कामगार कवि नारायण सुर्वे नहीं रहे । पता नहीं किस माँ ने उन्हे जन्म दिया था . यह 1926 की बात है लेकिन एक मज़दूर गंगाराम सुर्वे को वे मैले कुचैले कपड़ों में मुम्बई के एक फुटपाथ पर भटकते हुए मिले और वे इस अनाथ बालक को घर ले आये उसे पढाया- लिखाया और इस बेटे ने भी पूरी दुनिया में नाम कमा कर इस जीवन को सार्थक कर दिया । मुम्बई के आम आदमी का कवि , मजदूरों का कवि , मुफलिसों का कवि , दलितों और उत्पीड़ितों का कवि और अनाथ बेघरों का कवि था नारायण सुर्वे । सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार से 1956 मे शुरुआत हुई और ढेरों पुरस्कार , मध्यप्रदेश का कबीर सम्मान .. क्या क्या नहीं मिला . लेकिन वह अंत तक रहा एक आम आदमी , एक सड़क का कवि । नारायण सुर्वे की यह चर्चित मराठी कविता “ शीगवाला “ मुझे मित्र कपूर वासनिक के ब्लॉग कविता वाहिनी पर मिल गई है । सोच रहा था अनुवाद करूँ ..लेकिन हिन्दी मिश्रित इसकी मुम्बैया मराठी और झोपड़पट्टी में बोली जाने वाली आम आदमी की वह भाषा , उसका अनुवाद कैसे कर सकता था सो आपकी सुविधा के लिये शब्द पर स्टार लगाकर कोष्टक मे अर्थ दे दिया है । उम्मीद है आप समझ जायेंगे.. अन्यथा समझाने के लिये हमारे मुम्बई के ब्लॉगर मित्र हैं ही । कॉमरेड नारायण सुर्वे को सादर नमन सहित उनकी यह कविता – शरद कोकास
शीगवाला
क्या लिखतो रे पोरा !
नाही चाचा - - काही हर्फ जुळवतो * ( जोड़ता हूँ )
म्हणता, म्हणता दाऊदचाचा खोलीत शिरतो* ( खोली में घुसता है )
गोंडेवली तुर्की टोपी काढून* ( निकालकर )
गळ्याखालचा घाम* पुसून तो 'बीचबंद' पितो ( पसीना )
खाली बसतो
दंडा त्याचा तंगड्या पसरून उताणा* होतो. ( उलटा )
एक ध्यानामदी ठेव बेटा ( ध्यान मं रख )
सबद लिखना बडा सोपा* है ( आसान )
सब्दासाठी* जीना मुश्कील है ( शब्दों के लिये )
नाही चाचा - - काही हर्फ जुळवतो * ( जोड़ता हूँ )
म्हणता, म्हणता दाऊदचाचा खोलीत शिरतो* ( खोली में घुसता है )
गोंडेवली तुर्की टोपी काढून* ( निकालकर )
गळ्याखालचा घाम* पुसून तो 'बीचबंद' पितो ( पसीना )
खाली बसतो
दंडा त्याचा तंगड्या पसरून उताणा* होतो. ( उलटा )
एक ध्यानामदी ठेव बेटा ( ध्यान मं रख )
सबद लिखना बडा सोपा* है ( आसान )
सब्दासाठी* जीना मुश्कील है ( शब्दों के लिये )
देख ये मेरा पाय
साक्षीको तेरी आई* काशीबाय ( माँ )
'मी खाटीक* आहे बेटा - मगर ( कसाई )
गाभणवाली* गाय कभी नही काटते.' ( गर्भवती गाय )
तो - सौराज आला* गांधीवाला ( आया )
रहम फरमाया अल्ला
खूप जुलूस मनवला चालवालोने
तेरे बापूने -
तेरा बापू चालका भोंपू ।
हां तर मी सांगत होता* ( कह रहा था )
एक दिवस मी बसला* होता कासाईबाडे पर ( बैठा )
बकरा फाडून रख्खा होता सीगपर
इतक्यामंदी* समोर* झली बोम (इतने में सामने हुआ शोर )
मी धावला* देखा - ( मैं दौड़ा ,देखा )
गर्दीने* घेरा था तुझ्या अम्मीला ( भीड़ ने )
काटो बोला
अल्ला हू अकबरवाला
खबरदार मै बोला
सब हसले, बोले,
ये तो साला निकला पक्का हिंदूवाला
"फिर काफिर को काटो !"
अल्लाहुवाला आवाज आला
झगडा झाला ।
सालोने खूब पिटवला* मला ( मुझे पीटा )
मरते मरते पाय गमवला ।
सच की नाय काशिबाय* - ? ( काशी बाई )
'तो बेटे -
आता आदमी झाला सस्ता - बकरा म्हाग* झाला ( महँगा )
जिंदगीमध्ये* पोरा, पुरा अंधेर आला, (ज़िन्दगी में )
आनि* सब्दाला ( और ऐसा कौन है जो )
जगवेल* असा कोन हाये दिलवाला ( शब्दों को जीवित रखेगा )
सबको पैसेने खा डाला ।'
-- नारायण सुर्वे
गुदड़ी के लाल कॉमरेड नारायण सुर्वे को नमन.
जवाब देंहटाएंआदमी सस्ता - बकरा महंगा ..
जवाब देंहटाएंकौन है जो शब्दों को जीवित रखेगा ...
सबको पैसे ने खा डाला ..
आदमी वही जो आखिर तक रहे वही सड़क वाला ...
नमन एवं आभार..!
कॉमरेड नारायण सुर्वे के बारे में जानकारी देने के लिए आभार. अभी पिछले हफ्ते में मुंबई में था, वहां के लोगो के द्वारा अपनी भाषा मराठी के प्रति प्रेम को देख कर अभिभूत हो गया. बहुत ही ज़बरदस्त! काश हमारे देश के सभी लोग अपने देश की भाषाओँ पर गर्व करना सीख जाएँ.
जवाब देंहटाएंनारायण सुर्वे को नमन.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनारायण सुर्वे के शब्द जीवंत तो हैं ही, न जाने कहां-कहां, जैसे यहां भी जीवित हैं, और जीवित रहेंगे.
जवाब देंहटाएंस्व: कामरेड नारायण सुर्वे को मेरा सलाम।
जवाब देंहटाएंकामरेड नारायण सुर्वे तथाकथित स्वर्ग में नहीं, यहां हमारे नरक के बीच मौजूद हैं और हमेशा रहेंगे। उनकी कविता मराठी में नहीं बल्कि उस भाषा में है जिसमें बंबई यानी मुम्बई का जीवन सचमुच सांस लेता है। शाह नवाज जी मुम्बई भी हमारे देश में ही है। और कामना यह करनी चाहिए कि अपनी भाषा से ज्यादा अपनी संस्कृति पर गर्व करना सीखें। भाषा संस्कृति का बहुत छोटा सा हिस्सा है।
जवाब देंहटाएंकामरेड सुर्वे को अभिवादन!
जवाब देंहटाएंउन्हें अभिवादन ! मेरे ख्याल से आपको पूरा अनुवाद दे देना चाहिए !
जवाब देंहटाएंएक अपूर्णीय क्षति है न केवल समाज की अपितु साहित्य की भी ...
जवाब देंहटाएंजनकवि को हार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि। एक कविता ज़िद्दी धुन पर भी पढ़ी।
जवाब देंहटाएंकॉमरेड नारायण सुर्वे को सादर नमन एवं हार्दिक श्रधांजलि...
जवाब देंहटाएंउनकी रचना पढवाने का आभार
कॉमरेड नारायण सुर्वे को मेरा शत शत नमन और श्रधांजलि! उनकी रचनाओं का रूबरू करवाने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंएक प्रेरणा दायक परिचय।
जवाब देंहटाएंहिंदी अनुवाद बेहतर रहता ।
परिचय जान कर बहुत अच्छा लगा ... ऐसी विभूतियों को नमन है ...
जवाब देंहटाएंdaral ji se sahmat hu...
जवाब देंहटाएंkafi shabd samjh me nahi aaye..ho sake to hindi me anuwad bhi de...
Shraddhanjali
जवाब देंहटाएंनमन!
जवाब देंहटाएंकॉमरेड नारायण सुर्वे को सादर नमन एवं हार्दिक श्रधांजलि.
जवाब देंहटाएंनारायण सुर्वे जी को नमन. कविता थोडी बहुत समझ आई, भाषा बहुत कठिन है जी, आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकॉमरेड सुर्वे के बारे में जानकारी देने का आभार और उनकी रचनाये पढाने का भी. कुछ समझ आई कुछ नहीं ..नारायण सुर्वे को नमन.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंकामरेड सुर्वे को सलाम....आम आदमी का कवि अंत तक आम रहता है.....नायक खलनायक बन जाता है.....आम आदमी का नेता करोड़पति बन जाता है.....मगर सड़क का कवि सड़क नहीं छोड़ता..क्योंकि सही अर्थों में अगर आंखों से आंसू नहीं पोछ पाता वो....इसलिए उनका साथ भी कभी नहीं छोड़ता....नागार्जुन औऱ कवि सुर्वे अंत तक आम आदमी के बने रहे....
जवाब देंहटाएंएक बार फिर ऐसे महान लोगो को नमन....
अपुर्णीय क्षति हुई है साहित्य जगत को
जवाब देंहटाएंईश्वर इनकी आत्मा को शांति दे
इष्ट मित्रों एवं परिजनों को दारुण दु:ख सहने की शक्ति प्रदान करे।
मैं परेशान हूँ--बोलो, बोलो, कौन है वो--
टर्निंग पॉइंट--ब्लाग4वार्ता पर आपकी पोस्ट
उपन्यास लेखन और केश कर्तन साथ-साथ-
मिलिए एक उपन्यासकार से
naaraayan surve ji ko naman aur rachana me bahut gahraai hai ,aapki taarif jayaz hai .
जवाब देंहटाएंशत नमन ऐसे महान कवि को !!!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार....
आपके ब्लॉग को आज चर्चामंच पर संकलित किया है.. एक बार देखिएगा जरूर..
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/