मंगलवार, जनवरी 11, 2011

सितारों का मोहताज़ होना अब ज़रूरी नहीं

 देखना चाहता हूँ इस एक कविता से कितने अर्थ निकालते हैं आप ?????

सितारे

अन्धेरी रातों में
दिशा ज्ञान के लिये
सितारों का मोहताज़ होना
अब ज़रूरी नहीं

चमकते सितारे
रोशनी का भ्रम लिये
सत्ता के आलोक में टिमटिमाते
एक दूसरे का सहारा लेकर
अपने अपने स्थान पर
संतुलन बनाने के फेर में हैं

हर सितारा
अपने ही प्रकाश से
आलोकित होने का दम्भ लिये
उनकी मुठ्ठी मे बन्द
सूरज की उपस्थिति से बेखबर है ।

                        शरद कोकास