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बुधवार, जून 13, 2012

1988 की कवितायें - नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता –चार


नींद ना आने की स्थिति में एक चित्र और देखिये 

नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता –चार

नींद आखिर  उड़कर कहाँ जाती होगी
शहर बीच खड़ी अट्टालिकाओं में
या बाहरी सीमा पर बसी
गन्दी बस्तियों में

सहमी खड़ी रहती होगी चुपचाप
बेटी के ब्याह की फिक़्र में जागते
बूढ़े बाप की देहरी पर

कोशिश करती होगी
बेटी के बिछौने पर जाने की
जो जाग रही होगी
बाप की छाती पर  ।
                        शरद कोकास 

सोमवार, जून 04, 2012

1988 की कवितायें - नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता - 2

नींद न आने की स्थिति में लिखी कविताओं में से यह दूसरी कविता । यह कविता भी कुछ हल्के- फुल्के मूड में ही लिखी गई थी और व्यंग्य इसका केन्द्रीय भाव था । आगे चलकर इस विषय पर कुछ गम्भीर कवितायें आई हैं । लीजिये फिलहाल तो इसे पढ़िये और इसका मज़ा लीजिये ।


 नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता – दो

नींद को कहीं
नज़र न लग गई हो
चचा ग़ालिब की
उन्हें मौत का ख़ौफ था
हमे ज़िन्दगी का है

आश्चर्य !
पीने के बावज़ूद
उन्हें नींद नहीं आती थी

आसमान की ओर देखते हुए
कोशिश में हूँ
बूझने की
चचा ग़ालिब ने यह शेर
शादी से पहले लिखा था
या बाद में ।
                        शरद कोकास