हम सब इज़्ज़तदार लोग हैं .. । हम में से कितने लोग हैं जो इस बात से इंकार करेंगे ? कोई नहीं ना । ग़रीब से ग़रीब आदमी भी कहता है " हमारी भी कुछ इज़्ज़त है । " वैसे पैसे और इज़्ज़त का कोई सम्बन्ध भी नहीं है । फिर भी कहा जाता है कि इज़्ज़त की फिक्र न पैसे वाले को होती है न ग़रीब को । हाँलाकि इज़्ज़त तो इन दोनो की भी होती है । लेकिन इज़्ज़त के नाम से सबसे ज़्यादा घबड़ाता है एक मध्यवर्गीय । अब ले-दे कर एक इज़्ज़त ही तो होती है उसके पास और जो कुछ भी होता है इसी इज़्ज़त को सम्भालने में ही खत्म हो जाता है । अब ऐसे निरीह प्राणि की भी कोई बेइज़्ज़ती कर दे तो ? बस ऐसे ही एक चरित्र को लेकर गढ़ी गई है यह कविता ।
प्रथम दिन से लेकर अब तक इन कवयित्रियों को आपने पढ़ा -प्रथम दिन से लेकर आपने अब तक फातिमा नावूत , विस्वावा शिम्बोर्स्का, अन्ना अख़्मातोवा .गाब्रीएला मिस्त्राल और अज़रा अब्बास , दून्या मिख़ाइल और शीमा काल्बासी और ग्राज़्यनाक्रोस्तोवस्काकी कवितायें पढ़ीं ।
प्रथम दिन से लेकर अब तक इन पाठकों की प्रतिक्रियाएँ आपने पढ़ीं - इन कविताओं पर जो बातचीत हुई उसमे अपनी सहभागिता दर्ज की अशोक कुमार पाण्डेय ने ,शिरीष कुमार मौर्य ने ,लवली कुमारी ,हरि शर्मा ,पारुल ,राज भाटिया , सुमन , डॉ.टी.एस.दराल , हर्षिता, प्रज्ञा पाण्डेय ,मयंक , हरकीरत “हीर” , के.के.यादव , खुशदीप सहगल , संजय भास्कर ,जे. के. अवधिया , अरविन्द मिश्रा , गिरीश पंकज ., सुशीला पुरी , शोभना चौरे , रश्मि रविजा , रश्मि प्रभा , बबली , वाणी गीत , वन्दना , रचना दीक्षित ,रानी विशाल ,संगीता स्वरूप , सुशील कुमार छौक्कर देवेन्द्र नाथ शर्मा , गिरिजेश राव , समीर लाल , एम.वर्मा ,कुलवंत हैप्पी ,काजल कुमार ,मुनीश ,कृष्ण मुरारी प्रसाद,अपूर्व ,रावेन्द्र कुमार रवि, पंकज उपाध्याय,विनोद कुमार पाण्डेय ,अलबेला खत्री , चन्दन कुमार झा , डॉ.रूपचन्द शास्त्री “ मयंक “,अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी, रजनीश परिहार अविनाश वाचस्पति , सिंग एस.डी एम ,ललित शर्मा और अम्बरीश अम्बुज ने । आप सभी के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ । जिन लोगों ने फोन और ईमेल के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की उनका भी मैं आभारी हूँ । जिन लोगों ने इसे पढ़ा और प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाये उन्हे भी मैं धन्यवाद देता हूँ ।
प्रथम दिन से लेकर कल तक प्रस्तुत इन कविताओं के पश्चात आज इस श्रंखला की अंतिम कड़ी में प्रस्तुत कर रहा हूँ हालीना पोस्वियातोव्स्का की दो कवितायें इन कविताओं का चयन एवं बहुत ही सुन्दर अनुवाद किया है कबाड़खाना ब्लॉग के श्री अशोक पाण्डेय ने । अशोक जी के अनुवाद आप पहले भी पढ़ चुके हैं ।
कवयित्री का परिचय
पोलैंड की रहने वाली हालीना (1934- 1967 )को बचपन में टी.बी. हो गई थी । वह स्कूल नहीं जा सकी । माँ के साथ टीबी सेनिटिरियम के चक्कर लगाते हुए उसकी मुलाकात अडोल्फ नामक एक युवा फिल्म निर्देशक से हुई । अडोल्फ को भी टी बी थी । दोनो ने विवाह कर लिया परंतु अडोल्फ की मृत्यु हो गई । हालीना कवितायें लिखने लगी थी । लेकिन उसका स्वास्थ्य इस कदर बिगड़ा के चिकित्सकों ने उसे अमेरिका ले जाने की सलाह दी ।उसके पास इलाज़ के लिये पैसा नहीं था । पोलैंड के महाकवि चेस्वाव मिवोश और ताद्यूश रोज़ेविच के प्रयासों से उसका इलाज का खर्च निकला ।अमेरिका मे पहला ऑपरेशन सफल रहा । वह पोलैंड विश्वविद्यालय मे दर्शन शास्त्र भी पढ़ाने लगी लेकिन 1967 में दूसरे ऑपरेशन के दौरान 33 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई ।
तब तक उसके तीन कविता संग्रह आ चुके थे । 1968 में चौथा आया । हालीना ने प्रेम और और ऐन्द्रिकता को अपना विषय बनाया था उसे भान था कि कभी भी उसकी मृत्यु हो सकती है ।उसकी कविता में प्रेम की उथल-पुथल के साथ मृत्यु के सामंजस्य का विकट ठहराव देखने को मिलता है ।
जोढिठाईसेघासकेकानमेंफुसफुसातीजातीहै प्रेम, प्रेम वहउठनेनहींदेगीमुझे
औरख़ुदचलदेगी मेरेअभिशप्तख़ालीघरकीओर
हालीना पोस्वियातोव्स्का
नवरात्र में प्रस्तुत विदेशी कवयित्रियों की यह कविता श्रंखला आपको कैसी लगी ? ज़रूर बताइयेगा । इसश्रंखला की कविताओं को उपलब्ध करवाया श्री अशोक पाण्डेय , श्री सिद्धेश्वर . ने । इसके अलावा कुछ कवितायें मैने ज्ञानरंजन जी की पत्रिका पहल से भी लीं जिनके अनुवादक हैं श्री गीत चतुर्वेदी ,रजनीकांत शर्मा और सलीम अंसारी । आप सभी के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ - शरद कोकास
इन कवयित्रियों को आपने पढ़ा -प्रथम दिन से लेकर आपने अब तक फातिमा नावूत , विस्वावा शिम्बोर्स्का, अन्ना अख़्मातोवा .गाब्रीएला मिस्त्राल और अज़रा अब्बास , दून्या मिख़ाइल और शीमा काल्बासी की कवितायें पढ़ीं ।
इन पाठकों की प्रतिक्रियाएँ आपने पढ़ीं -नवरात्रि के सातवें दिन प्रकाशित शीमा काल्बासी की कविता पर जो बातचीत हुई उसमे अपनी सहभागिता दर्ज की अशोक कुमार पाण्डेय ने ,शिरीष कुमार मौर्य ने ,लवली कुमारी ,हरि शर्मा ,पारुल ,राज भाटिया , सुमन , डॉ.टी.एस.दराल , हर्षिता, प्रज्ञा पाण्डेय ,मयंक , हरकीरत “हीर” , के.के.यादव , खुशदीप सहगल , संजय भास्कर ,जे. के. अवधिया , अरविन्द मिश्रा , गिरीश पंकज ., सुशीला पुरी , शोभना चौरे , रश्मि रविजा , रश्मि प्रभा , बबली , वाणी गीत , वन्दना , रचना दीक्षित ,सुशील कुमार छौक्कर देवेन्द्र नाथ शर्मा , गिरिजेश राव , समीर लाल , एम.वर्मा ,कुलवंत हैप्पी ,काजल कुमार ,मुनीश ,कृष्ण मुरारी प्रसाद,अपूर्व ,रावेन्द्र कुमार रवि, पंकज उपाध्याय,विनोद कुमार पाण्डेय ,अलबेला खत्री , चन्दन कुमार झा , डॉ.रूपचन्द शास्त्री “ मयंक “,अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी, और रजनीश परिहार और पुष्पा ने । आप सभी के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ
इन्हे आज पढेंगे आप -ग्राज़्यनाक्रोस्तोवस्का
इनका परिचय दे रहे हैं – इस कविता के अनुवाद के साथ ,कर्मनाशा ब्लॉग के सिद्धेश्वर जी ग्राज़्यनाक्रोस्तोवस्का:ग्राज़्यनाक्रोस्तोवस्काकाजन्म२१अक्टूबर१९२१को लुबलिन(पोलैंड)मेंहुआथा
वहींग्राज़्यनाको१८अप्रेल१९४२कोअन्य११ पोलिशमहिला बंदियों के साथ नाज़ी फायरिंग स्क्वाड
द्वाराउड़ा दिया गया । इसतरहहमदेखतेहैंकिमात्रइक्कीसबरसकालघुजीवनइसकवयित्रीनेजिया।वहतोअभी
ठीकतरीकेसेइसदुनियाकेसुख-दु:खऔरछल-प्रपंचकोसमझभीनहींपाईथीकिअवसानकीघड़ीआगई।उसकी जितनी भी कवितायें उपलब्ध हैउनसे गुजरते हुएसपनोंकेबिखरावसेव्याप्तउदासीऔर तन्हाईसेउपजी तड़पकेसाथएकसुन्दरसंसारकेनिर्माणकीआकांक्षाकोसाफदेखाजासकताहै। ग्राज़्यनाक्रोस्तोवस्काकीकुछ कविताओंका प्रसारण१९४३ में बीबीसी लंदनसे कैम्प के समाचारों के साथ हुआ था। प्रस्तुत कविताजारेकगाजेवस्कीद्वारा मूलपोलिश से अंग्रेजी में किए गए अंग्रेजीअनुवाद पर आधारित है।
परायीधरती
(ग्राज़्यनाक्रोस्तोवस्काकी कविता)
नीचीइमारतोंकीखामोशभूरीकतार
औरउसीकीतरहभूरा-भूराआसमान
यहभूरापनजिसमेंनहींबचीहैकोईउम्मीद ।
उदासीमेंडूबेअलहदाकिस्मकेइंसानोंकेझुण्ड
भयानकतस्वीरें,अनोखीअजनबियतऔरबहुतज्यादासन्नाटा।
इसमृतखालीपनमें
घरकीयादघसीटतीहैअपनीओर
जिससेउपजताहैसूनापन
घेरतीहैपीलीकठोरऔरगूँगीनिराशा
जिसमेंदमघुटताहैभावनाओंका
औरवेभटकतीहैंअँधेरे-अंधेकोनोंमें।
सुनो,बावजूदइसके
आजादजंगलोंमेंअंकुरितहोतेहैंनए-नन्हेंवृक्ष ।
क्याहमें ?क्याहमेंसहनकरनाहै ?
यहसबजोविद्यमानहैशान्तचित्त ।
मैंखोतीजारहीहूँअनुभवअपनेअस्तित्वका
कुछनहींदेखपारहीहूँ
नहीकररहीहूँकिसीसूत्रकाअनुसरण ।
हमयहजोछोड़ेजारहेहैंनिशान
वेइसपरायीरूखीधरतीपर
वेकितनेछिछलेहैंकितनेप्राणहीन ।
मात्रइतना
किहमयहाँआएथे
औरकोईअर्थनहींनहींथाहमारेहोनेका ।
------------- ग्राज़्यनाक्रोस्तोवस्का
यह कविता घोर निराशा के इस समय में भी आशा का संचार करती है और कई सवाल खड़े करती है .. यह मनुष्य को झकझोर कर पूछ्ती है .. इस पराई धरती पर हमारे होने का क्या अर्थ है ..? यह कविता आपको कैसी लगी ज़रूर बताइयेगा - शरद कोकास