tag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post4706014121514310581..comments2023-10-29T18:17:34.870+05:30Comments on शको कोश : नवरात्र कविता उत्सव - तीसरा दिन - असमिया कवयित्री निर्मल प्रभा बोरदोलोईशरद कोकासhttp://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-24651674006318646172010-10-14T15:22:03.819+05:302010-10-14T15:22:03.819+05:30बाकी सारे तारीफ कर ही चुके हैं इसलिए हाजिरी देकर ज...बाकी सारे तारीफ कर ही चुके हैं इसलिए हाजिरी देकर जा रहा हूं :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-24941713934513521722010-10-12T22:49:38.161+05:302010-10-12T22:49:38.161+05:30प्रकृति के करीब, जमीन से जुडी.प्रकृति के करीब, जमीन से जुडी.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-46381343121777763952010-10-12T10:47:27.334+05:302010-10-12T10:47:27.334+05:30kavita ise kahate hain....na koi lag na lapet sidh...kavita ise kahate hain....na koi lag na lapet sidhe samwad ...wah....Mita Dashttps://www.blogger.com/profile/14458823983093144362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-67974328566803514112010-10-11T17:24:32.956+05:302010-10-11T17:24:32.956+05:30शरद जी आज पहली बार इस ब्लॉग पर आया और धिक्कार रहा ...शरद जी आज पहली बार इस ब्लॉग पर आया और धिक्कार रहा हूँ खुद को कि पहले क्यों नहीं आया इस ब्लॉग पर.. नवरात्रे के बहाने आप देश भर की कविता और कविता में छुपी चिंता और संवेदना से परिचय करवा रहे हैं यह हिंदी ब्लॉग्गिंग के भविष्य ले लिए मील का पत्थर साबित होगा.. वास्तव में हिंदी ब्लॉग्गिंग में अभी और भी गंभीर कार्य किये जाने हैं...<br />अब बात करता हूँ असमिया कवियत्री निर्मल प्रभा जी की कविता पर..<br />पहली कविता में वे शरद ऋतु के बहाने वे आज ना अपनी जड़ो को फिर से ढूंढ रही हैं बल्कि उन्हें वर्तमान से जोड़ भी रही हैं.. इस कविता में पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक गंध भी महसूस की जा सकती है... सुंदर कविता पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-34393771523187240622010-10-11T11:48:25.062+05:302010-10-11T11:48:25.062+05:30अपने अंतस में बचाए रक्खो
मुट्ठी भर आकाश
ताकि पाखिय...अपने अंतस में बचाए रक्खो<br />मुट्ठी भर आकाश<br />ताकि पाखियों के एक जोड़े को<br />मिल सके उड़ान भरने के लिए एकांत ।इस से बढ़िया और क्या पंक्तियाँ हो सकती है .शुक्रिया इनको हम तक पहुँचाने के लिएरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-4567729581738404002010-10-11T09:14:49.326+05:302010-10-11T09:14:49.326+05:30अपने बच्चों के लिए कुछ ना छोड़ जाने की चिंता से आक...अपने बच्चों के लिए कुछ ना छोड़ जाने की चिंता से आक्रान्त मन की वेदना....और मुट्ठी भर आकाश, और थोड़ी सी छाहँ .....बचाए रखने की जरूरत.... बहुत ही प्रभावशाली तरीके से अभिव्यक्त हुई है, कविता में.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-77360942310501031422010-10-11T07:36:27.853+05:302010-10-11T07:36:27.853+05:30दोनों रचनाओं में माटी की गंध है ।दोनों रचनाओं में माटी की गंध है ।अजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-81702558544542337142010-10-11T06:32:59.205+05:302010-10-11T06:32:59.205+05:30शरद जी,
आपका कार्य बेहद सराहनीय है
दोनों ही रचनाएँ...शरद जी,<br />आपका कार्य बेहद सराहनीय है<br />दोनों ही रचनाएँ बहुत ही संवेदनशील<br />नवरात्री की मंगलकामनाएं ............संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-63846384665617391252010-10-11T06:08:48.077+05:302010-10-11T06:08:48.077+05:30हमारे जनक द्वारा उपलब्ध कराई गई सभी वस्तुएँ
हमारी...<b>हमारे जनक द्वारा उपलब्ध कराई गई सभी वस्तुएँ <br />हमारी जननी द्वारा ही हम तक पहुँचाई जाती हैं! <br />-- <br />पहली कविता में माता-पिता की तुलना <br />अतुलनीय रूप में की गई है! <br />-- <br />कवयित्री (एक संतान) अपने लिए <br />इससे श्रेष्ठ रूपक की खोज करना ही नहीं चाहती! <br />अपने जनक और जननी की श्रेष्ठता को <br />चुनौती देना ही नहीं चाहती! <br />-- <br />दूसरी कविता भी इस सच को बखान करती है - <br />जब तक तुम्हारे मन में <br />आकाश होने की इच्छा का जागरण नहीं होता, <br />तब तक न तो तुम्हारे मन में प्रेम जागेगा और <br />न ही तुम दूसरों के मन में प्रेम-प्रकाश जगा पाओगे! <br />-- <br />इससे अधिक और क्या कहूँ?<br />महानतम् भावनाओं को अपने आप में समेटे <br />इन महान रचनाओं को नमन! </b>रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-47161283708346694212010-10-11T01:28:00.290+05:302010-10-11T01:28:00.290+05:30अक्षुण्ण रखी है । दूसरी कविता में प्रकृती से दूर ...अक्षुण्ण रखी है । दूसरी कविता में प्रकृती से दूर जाते हम लोग किस प्रकार अपने आस पास नही तो अपने मन में ही इसमे स्वच्छंद विचरने का आस्वाद लें सकें ऐसे भाव हैं ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-85252763565988067652010-10-11T01:24:53.995+05:302010-10-11T01:24:53.995+05:30बहुत दिनों बाद आई आप के ब्ल़ॉग पर । प्रभा जी की कव...बहुत दिनों बाद आई आप के ब्ल़ॉग पर । प्रभा जी की कविताएं पढ कर बहुत ही अच्छा लगा मां और पिता को हम कैसे कैसे किन किन प्रसंगों से याद करते हैं यह भी याद आया हमारे बच्चों के लिये क्या हम कुछ छोड पायेंगे या इस मोहमयी दुनिया के व्यापारों में उलझे वे नही निकाल पायेंगे समय हमें याद करने का । सिध्देश्वर जी की सिध्द लेखनी ने कविताकी आत्मा वैसी हीAsha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-4533091215750555092010-10-10T23:49:33.753+05:302010-10-10T23:49:33.753+05:30असमिया कवियित्रि की जो इच्छा है न ! वह हमें समूचे ...असमिया कवियित्रि की जो इच्छा है न ! वह हमें समूचे विश्व से जोड़ती है....... अपने अंतस मे थोड़ा सा जंगल और थोड़ा सा आकाश बचाए रखना उन दिनों के लिए जब तुम्हें छांव की जरूरत हो ,जब तुम्हें उड़ने की जरूरत हो .......और इस तरह अपने भीतर हम जो अपने लिए बचाएंगे वही तो देंगे दुनिया को !!!सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-75669013611451311152010-10-10T23:35:00.901+05:302010-10-10T23:35:00.901+05:30बहुत अच्छी लगी आपकी कविता .. मन को मथने वाली !! बध...बहुत अच्छी लगी आपकी कविता .. मन को मथने वाली !! बधाई स्वीकारेंप्रज्ञा पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/03650185899194059577noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-39624952673419357512010-10-10T21:58:13.912+05:302010-10-10T21:58:13.912+05:30.
शरद जी,
आपका कार्य बेहद सराहनीय है। प्रभा जी ....<br /><br />शरद जी,<br />आपका कार्य बेहद सराहनीय है। प्रभा जी से परिचय का आभार। नवरात्री की शुभकामनायें आपको। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-4657159712367025042010-10-10T21:53:00.727+05:302010-10-10T21:53:00.727+05:307/10
very good7/10 <br /><br />very goodउस्ताद जीhttps://www.blogger.com/profile/03230688096212551393noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-59963481673240275502010-10-10T21:52:14.824+05:302010-10-10T21:52:14.824+05:30दुःख --यादों के सहारे मिलता सकून --मर्मस्पर्शी ।
इ...दुःख --यादों के सहारे मिलता सकून --मर्मस्पर्शी ।<br />इच्छा ---सचेत करती प्रेरणात्मक रचना ।<br /><br />सुन्दर अनुवाद ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-6722802053173051302010-10-10T21:46:01.716+05:302010-10-10T21:46:01.716+05:30दोनों ही रचनाएँ अंतर्मन को छूने वाली ...... बहुत ह...दोनों ही रचनाएँ अंतर्मन को छूने वाली ...... बहुत ही संवेदनशील <br />नवरात्री की मंगलकामनाएं डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-54707542153200289262010-10-10T20:05:00.190+05:302010-10-10T20:05:00.190+05:30दोनों ही कविताएं बहुत सुंदर हैं. सिद्धेश्वर जी व आ...दोनों ही कविताएं बहुत सुंदर हैं. सिद्धेश्वर जी व आप, दोनों को ही साधुवाद.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-83599987936678459322010-10-10T19:43:24.026+05:302010-10-10T19:43:24.026+05:30कहाँ रख जाऊँगी मैं
स्वयं को
ओह कहाँ ?
अपने बच्चों ...कहाँ रख जाऊँगी मैं<br />स्वयं को<br />ओह कहाँ ?<br />अपने बच्चों के लिए ?<br />कमाल की चिन्ता!!! सच है, आज हमारे पास ऐसा क्या है, जिसे हम अपनी याद के तौर पर सहेज जायें?? बहुत सुन्दर प्रस्तुति. शानदार अनुवाद भी. बहुत बहुत धन्यवाद शरद जी.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-4629507469690788382010-10-10T16:59:39.976+05:302010-10-10T16:59:39.976+05:30दोनो रचना बहुत अच्छी लगी, आप को नवरात्रो की शुभकाम...दोनो रचना बहुत अच्छी लगी, आप को नवरात्रो की शुभकामनायेराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-87407430723038222802010-10-10T16:39:44.988+05:302010-10-10T16:39:44.988+05:30स्त्री मन की अन्तर्वेदना मुखर हो गयी है……………बेहद स...स्त्री मन की अन्तर्वेदना मुखर हो गयी है……………बेहद संवेदनशील अभिव्यक्ति।<br />आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी<br /> प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है<br />कल (11/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट<br /> देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर<br />अवगत कराइयेगा।<br />http://charchamanch.blogspot.comvandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-15643346950884289482010-10-10T16:17:18.132+05:302010-10-10T16:17:18.132+05:30@राजेश भाई आपने सही जगह उंगली रखी है । इस बारे में...@राजेश भाई आपने सही जगह उंगली रखी है । इस बारे में सोचने की ज़रूरत तो है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-59971483816850202902010-10-10T15:33:13.157+05:302010-10-10T15:33:13.157+05:30बहुत ही प्रभावी अभिव्यक्ति ... कुछ शब्दों में व्यक...बहुत ही प्रभावी अभिव्यक्ति ... कुछ शब्दों में व्यक्त करी गहरी वेदना ... <br />दोनो रचनाए भोतिकता वादी समाज की पीड़ा व्यक्त करने में सक्षम हैं ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-6594664460095485612010-10-10T14:58:38.308+05:302010-10-10T14:58:38.308+05:30अपने अंतस में बचाए रखो
मुट्ठी भर आकाश
ताकि पाखियो...अपने अंतस में बचाए रखो <br />मुट्ठी भर आकाश<br />ताकि पाखियों के ण्क जोड़े को <br />मिल सके उड़ान भरने के लिए एकांत।<br />मन रूपी पंछी को उड़ने के लिए आकाश और एकांत तो चाहिए ही...बहुत ही प्रभावशाली कविता।<br />सिद्धेश्वर जी का यह कहना बिल्कुल सही है कि एक अच्छी कविता ठहराव चाहती है- पढ़ने और उसे आत्मसात करने के लिए, ब्लॉगिंग की कविता के साथ ऐसा नहीं हो पाता, यह विचारणीय संदेश है।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-13122027916072978122010-10-10T14:54:48.896+05:302010-10-10T14:54:48.896+05:30शरद भाई आपने प्रभाजी की कविता के बहाने महत्वपूर्ण...शरद भाई आपने प्रभाजी की कविता के बहाने महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। इस अवसर का लाभ उठाकर मैं भी कुछ कहना चाहता हूं,हम सब अगर अन्यथा न लें, तो आप,सिद्धेश्वर जी,शिरीष,परमेन्द्र,अशोक पाण्डेय और ऐसे तमाम साथी अपने ब्लाग पर अच्छी और सार्थक कविताएं लगाकर या लिखकर काम खत्म समझ लेते हैं। ब्लाग की इस दुनिया में कहीं और जाकर विमर्श करना शायद हमें अच्छा नहीं लगता। फिर हम कहते हैं कि यहां अच्छे पाठक नहीं हैं। वे कैसे तैयार होंगे। क्या उसकी कोई योजना बनाई गई है। क्या उसके लिए कोई कोशिश की जा रही है। शायद इस बारे में भी सोचने की दरकार है। <br />यहां प्रस्तुत निर्मल प्रभाजी की दोनों कविताएं हमें स्त्री के उस मन के करीब ले जाती हैं जिसके वजह से वह स्त्री है। सिद्धेश्वर जी के ब्लाग कर्मनाशा की दो कविताएं और ये दो कविताएं मिलकर ब्लाग की दुनिया के लोगों को निर्मल प्रभाजी की अनुभव सम्पन्न काव्य क्षमता का परिचय देती हैं।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.com