tag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post1317020120739075744..comments2023-10-29T18:17:34.870+05:30Comments on शको कोश : नवरात्रि तृतीय दिवस - अन्ना अख़्मातोवा की कविताशरद कोकासhttp://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-58729799796789628652010-03-21T23:52:06.993+05:302010-03-21T23:52:06.993+05:30अशोक जी की टिप्पणी बहुत सच्ची है!
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सकारात्मक स...<b>अशोक जी की टिप्पणी बहुत सच्ची है! <br />-- <br />सकारात्मक सोच को प्रकीर्णित करके <br />आशा की किरण दिखानेवाली कविता ही श्रेष्ठ होती है!</b><br />-- <br />उन-जैसे अनुभवी <br />और <br />नई कविता की उत्कृष्ट समझ रखनेवाले रचनाकार को <br />मेरी समझ के अनुसार <br />अपनी टिप्पणी बाद में ही करनी चाहिए! <br />-- <br />आशा है - मेरी बात का आशय समझ रहे होंगे!रावेंद्रकुमार रविhttps://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-65912602447609347682010-03-19T13:02:01.098+05:302010-03-19T13:02:01.098+05:30शरद भाई,
कल अति व्यस्तता की वजह से इस पोस्ट पर लेट...शरद भाई,<br />कल अति व्यस्तता की वजह से इस पोस्ट पर लेट आ सका हूं...क्या कहूं...बस पढ़ता जा रहा हूं, एक और नगीना...अन्ना अख्मातोवा...सूरज के सामने दियासिलाई जला कर मैं कर भी क्या सकता हूं....अद्भुत...आभार...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-25808999213401946082010-03-19T09:40:04.849+05:302010-03-19T09:40:04.849+05:30ऐसी कविताओं से रूबरू करवाने के लिए प्रणाम।ऐसी कविताओं से रूबरू करवाने के लिए प्रणाम।Kulwant Happyhttps://www.blogger.com/profile/04322255840764168300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-40033394520892070122010-03-19T08:57:30.712+05:302010-03-19T08:57:30.712+05:30स्वीकर - स्वीकारस्वीकर - स्वीकारगिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-63517057508599617982010-03-19T08:56:37.666+05:302010-03-19T08:56:37.666+05:30@अशोक कुमार पाण्डेय जी
जद्दोजहद में कोलाहल भी है। ...@अशोक कुमार पाण्डेय जी<br />जद्दोजहद में कोलाहल भी है। हर वाद में रहता है। उसको भेदते सही सुर सुनाई दें तो अच्छा भी लगता है और आशा भी बनी रहती है ..<br />हाँ, शायद आप ने टिप्पणी की अंतिम पंक्ति नहीं पढ़ी। यह स्वीकर वाद से उपर उठता है - बहुत उपर।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-63507215378452722532010-03-19T08:44:32.334+05:302010-03-19T08:44:32.334+05:30@बैचैन आत्मा जी,गिरिजेश जी …यह स्वीकारोक्ति नहीं ह...@बैचैन आत्मा जी,गिरिजेश जी …यह स्वीकारोक्ति नहीं है। यह वह सब कुछ है जो पुरुष उसे मानता है और पुरुष का प्रिय बनने के लिये उसे जबरन स्वीकार करना पड़ता है। यह उसके समर्पण की क़ीमत है…वही पराजय के बाद बजती बीटिंग रिट्रीट है यह्…आख़िरी धुन…सब ख़त्म हो जाने का एहसास। नारीवाद कोलाहल नहीं है मित्र पितृसत्तात्मक समाज के विरुद्ध एक बेहतर दुनिया रचने की जद्दोज़ेहद है…वही उड़ता हुआ सफ़ेद सारस…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-75879922106992581192010-03-19T08:42:18.489+05:302010-03-19T08:42:18.489+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-91657743782471574942010-03-19T08:13:04.015+05:302010-03-19T08:13:04.015+05:30कविता और अनुवाद दोनों की परिपक्वता दर्शनीय है। यदि...कविता और अनुवाद दोनों की परिपक्वता दर्शनीय है। यदि आप ने कवयित्री का नाम नहीं बताया होता तो मैं इसे मुक्तिबोध, केदार या अज्ञेय की रची समझता। <br />बेचैन आत्मा जी की टिप्पणी महत्त्वपूर्ण है। नारीवाद के कोलाहल में यह स्वीकारोक्ति बड़ी बात है. यह मन की निर्मलता को बयां करती है।<br />साथ ही यह बात भी घनक के साथ रखती है कि औरत भी इंसान है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-32507459018338582652010-03-18T22:38:41.175+05:302010-03-18T22:38:41.175+05:30अशोक जी की व्याख्या अच्छी है. मगर जिस अंश को उन्हो...अशोक जी की व्याख्या अच्छी है. मगर जिस अंश को उन्होंने छोड़ दिया.. <br />..नमक हराम हूँ नख से शिख तक<br />गिरगिट की तरह रंग बदलती हूँ<br />हूँ ही ऐसी , ....<br /><br />यह स्वीकारोक्ति बड़ी बात है. यह मन की निर्मलता को बयां करती है. जिसका ह्रदय इतना विशाल हो उसी को दिख सकतीं है ...आशा की किरण ...धुंधले प्रकाश में उड़ता सारस का एक जोड़ा.<br /><br />...अच्छी कविता पढ़ाने के लिए आभार.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-85864991834556720852010-03-18T19:59:07.039+05:302010-03-18T19:59:07.039+05:30अनुवाद शायद साहित्य की सबसे मुश्किल विधाओं में है ...अनुवाद शायद साहित्य की सबसे मुश्किल विधाओं में है ..चुके के अर्थ और कविता की रूह या ध्वनि हाथों से फिसल जातीं हैं <br />अन्ना जी की कविता को हिन्दी भाषा में ढालना भी कठिन रहा होगा - अनुवादक को बधाई ! <br />अब कविता का सार लें तब यही कहूंगी, जीवन भर की यात्रा को समेटे सारस के जोड़े की ओर टकटकी लगाए देख रही एक स्त्री <br />कविता से अपने मन की पीड़ा, गहन अनुभूति, आशा - निराशा , समाज के कटु सत्य , विवशता सभी चन्द पंक्तियों में लिख गयीं <br />आपका आभार ..विदेश में बसी स्त्री को दुर्गा रूप में दर्शा कर ..हम तक पहुंचाया आपने ..सारी प्रविष्टियाँ पढूंगी <br />स स्नेह,<br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-14393444537447486252010-03-18T19:40:00.486+05:302010-03-18T19:40:00.486+05:30कितने बिम्ब !
कितने प्रतीक !
“ मेरे साथ मरना चाह...कितने बिम्ब !<br />कितने प्रतीक !<br /><br />“ मेरे साथ मरना चाहोगी “<br />कदचित कोई प्रज्ञा पुरूष ही वहां तक पहुँच सकता है जहां पहुँच कर यह कविता रची गई है<br /><br />इस श्रेष्ठतम कविता के लिए आपका आभार !Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09116344520105703759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-65719453315456992032010-03-18T17:35:45.693+05:302010-03-18T17:35:45.693+05:30वैसे अमिताभ श्रीवास्तव जी मेरा दावा है कि 'लक्...वैसे अमिताभ श्रीवास्तव जी मेरा दावा है कि 'लक्षमण रेखा' शब्द उस कविता में नहीं होगा…कोई रूसी मुहावरा या उक्ति ही होगी…अनुवाद में उसके शब्दानुवाद की जगह अनुवादक ने उसका समतुल्य मुहावरा पेश कर इसे हिन्दी के पाठकों के लिये सहज बना दिया। जब शब्द और प्रसंग मुहावरों और लोकोक्तियों में बदल जाते हैं तो उनकी अर्थवत्ता और प्रसंग भी बदल जाते हैं।<br /><br />बाकी तमाम मित्रों का आभार…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-38589876650744892962010-03-18T17:18:28.545+05:302010-03-18T17:18:28.545+05:30sundar kavita aur sundar anuvaad....sundar kavita aur sundar anuvaad....Ambarishhttps://www.blogger.com/profile/10523604043159745100noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-35752572114209873952010-03-18T16:42:20.895+05:302010-03-18T16:42:20.895+05:30सारस का एक जोड़ा उड़ा जा रहा है ।
ये अंतिम पंक्तियाँ...सारस का एक जोड़ा उड़ा जा रहा है ।<br />ये अंतिम पंक्तियाँ तो जैसे कविता का सार खुद ब खुद कह रही हैं.संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-29935425858936712062010-03-18T16:41:34.606+05:302010-03-18T16:41:34.606+05:30अशोक जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहना अनुचित लग रहा ह...अशोक जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहना अनुचित लग रहा है। उन्होंने बहुत सुंदरता से कविता का अर्थ और महत्व समझाया है।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-2222146992268028972010-03-18T15:53:50.822+05:302010-03-18T15:53:50.822+05:30यूक्रेनिया रूस की कवयित्री अन्ना अख़्मातोवा agar लक...यूक्रेनिया रूस की कवयित्री अन्ना अख़्मातोवा agar लक्ष्मण रेखा jeisa shbd pryog karti he to ynha hamari bharatiyta ke veer sanskratik purush raam ke bhaai ki upyogita ki samagrata par me khush hu. kher..<br />mere saath marna chahogi me kaviytri ne kitani gahari baat likhi he.., jeevan to sab saath me bitane ka upkram karte rahte he..saath me marna..kya behatreen likha he..अमिताभ श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/12224535816596336049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-57281912290470331422010-03-18T15:14:18.002+05:302010-03-18T15:14:18.002+05:30भाईया हम तो वाह वाह वालो मै ही आते है,बहुत सुंदर र...भाईया हम तो वाह वाह वालो मै ही आते है,बहुत सुंदर रचना.<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-40617701221080590662010-03-18T13:55:43.543+05:302010-03-18T13:55:43.543+05:30जितनी आगे बढ़ी
निगाहें टेढ़ी होती गईं
मतलब स्थितिय...जितनी आगे बढ़ी<br />निगाहें टेढ़ी होती गईं<br />मतलब स्थितियां आन्ना अख्मातोवा के समय में भी वही थीं जो कमोबेश आज हैं. "पहल" ने हमें बहुत उत्कृष्ट साहित्य उपलब्ध कराया है. जब उसका प्रकाशन बन्द हुआ, उस टीस को आज कुछ राहत मिली. साधुवाद.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-53390177554650318072010-03-18T13:05:27.037+05:302010-03-18T13:05:27.037+05:30धुन्धले प्रकाश में
सारस का एक जोड़ा उड़ा जा रहा है ।...धुन्धले प्रकाश में<br />सारस का एक जोड़ा उड़ा जा रहा है ।<br />ये अंतिम पंक्तियाँ तो जैसे कविता का सार खुद ब खुद कह रही हैं.वो उम्मीद की किरण नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर, संताप वेदना और कलुषित मानसिकता से बाहर निकल एक खुले आसमां में उड़ान द्योतक है की आगे अब सिर्फ प्रकाश है वो भी श्वेत जो अपने साथ लायेगा सुखद अनुभूतियों का किरण पुंजरचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-46614118668384752692010-03-18T12:22:46.020+05:302010-03-18T12:22:46.020+05:30सच में अंधेरे से उजाले की तरफ चलते जाना आसान नहीं ...सच में अंधेरे से उजाले की तरफ चलते जाना आसान नहीं होता जबकी अंधेरा अपको जकड़े हुए हो और लक्षमण रेखाऐं खींच दी गयी हो । कविता का अर्थ समझाने के लिये अशोक जी का धन्यवाद । अब कविता और भी अच्छी लग रही है । इतनी अच्छी कविता के लिये धन्यवाद ।Chandan Kumar Jhahttps://www.blogger.com/profile/11389708339225697162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-89170260817649997502010-03-18T11:59:46.948+05:302010-03-18T11:59:46.948+05:30अशोक जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहना अनुचित लग रहा ह...अशोक जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहना अनुचित लग रहा है। उन्होंने बहुत सुंदरता से कविता का अर्थ और महत्व समझाया है।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8257485340998190162.post-49443131035209570382010-03-18T09:05:38.776+05:302010-03-18T09:05:38.776+05:30अन्ना आख़्तामोवा की यह कविता एक सघन सांकेतिकता की ...अन्ना आख़्तामोवा की यह कविता एक सघन सांकेतिकता की कविता है। 'लक्ष्मण रेखा के पार चले जाना'जैसे विशुद्ध देसज मुहावरे का इसमे प्रयोग कर अनुवादक ने अपने भाषाई समझ और कौशल का परिचय दिया है। समाज द्वारा तय की गयी सीमाओं से बाहर जाने के बाद क्या होता है एक औरत का? उसका आगे बढ़ते जाना समाज के नियंताओं की नज़र का टेढ़ा होता जाना…दोनों एक ही समानुपात में घटित होते हैं। बीटिंग रीट्रीट का बजना…अंधेरा…यह सब मिलकर गहन उदासी का एक बिंब रचते हैं…लेकिन उम्मीद कभी नहीं मरती…धुंधले प्रकाश से उड़ता हुआ सारस यह उम्मीद ही तो है जो कवि को इस निराशा के अंधकार से दूर ले जाता है। रजनीकांत जी का अनुवाद कविता को हिन्दी पाठकों के लिये सहज बनाता है…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.com