतियों पर करारा कटाक्ष
    हार्दिक शुभकामनायें !

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  30. बहुत सरल .स्पष्ट माध्यम से नारी की के अंतर मन की वेदना को आप ने उजागर किया |
    बहुत सुन्दर और सटीक व्याख्या .
    बधाई

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  31. चले गये लोग
    वह हुई नाराज़
    उसने दी धमकी
    बन्द कर दी बातचीत

    घरवालों ने नाटक नहीं छोड़ा ।

    सहज शब्‍दों में गहरी बात, बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  32. Gharwale kya aur bahrwale kya natak hee to karte hai par rangmanch ke natak ko hey samazte hain.

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