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सोमवार, जुलाई 09, 2012

1989 की कवितायें - काले शीशों के भीतर


नेताओं के साथ चलते कारों के काफिले देखकर उस समय भी बहुत गुस्सा आता था .. पता नहीं क्यों ..। लोग समझाते थे कि भाई उनकी सुरक्षा के लिये यह ज़रूरी है । मैं कुछ समझना ही नहीं चाहता था । आज फेसबुक पर एक तस्वीर में हॉलैंड के प्रधानमंत्री की साइकल पर दफ्तर जाते हुए देखा तो फिर वह बात याद आई । एक बार तो स्कूल में अपने शिक्षक से सवाल कर दिया  कि जब नेताओं का काफिला निकलता है तो बच्चों को झंडा लेकर क्यों खड़ा कर दिया जाता है सड़क के किनारे ?  मुझे कोई जवाब नहीं मिला था । यह उन्हीं दिनों की कविता है जब जेहन में ऐसे बहुत सारे सवाल मचलते थे । 

 काले शीशों के भीतर

प्रशंसा के प्यालों में परोसी
चाटुकारिता की शराब
सुविधा सम्पन्न लोगों की पहुँच से लम्बी
आँतों में पहुँचकर
न्यूटन के तीसरे नियमानुसार
शीघ्र प्रतिक्रिया करती है

साइकल के फटे टायर से 
झाँकती ट्यूब की तरह
झाँकता है उदारवाद
आधी मुन्दी पलकों से
टपकने लगती हैं
नाटकीय संवेदनायें
वातानुकूलित कारों के
काले शीशों के भीतर
वे वमन करते हैं
जीवन के मूल राग
नैतिकता का अवरोध तोड़
कूटनीति के मंच पर पहुँचते ही
निचले स्तर के विरोधियों की तरह
वे उछालते हैं
कुछ इंकलाबी नारे
मोतियाबिन्द पालने वाली आँखों को
दिखाते हैं दिल्ली के तारे

सड़क से दूर खड़े बच्चों की तरह
झंडे हिलाते रह जाते हैं
कुछ खाली पेट

यह खाली पेट
सब कुछ समझ जाने पर
एक दिन सड़कों पर बिछ जायेंगे
आखिर कब तक अनदेखा करेंगे उन्हें
कारों के यह काफ़िले ।
                        शरद कोकास 

मंगलवार, जून 26, 2012

1989 की कवितायें - सूरज को फाँसी

बेंजामिन मोलाइस , अफ्रिका के क्रांतिकारी कवि थे जिन्हें फाँसी दी गई थी । उनके लिये यह कविता ।


सूरज को फाँसी

रात्रि के अंतिम पहर में
कारपेट घास पर बैठ
सूरज को फाँसी देने की
योजना बनने वालों से
इतना कहना है
एक बार वे
योजना के गर्भ में झाँककर
सूरज और जल्लाद के
सम्बन्धों की
खुफिया जानकारी ले लें

जल्लाद दूर गाँव से बुलाया गया है
फाँसी के बाद पैसों के अलावा
इंटरव्यू छापने का आश्वासन है

उन्होने तय कर लिया है
किस तरह सूरज को बान्धकर
तख़्त तक ले जाया जायेगा
चेहरा ढाँकने के लिये
काले कपड़े की ज़रूरत होगी
ताकि उसकी नज़रों से निकलने वाली
 क्रांति की चिनगारियाँ
किसी के दिमाग़ में जज़्ब न हो

फन्दे के आकार पर भी बात जारी है
ताकि सूरज की नाक
बराबर दूरी पर
दायें या बायें रह सके

सूरज से उसकी अंतिम इच्छा पूछना
योजना में शामिल नहीं है
फाँसी से पूर्व की
सुरक्षा व्यवस्था के अंतर्गत
शामिल है
सूरज मुखी पौधों को जड़ से नष्ट करना
ताकि विद्रोह अंकुरित न हो

सूरज की लाश
उसके परिजनों को सौंपी जाये या नहीं
या कर दिया जाये उसका अंतिम संस्कार
सरकारी खर्चे पर
विचार इस पर भी जारी है

सूरज के आरोपपत्र में लिखा है अपराध
रोशनी और उष्मा के सन्दर्भ में
उसने महलों की नहीं
झोपड़ों की तरफदारी की है ।

                        शरद कोकास