रविवार, जुलाई 26, 2009
पानी का पता पूछ्र रही थी मछली
कमलेश्वर साहू युवा कवि है .उनका एक संग्रह " यदि लिखने को कहा जाये " चर्चित हो चुका है . विश्वव्यापी जल संकट पर उन्हे भी चिंता है .मछली के प्रतीक के माध्यम से वे अपनी चिंता व्यक्त कर रहे है जिसमे इस संकट के उत्तरदायी लोगों की ओर स्पष्ट संकेत है " पानी का पता पूछ्र रही थी मछली" शीर्षक से उनका अगला संग्रह शीघ्र आ रहा है -शरद कोकास
पानी का पता पूछ रही थी मछली
ताल तलैया
पोखर नदिया
सागर धरती
सबके चेहरे पर थी उदासी
सबके जीवन में था सूखा
पानी का पता पूछ रही थी मछली
पता लेकर पहुंची थी
पानी बोतल में बन्द था
मछली के जीवन में
ऐसा पहली बार हो रहा था
बोतल खोलने का
रहस्य नहीं जानती थी मछली
मगर जानने को बेचैन थी
उसकी बेचैनी
तडप में बदल चुकी थी
मछली का तडपना
मनुष्यों के तडपने जैसा था
मछली इतना जान पायी
पानी को बोतल में बन्द करने वालों के
रचे गये तिलिस्म में बन्द है कहीं
पानी को आज़ाद कराने का रहस्य
मछली महज इतना ही जान पायी
तिलिस्म को तोडने का राज़
जिन्हे मालूम है
वे तिलिस्म की
पहरेदारी कर रहे हैं.
कमलेश्वर साहू
(कविता "परस्पर "से तथा चित्र गूगल से साभार)
मंगलवार, जुलाई 21, 2009
इस सूर्य ग्रहण पर शर्म तो आ रही है
यह बताते हुए कि उन दिनो जब मै कविता का क ख ग नहीं जानता था मैने यह कविता लिखी थी सूर्यग्रहण पर और 16 फरवरी 1980 को सूर्यग्रहण के दिन यह प्रकाशित भी हुई थी नागपुर के नवभारत दैनिक में . उन दिनो आज जैसे डराने वाले टी.वी.चैनल नहीं थे ,अखबारों में पढा कि ग्रहण को नंगी आंखों से नहीं देखना है वरना दृष्टि चली जायेगी लेकिन मेरा कवि तो इसका उलटा ही सोच रहा था ऐसा भी तो हो सकता है कि सूर्य की ओर देखने से अन्धे को दिखाई देने लगे .बस इसी विचार पर कविता लिख मारी .कविता क्या, बस थोडी सी तुकबन्दी..कॉलेज के दोस्तों को सुनाई और वाह वाह भी खूब हुई .इतने सूर्यग्रहण आये और चले गये पर इसकी याद नहीं आई .कल एक पुराने मित्र ने इसकी याद दिलाई तो कागजों में ढूंढ निकाली .चलिये उन मौज-मस्ती के दिनों की याद करते हुए आपको भी सुना देता हूँ यह कहते हुए कि "प्लीज..बीयर विद मी.."
सूर्य ग्रहण 16 फरवरी 1980
सूर्य ग्रहण के दिन अजब हादसा हुआ
अन्धे की आँख में कुछ प्रकाश सा हुआ
कानों सुनी थी बातें जो कभी उसने
आँखो से लगा उनको वो परखने
आवारा नौनिहालों को देख वो गश सा खा गया
वे भाषण ,वे रैलियाँ बालवर्ष का क्या हुआ
बहुत सुना था शोर सरकार है बदली
बदले हैं सिर्फ बैनर नेता वही नकली
सुना था कि आया है प्रजातंत्र
मगर दिखा नहीं कहीं
पूछने पर वही जवाब आगे देखो तो सही
वही महंगाई,खाल उतरवाई
विकल्पहीनता की स्थितियाँ हैं
वही वादे हैं वही नारे हैं
हर कोई यहाँ दुखिया है
आँख वाले अन्धों के जहाँ में
कैसे वो रह पायेगा
अब वो बाट है जोह रहा
अगला सूर्यग्रहण कब आयेगा ??
शरद कोकास
(चित्र गूगल से साभार )
सूर्य ग्रहण 16 फरवरी 1980
सूर्य ग्रहण के दिन अजब हादसा हुआ
अन्धे की आँख में कुछ प्रकाश सा हुआ
कानों सुनी थी बातें जो कभी उसने
आँखो से लगा उनको वो परखने
आवारा नौनिहालों को देख वो गश सा खा गया
वे भाषण ,वे रैलियाँ बालवर्ष का क्या हुआ
बहुत सुना था शोर सरकार है बदली
बदले हैं सिर्फ बैनर नेता वही नकली
सुना था कि आया है प्रजातंत्र
मगर दिखा नहीं कहीं
पूछने पर वही जवाब आगे देखो तो सही
वही महंगाई,खाल उतरवाई
विकल्पहीनता की स्थितियाँ हैं
वही वादे हैं वही नारे हैं
हर कोई यहाँ दुखिया है
आँख वाले अन्धों के जहाँ में
कैसे वो रह पायेगा
अब वो बाट है जोह रहा
अगला सूर्यग्रहण कब आयेगा ??
शरद कोकास
(चित्र गूगल से साभार )
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