वैसे भी कविता से हमारा सामना ज़िंदगी में कहाँ होता है ? कविता हमें बचपन में भाषा के पाठ्यक्रम के अंतर्गत स्कूल में पढ़ाई जाती है और जैसे तैसे परीक्षा पास करने के लिए या अच्छे मार्क्स लाने के लिए हम उसे पढ़ते हैं .बड़े होने के बाद यदि हम अध्यापन या साहित्य के व्यवसाय में नही हैं तो इसका भी साथ छूट जाता है .फ़िर कभी अख़बार के रविवारीय पृष्ठ पर किसी कोने में छपी कविता दिखाई तो देती है लेकिन अन्य रोचक आलेखों को पढ़ने के मोह में हम उसे नही पढ़ पाते. कविता के रसिक कभी कभार किसी कवि सम्मलेन या मुशायरे में शामिल होकर कविता का रसास्वादन कर लेते हैं .इसमे भी ज्यादातर लोग कवि सम्मलेन देखने जाते है .हिन्दी के मंचीय सम्मेलनों की क्या स्थिति है यह किसीसे छुपा नही है।
आज मै यह बताना चाहता हूँ की कविता की समझ किस तरह हमारे जीवन की दिशा बदल सकती है .उन दिनों जब मेरी बेटी कोंपल समय से पूर्व जन्म ले लेने के कारण और कमजोरी की वज़ह से जीवन के लिए संघर्ष कर रही थी, निराशा हम पति पत्नी को बार बार घेर लेती थी. ऐसे समय कवि पाश की पंक्तियाँ "हम लडेंगे साथी उदास मौसम के खिलाफ/ हम लडेंगे साथी गुलाम इच्छाओं के खिलाफ/ हम लडेंगे कि अभी तक लड़े क्यों नही/हम लडेंगे की अभी लड़ने की ज़रूरत बाकी है ..."मैंने बड़े बड़े अक्षरों में कागज़ पर लिखकर दीवार पर लगा दी ..दुख से मेरी यह लडाई थी और मै वह जंग जीत गया.मुझे याद है एक परिचित जो उन दिनों जीवन से इतने निराश थे की आत्महत्या करना चाहते थे ,इन पंक्तियों को पढ़कर उत्साह से भर उठे थे . आज वे एक सफल व्यक्ति है।ज़िन्दगी में ऐसे कई वाकये हो सकते है ..राष्ट्र भक्ति के गीत सुनकर हमारा सीना क्यों फूल जाता है ?हमने कभी सोचा है ॥ यह कविता की ताकत ही है जो हमारे भीतर न केवल उत्साह का संचार करती है बल्कि जीवन के मूल राग प्रेम,वात्सल्य,सौहार्द्र ,भाईचारे और अपनत्व की भावना को जन्म देती है।
प्रसिद्ध कवि लीलाधर मन्डलोई कवि नवीन सागर के लिये लिखी अपनी कविता मे यही कहते हैं -- "जाने कितनों ने तुम्हारी कविता के रास्ते /सोचा होगा मृत्यु से लडने का तुम्हारी खातिर/लेकिन अशक्त थे कि हुए परास्त कहना मुश्किल/कमज़र्फ तो इतना मैं भी पढता रहा/कविता मेंबार बार एक ही पद/अत्र कुशलम तत्रास्तु और सुना एक दिन/बहुत देर बाद दिल्ली में मंगलेश डबराल से कि /गनेसी मर गया/किसी एजेंसी से नही आई यह खबर /न किसी रेडिओ या कि टीवी.चैनल से/और भोपाल से तो कतई नहीं/भला हो चन्द्रकांत देवताले का कि/रात को जगा के नीन्द से दी उन्होनें यह खबर विष्णु खरे को/विष्णु खरे ने उतनी ही रात गए मंगलेश को /मंगलेश ने जनसत्ता को कि गनेशी मर गया/मरने का दुख पहले ही मना चुके थे बहुत से लोग /और तुम्हारा गनेसी पढ नही पाया/तुम्हारी ही पंक्ति कि जीवन बचे रहने की कला है " ('काल बाँका तिरछा' से साभार)
कविता यह काम कैसे करती इस पर बात अगली बार....
आपका॥ शरद कोकास
3 मई 2009 को कवि शरद बिल्लोरे को मेरे साथ अवश्य याद करें
सोमवार, अप्रैल 27, 2009
गुरुवार, अप्रैल 16, 2009
जनतंत्र में अपने जन होने के अधिकार का अवश्य उपयोग करें
शरद कोकास की सुख दुःख की कवितायें -इलेक्शन
दुःख का सीधा मुकाबला
सुख से था
सुख के पक्ष में सत्ता थी
मक्कारी थी
अय्यारी थी
दुःख को धूल चटवाने की
पूरी तय्यारी थी
सुख के कार्यकर्ताओं में
सौ बार बोले जा चुके झूठ थे
धोखा आतंक अनाचार थे
लोभ लालच उसके पिट्टू थे
अनीति उसकी प्रवक्ता थी
बेईमानी वित्तप्रबंधक
सुविधाएं उसकी गुलाम थी
सितारों की उस पर कृपा थी
आकाश मेहरबान था
सुख के झंडे पर
स्वप्न का निशान था
सुख की ताकत के आगे
लाचार था दुःख
अपने रोने के अलावा
उसके पास ऐसा कुछ नही था
जिससे वह सुख का मुकाबला करता
फ़िर भी दुःख ने संघर्ष किया
कोशिश की सुख से जीतने की
और हार गया
दुःख नही पहुंचा कुर्सी तक
सुख पहुँच गया
सोमवार, अप्रैल 13, 2009
शरद कोकास की सुख दुःख की कवितायें -तरीका
दबे पाँव आते थे दुःख
इंसानों पर हमला कर
उन्हें खा जाते थे
उनकी दाढ़ में इन्सान का खून लगा था
वे नित नए इंसानों की तलाश करते
सुखी इंसानों का स्वाद उन्हें अच्छा लगता
वे चुपचाप आते
दोस्त बनकर
इन्सान के कंधे पर हाथ रखते
और गर्दन दबोच लेते
हमले का यह नायाब तरीका
उन्होंने इंसानों से ही सीखा था
इंसानों पर हमला कर
उन्हें खा जाते थे
उनकी दाढ़ में इन्सान का खून लगा था
वे नित नए इंसानों की तलाश करते
सुखी इंसानों का स्वाद उन्हें अच्छा लगता
वे चुपचाप आते
दोस्त बनकर
इन्सान के कंधे पर हाथ रखते
और गर्दन दबोच लेते
हमले का यह नायाब तरीका
उन्होंने इंसानों से ही सीखा था
रविवार, अप्रैल 12, 2009
शरद कोकास की सुख दुःख की कवितायें
हजार हाथ थे सुख के
जिनसे वह हजारों को
दुलार सकता था
दुःख के पास थी फकत दो ऑंखें
जिनसे वह करोड़ों को देखता
और दुखी कर देता *******
जिनसे वह हजारों को
दुलार सकता था
दुःख के पास थी फकत दो ऑंखें
जिनसे वह करोड़ों को देखता
और दुखी कर देता *******
शनिवार, अप्रैल 11, 2009
ITIHAS KYA HAI?
itihas to darasal ma ke pahale doodh ki tarah hai
jiski sahi khurak paidaa karti hamare bheetar
musibaton se ladne ki takat
dukh sahan karne ki kshamta deti jo
jeevan ki samajh banati hai vah
hamare hone ka arth batati hai hame
hamari pahchan karati jo hamin se
(PAHAL dwara prakashit SHARAD KOKAS ki lambi kavita PURATATVAVETTA se)
jiski sahi khurak paidaa karti hamare bheetar
musibaton se ladne ki takat
dukh sahan karne ki kshamta deti jo
jeevan ki samajh banati hai vah
hamare hone ka arth batati hai hame
hamari pahchan karati jo hamin se
(PAHAL dwara prakashit SHARAD KOKAS ki lambi kavita PURATATVAVETTA se)
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