रंगों पर लोगों की प्रतिक्रिया को लेकर मुझे पहली बार गुस्सा तब आया जब एक मित्र ने मेरी हरी कमीज़ देखकर मुँह बिचकाया .." हरी कमीज़ ..क्यों धर्म बदल लिया है क्या ? दूसरी बार गुस्सा तब आया जब एक मित्र ने भगवे रंग की कमीज़ को देख कर कहा ..क्यों परिषद के सदस्य बन गये हो क्या ? और तीसरी बार तब जब मेरे प्रिय लाल रंग के पहनने पर मुझे कॉमरेड कहा गया । ठीक है किसी को कोई रंग अच्छा लगता है किसी को कोई इसे लेकर हम लड़ते क्यों हैं ? अब मैं कोई भी रंग पहनूँ हूँ तो मै मनुष्य ही ना । गनीमत होली पर हम इस तरह रंगों को लेकर नहीं लड़ते झगड़ते । बस इसी विचार से इस कविता का जन्म हुआ .. होली का अवसर है .. जब आप रंगों में डूब जायें इस कविता में प्रस्तुत रंगों के बयान पर गौर करें ।
हमसे तो बेहतर हैं रंग
वनबाला की ठोढ़ी पर गुदने मे हंसा
आम की बौर में महका
पका गेहूँ की बालियों में
अंगूठी में जड़े पन्ने में चहका
धनिया मिर्च की चटनी में धुलकर
स्वाद के रिश्तों में बंधा
अस्पताल के पर्दों पर लहराया
सैनिकों की आँख में
ठंडक बनकर बसा
नीम की पत्तियों से लेकर
अंजता के चित्रों में
यह रंग मुस्काया
सावन की मस्ती को उसने
फकीरों के लिबास में
हर दिल तक पहुँचाया
आश्चर्य हुआ जानकर
कि किसी खास वजह से
कुछ लोगों को यह रंग पसंद नहीं
उन्हे पसंद है
माया मोह से विरक्ति का रंग
रंग जो टेसू के फूलों में जा बसा
बसंती बयार में बहता रहा
सजता रहा ललनाओं की मांग में
क्षितिज में आशा की किरण बना
पत्थरों पर चढ़ा
माथे का तिलक बना जो रंग
विपत्तियों से रक्षा की जिसने भयमुक्त किया
कभी धरती से निकले मूंगे में जा बसा
आश्चर्य हुआ जानकर
कि कुछ लोगों की
उस रंग से भी दुश्मनी है
उन्हे वह रंग पसंद है इसलिये उन्हे वे लोग पसंद नहीं
इन्हे यह रंग पसंद है इसलिये उन्हे ये लोग पंसद नहीं
अब रंगो को आधार बनाकर लड़ने वालों से
यह कहना तो बेमानी होगा
कि करोड़ों साल पहले हम भी उसी तरह बने थे
जिस तरह बने थे ये रंग
जो आपस में लड़े नहीं
प्यार किया गले मिले और नया रंग बना लिया ।
होली की शुभकामनायें - शरद कोकास